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________________ २७९ त्याग ग्रहण किया। सायंकाल के समय आपने बिहार कर दिया और आप राहुरी स्टेशन पधारे। यहां पर हैदराबाद सिंध का श्रीसंत्र महाराजश्री के दर्शन के लिए आया। रात्रि के समय आपका प्रवचन हुआ । प्रवचन में स्टेशन के सभी कर्मचारी बडी • संख्या में उपस्थित हुए । स्टेशन मास्टरों ने एवं रेल्वे के कुछ अन्य कर्मचारियों ने रात्रि भोजन का त्याग किया एवं दारु, मांस तथा जीववध का त्याग किया। वहां से विहार कर आप भीराणी के स्टेशन पधारे। यहां आधा घन्टा बिराजे। भीराणी के स्टेशन मास्टर कानसिंहजी ने दारु, मांस, शराब एवं जीव हिंसा का त्याग किया। यहां प्रथम से ही हैदराबाद का श्रीसंघ उपस्थित था । भव्य स्वागत के साथ महाराज श्री को हैदराबाद की ओर बिहार कराया । जब हैदराबाद समीप आया तो सैकडों स्त्री पुरुष स्वागत के लिए नगर से बाहर आये और आपके शुभागमन पर बडा हर्ष प्रकट किया । इस प्रकार भगवान वीर की जय ध्वनि के साथ आपका नगर में पदार्पण हुआ । और नगर के एक भव्य भवन में प्रवेश किया । सैकडों नगर निवासियों से सारा हाल खचाखच भर गया | हमारे चरितनायकजी अपनी मुनि मण्डली के साथ पाटे पर बिराजे। जैसे निर्मल चन्द्रमा तारा मण्डल के बीच सुशोभित लगता है वैसे ही हमारे चरितनायमजी अपनी मुनि मण्डली के साथ परम सुशोभित हो रहे थे । चरितनायकजी ने मांगलिक स्तवन के बाद भाषण प्रारंभ किया । आपके भाषण का सार यह था जीवन क्या है। मनुष्य को श्वास धारण क्रिया जीवन कहलाती है । पर केवल श्वास क्रिया मात्र ही जीवन नहीं है अन्यथा श्वास तो धमनी भी लेती है । परन्तु जिसके जीवन में कुछ जिन्दा दिली है वही तो जीवित है । एक को जिन्दा दिली अपने तक सीमित रहती है । दूसरा कुछ आगे बढता है। देह की दीवारों से उपर उठकर जिसने दूसरे के जीवन में आत्मीयता का पसार किया है वह जीवन अगरबत्ती के जैसा सुगंधमय जीवन है जो स्वयं जलकर आसपास के वातावरण को सुवासित करती है एक वहजिन्दगी है जो दूसरों के लिए अपने हितों का बलिदान करती है । वृक्ष एकेन्द्रिय कहलाता है । ग्रीष्म ऋतु के भयंकर ताप को वह स्वयं सह लेता है किन्तु अपने शरण में आने वाले को वह परमशान्ति और शीतलता प्रदान करता है । नीम की छाया में जो व्यक्ति अधिक रहता है उसका शरीर स्वस्थ हो जाता है। गुलाब के पास कोई पहुंचता है तो उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठता है मानव तूं पंचेन्द्रिय है तेरे पास आनेवाला मानव प्रसन्नता से भर उठता है या चिन्ताओं की रेखाएँ लेकर लोटता है ? यदि आपके पास से कोई पीडा सन्ताप चिन्ता द्वेष लेकर लौटता है तो समझना होगा कि अभीतक हमने उस एकेन्द्रिय जितना भो जीवन विकास नहीं किया है । एकेन्द्रिय के जीवन विकास का एक रहस्य और भी है उनकी देह दूसरे प्राणियों के उपयोग में आता है वह उतना ही लोकप्रिय होता है । सच पूछा जाय तो छोटे छोटे प्राणियों का ही जीवन हमारे लिए विशेष उपयोगी होता है । स्थानांग सूत्र में कहा गया है कि मनुष्य पर कायिक जीवों का अनन्त उपकार है । पवन को लीजिये । कितना उपकार है हम पर उसका । उसके अभाव में हम एक दिन क्या एक घन्टा भो नहीं जी सकतें । क्या इस उपकार को आपने प्रत्युपकार के रूप में लौटाने का भो कभी सोचा है इसी प्रकार पृथ्वी कायभी है, पानी पेय है । अनि मानव का प्रमुख सहायक है। वनस्पति मानव का आहार है इन सब का कितना उपकार है हम पर ये हमारे बिना भी जी सकते हैं किन्तु हम उनके बिना एक क्षण भी जी नहीं सकतें। हम सचमुच इन सब के ऋणी हैं । ऋणदाता भले ही न मांने पर ईमानदार साहुकार का क्या कर्तव्य है ? और सोचिए यदि सारी सृष्टि में एक भी मानव न हो तो पवन को क्या चिन्ता होगी १ पानी का क्या बनेगा बिगड़ेगा ? पर यदि हवा और पानी न हुए तो मानव मात्र क्या होगा ? यह भी कभी ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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