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________________ २८३ बिराजे । बडा उपकार हुआ । सैकडों व्यक्ति अहिंसक बन गये । २६, २७ जून तक बिराज कर आपने ता० २८जून को प्रातः होते ही विहार कर दिया । ८ मील का विहार कर आप रण पैठानी का पूल पधारे । अहार पानी लेने के बाद आपका प्रवचन हुआ । कुछ मुसलमान एवं सिन्धि भाईयों ने आपके उपदेश से दारु, मांस एवं जीवहिंसा का त्याग किया। सायंकाल के समय आपने विहार कर दिया । रात्रि के समय दाबेची नामक गांव में ठहरे । रात्रि के समय आपका प्रवचन हुआ । सैकडों व्यक्तियों ने प्रवचन से प्रभावित होकर दारु मांस एवं जीवहिंसा का त्याग किया । कुछ व्यक्तियों ने पांच तिथियों में लिलोत्री एवं रात्रि भोजन का त्याग किया । शोलवत लिया। यहां से भी सायंकालको आपने विहार कर दिया और गगरगोठ पधारे। यहीं आपने रात्रि निवास किया । २९ जून को प्रातः ही आठ मील का लम्बा विहार कर पीपली स्टेशन के समीप पुल पर पधारे । यहां भो आपका प्रवचन हुआ। करीब बीस पच्चीस सिन्धी मुसलमान भाईयों ने दारु, मांस एवं जीव हिंसा का त्याग किया । सायं काल के समय आपने अपनी मुनि मण्डली के साथ विहार कर दिया । चार मील का विहार कर लांदीका फाटक पधारे। यहों रात में बिराजे । चोकीदार अलाऊदीन नामक मुसलमान ने दारु, मांस एवं जोवहिंसा का त्याग किया । कराची के भाई श्रीमणिलाल बावीसी डोसो खीमचन्द भाई आदि श्रावकगण महाराजश्री के दर्शन के लिए फाटक पर पधारे । इधर उधर महाराज श्री की रात्रि में खोज को । बडी खोज के बाद एक वृक्ष के नीचे ज्ञान ध्यान रत मुनिराजों को देखा । करीब रात के दो बजे महाराजश्री के दर्शन किये । प्रातः होते ही महाराजश्री ने विहार कर दिया । सात मील का विहार कर आप मलीर पधारे । मलीर से सैकड़ों हजारों लोग दूर तक आपका स्वागत करने के लिये आये । बडे जयध्वनि के साथ आपने मलीर में प्रवेश किया । जब आप स्थानक तक पहरे ।। जब आप स्थानक तक पहुँचे तो करीब चार पांच हजार व्यक्ति एकत्र हो गये थे कराची से भी बडी संख्या में लोग उपस्थित हए । सारा मलीर ही कराची मय बन गया था। मध्वान्ह के समय आपका जाहिर प्रवचन हुआ । महाराजश्री के पधारने के पर्व ही मलीर संघ ने हजारों पेंपलेटों द्वारा जनता को सूचना करवा दी “जैन मुनिमहाराज श्री घासीलालजी महाराज नो क्वेटा दिन माटे जाहिर सन्देश" इस हेडिंग के हजारों विज्ञप्ति पत्र मलीर में बांटे गये । फलस्रूप व्याख्यान में सैकड़ों की संख्या में राजकर्मचारी, वकील, बेरिस्टर, रेल्वे कारखाने के अधिकारी एवं मजदर मिलटरी विभाग के अधिकारी सैनिक, सेनापति, इंजिनियर, हवाई जहाज के अफसर दिवान आदि बडी संख्या में उपस्थित हुए । करीब चार पांच हजार जन समूह व्याख्यान में उपस्थित हुआ । आपने अपना प्रवचन प्रारम्भ करते हुए कहा-जैन धर्म का ही नहिं किन्तु संसार के समस्त धर्मो का एक ही रहस्य-'परोपकार" स्वयं व्यास ऋ षे भी अठारह पुराण की रचना करने के बाद उनके रहस्यों को संक्षिप्त में बताते हुए कहते हैं - अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् । परोपकाराय पुन्याय पापाय परपीडनम् ॥ इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति बडा बनने की लालसा रखता है । परन्तु बडप्पन का मापदण्ड है परोपकार । परोपकार विहीन कोई व्यक्ति कभी बडा नहीं बन सकता । चाहे वह कितना ही धनवान्, बलवान या बद्धिमान क्यों न हो । दूसरों की सहायता, सेवा , सहिष्णुता और भलाई ये सद्गुण ही बडप्पन क नींव है। वैभव कोई छोटे बडे की आधार-शिला नहीं है । एक धनवान भी यदि अपना हि पेट भरता है और पेटी भरने के लिये जघन्य कृत्य करता है तो वह बडा आदमी नहीं किन्तु जघन्य आदमी है । ऐसे धनवान का जीवन निरर्थक है । पृथ्वी के लिए वह भाररूप है । दुसरा व्यक्ति निर्धन है किन्तु वह सेवाभावी है। परोपकार में निरत है वह दुनियां को नजरों में भले ही छोटा हो किन्तु वह है महान । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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