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________________ २८१ अपने जीवन काल में अनेक साधुओं के दर्शन किये किन्त ऐसे महान त्यागो साधुओं को देखने का हम यह प्रथम ही मुअवसर मिला है। इन सन्तों के आदर्श जीवन को देख कर हमें विश्वास हो गया है कि भारतवर्ष में भी महान सन्त अपनी पवित्र चरन रजसे भूमि को पावन कर रहे हैं । हमें ऐसे महान सन्तों की वाणी को सुनकर उसे जीवन में उतारने का अवश्य प्रयत्न करना होगा। तभी हमारा जीवन सफल होगा। इसके बाद आपका प्रवचन सोसाइटी के बीच में हुआ । दिवान प्रल्हादरायजी ने आपका प्रवचन सुना । प्रवचन सुनकर बडे प्रसन्न हुए । आपकी लडकियां इन्द्रा व चन्द्रा ने उपदेश सुनकर यह प्रण किया कि हम विवाह के बाद भो जीवन में कभी दारू मांस सेवन नहीं करेंगी । और अन्य को भी छुडानेका प्रयत्न करेंगी। भोले नाम के सिन्धी भाई ने भी दारु मांस का त्याग किया । भाग्या नामके महतर ने पांच तिथियों में मांस खाने का त्याग किया जीवहिंसा एवं दारू का सदा के लिए त्याग किया । इस प्रकार आपके प्रवचन से सेकडा हैदराबादी हिन्दु मुसलमान सिन्धियों एवं सिक्खों ने दारू मांस एवं जीव हिंसा का त्याग किया । महाराजश्री का आषाढ वदी ५ ता० १४ जून को प्रातः विहार हुआ। हैद्राबादके सैकड़ों की संख्या में जैन अजैन स्त्री पुरूप कोटडबिंदर तक पहुँचाने आये । कोटड़ी हैदराबाद से चार मील पर पडता है । मागे में इंजीनीयर साहब गौरीशंकरजी को दर्शन देने के लिए आप उनके बंगले पर पधारे । आपकी महाराज श्री के प्रति बडी भक्ति रही १७०० रू० मासिक वेतन पाते हुए भी आपका रहन सहन बडा साधा सीधा था । आपकी -धर्म पत्नी भी बडी धर्म शीला थी। आपने महाराज श्री के समीप पांचों तिथि ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने का एवं रात्रि भोजन का त्याग किया । २१ जन को महाराज श्री कोटडी में ही बिराजे । यहां सेठ ठाकरसो भाई रामजो भाई की कोठी में आपका प्रवचन हुआ। प्रवचन में संकटों व्यक्ति उपस्थित हुए । कईयों ने आप के प्रवचन से प्रभावित होकर दारू, मांस, परस्त्रीसेवन जीवहिंसा आदि दुर्व्यसनों का त्याग किया। अन्य भी विविध प्रकारके त्याग प्रत्याख्यान हुए। दुसरे दिन २२ जुन को आप भोलाग पधारे । यहां स्टेशन पर ही आप बिराजे | अहार पानी ग्रहण करनेके पश्चात् आप का प्रवचन हुआ, स्पेशन मास्टर आसकरणजी मास्टर ब्रजलालजी मास्टर मोहनलालजी ने प्रव चन से प्रभावित होकर यथा शक्तियाग ग्रहण किये। अहमदजी नामक सिन्धी मुसलमान ने दारू, मांस जीव वध का सदा के लिए त्याग कर दिया । आंगर के जमादार आचार नामक सिन्धो मुसलमान ने दारू मांस जीवहिंसा का सर्वदा के लिए त्याग कर दिया । इस प्रकार यहां अनेक उपकार के कार्य हुए । २३ जून को विहार कर आप मटींग पधारे । आपका यह विहार तेरह मिल का हुआ । यहां भी आप स्टेशन पर ही बिराजे । स्टेशनमास्टर चेलारामजी दिवान ने एवं उनकी मातुश्री केवलबाई ने आपका प्रवचन सुना । मेटोंग निवासी भी बड़ी संख्या में प्रवचन सुनने के लिये आये । प्रवचन सुनकर बडे प्रभावित हुए । प्रवचन समाप्ति के बाद अनेकों ने विविध प्रकार के त्याग प्रत्याख्यान किये मास्टर वासोमल सिन्धी एवं मास्टर अबदुल रहमान लालुमल दोपनदास आदि सिन्धी मुसलमानों ने दारु मांस, एवं जीवहिंसा का त्याग किया। यहां से ता० २४ जून को विहार कर आप जम्पीर पधारे । आपका इस बार १२ मील का लम्बा विहार हुआ । सांप ओर बिच्छुओं का उपद्रव तो चलता हि रहा । यहां भी सर्वत्र सांप और बिच्छु ही दिखाई देते थे । यहां सांप का अपेक्षा बिच्छुओं का उपद्रव बहुत अधिक रहा । लेकिन देव गुरु और धर्म की कृपा से किसी भी मुनि को काट नही हुआ । सारे गांव में सर्प ही सर्प दिखाई देते थे । किन्तु सन्तों का तप प्रभाव ही ऐसा था जिससे हिंसक प्राणी भी अहिसंक वृत्ति वाले बन जाते हैं । यहाँ पर स्टेशन पर ही बिराजे । आहार पानी के बाद आपका प्रवचन हुआ । प्रवचन में रेलवे क्वाटर्स के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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