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आपने जरा सोचा है ? हा यह निश्चित है कि हम इनके ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकतें । हो इतना तो कर सकते हैं इनका कम से कम उपयोग या दुरुपयोग को राक सकते हैं अधिक से अधिक इनकी रक्षा कर सकते हैं । जिस प्रकार हवा पानी, अमि और वनस्पति हमारे उपयोगी है वैसे पशु भी मानव के लिये अत्यन्त उपयोगी है। पशु के चर्म से हम अपने पेरों की रक्षा करते हैं । उनके एक एक अंग मानव के लिए उपयोगी बनते हैं। यहां तक कि उनका टट्टीपैशाब भी मानव के लिए उपयोगी है पशु तो मात्र आपसे एक सहानुभूति की ही अपेक्षा रखते हैं । और उन पर दया लाये और प्राणियों की अधिक से अधिक रक्षा करें। इस प्रकार आपने प्राणि रक्षा व जीव दया की आवश्यकता पर एक घंटा प्रवचन दिया । प्रवचन का जनता पर गहरा प्रभाव पडा ।
सिन्ध देश के सुप्रसिद्ध सन्त और अहिंसा धर्म के अद्वितीय प्रचारक सन्त वासवाणी भी आपके प्रवचन में उपस्थित थे । व्याख्यान समाप्ति के बाद उन्होंने कहा-पं० मुनिश्री घासीलालजी म. के भाषण की तारीफ करने के लिए मेरे पास अल्फाज नहीं हैं उस मुकाम को बडा खुशकिस्मत समझना चाहिए जहाँ ऐसे गुणीजनों की तशरीफ आवरी हो । धन्य है ऐसे महान महात्मा को जो अपनी बेशकीमती जिन्दगी को तोकते रुहानी और मजहबी तरक्की में गुजारते हैं। इन्हीं की जिन्दगी कामयाब समझना चाहिए । इत्यादि......आपने करीब आधे घंटे तक प्रवचन दिया । प्रवचन के बाद स्थानीय श्रावकों ने थाली कटोरी तथा मेवों मिष्ठान्न की प्रभावना की। इस अवसरपर कराची का श्रीसंघ भी उपस्थित था । हैदराबाद श्रीसंघ ने उनका अच्छा स्वागत किया । संघ में वात्सल्य भाव अपूर्व था। महाराज श्री यहां आठ दिन बिराजे । प्रतिदिन आपके जाहिर प्रवचन होते थे । स्कूल कॉलेजों एवं बाजार के बीच आपके प्रवचन हुए । सैकडों व्यक्तियों ने आपके प्रवचन से प्रभावित हो, शराब, मांस, जूआ एवं वैश्यागमन तथा जीव हिंसा का त्याग किया ।
ता० १७-६-३५ के दिन बाजार के बीच एक विशाल पाण्डाल में आपका प्रवचन हुआ । हजारों स्त्री पुरूष आपके प्रवचन में उपस्थित हुए। व्याख्यान के बीच अहिंसा धर्म के प्रचारक सन्त वासवानीजी ने महाराज श्री को प्रशंसा करते हुए कहा-भारतभूमि सन्तों महन्तों मुनियों और महात्माओं एवं ऋषियों की तपो भूमि रही है । इसे मर्यादापुरुषोत्तमराम महान कर्मयोग) श्रीकृष्ण, महान आत्मसाधक तथा आत्मवेत्ता श्रमण भगवान श्रीमहावीर स्वामी और महात्मा गौतम बुद्ध जैसे महान-रत्नों की अध्यात्म-क्रीडास्थली तथा आत्म-साधना भूमि होने का असाधारण गौरव प्राप्त है, इसे हम योगभूमि कहने में भी संकोच का अनु भव नहीं करेंगे । इसके कण कण में आज भी सन्त साधना का साक्षात्कार करने कराने की क्षमता है । यदि कोई इसे जाने पहचाने और माने तो ! इतिहास इस बात का साक्षि है कि एक साधारण से साधारण गृहस्थ के द्वार से लेकर बडे-बडे सम्राटों के राज-प्रासादों ने सन्तो की चरण धूलि से अपने आपको सौभाग्यशाली माना है। फलतः हमारी संस्कृति और सभ्यता पर उनकी अमिट छाप का पडना सहज स्वाभाविक है । आज हैदराबाद भी ऐसे ही सन्तों की चरण धूलि से पावन हो रहा है । पंडित प्रवर श्री घासीलालजी महाराज अनेक कष्ट सहन कर हमारे शहर में पधारे हैं । ये सन्त एक उच्च कोटि के महान योगी तपोधन एवं आत्मनिष्ठ है । संसार में सन्तों की आध्यात्मिक पूंजी ही मनुष्य को सुख दे सकती है । मुनिराज आत्मयोगी और परमज्ञानी है । इनके वैराग्य मय आध्यात्मिक जीवन को व इनकी चर्या को देखा तो मेरा मन श्रद्धावनत हो गया, इनके जीवन से मुझे यह अनुभव हुआ कि ये तन और मन दोनों से सन्त हैं । इनकी पावन वाणी से निश्चित ही संसार का कल्याण होगा ...... इत्यादि ___ इसके बाद अनेक विदुषी बहनो ने खडे होकर महाराज श्री को धन्यवाद दिया और कहा हमने
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