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________________ २७३ स्तानहै । पानी बहुत उंडा और कडुआ है। पेट भर पानी पीलेने से पशुओं की आते भी गलजाती है और थोडे रोज में मर भी जाते हैं । व्याकरण कारों की की हुई "मरु" शब्द की वित्पत्ति यहां ठीक हि सार्थक हो तीहै । जल के अभाव में मर भी जाते हैं । ("मरु" म्रियन्ते जला भावेन प्राणिनो यत्र सः मरुः) ___ यहां से नगरपारकर करी १२० मील पर है । नगरपारकर से पालनपुर ४० मील दूर है । इस मार्ग से कराची आसानी से जाया जा सकता है। सायंकालके समय आपने विहार कर दिया । ४ मील का विहार कर आप तामलोर पधारे । २२ मई को आपश्री का जाहिर प्रवचन हुआ। प्रवचन में तामलोर के ठाकुर साहब श्री वैरीलाल जी अपने समस्त परिवार के साथ प्रवचन में उपस्थित हुए। ठाकुर पँवार नाथुसिंहजी व उनकी ठकुरानियाँ भी उपस्थित हुई । इनके अतिरिक्त हिन्दू और मुसलमान भाई भी बड़ी संख्या में उपस्थित हुए । महाराज श्री ने मानव जीवन की सार्थकता पर प्रवचन दिया । आप अपने प्रवचन में जीवहिंसा, शिकार, मद्य सेवन, परस्त्रीगमन, जूआं जैसे दुव्यर्सनों के दुष्परिणाम समझाए । प्रवचन का जनता पर बहुत अच्छा प्रभाव पडा । ठाकुर वैरीलालजी ने सदा के लिए दारु मांस जीवहिंसा का त्याग कर दिया । साथ प्रतिवर्ष एक जीव को अमरिया करने का भी प्रण किया । ठाकुर पंवार नाथुसिंहजी ने व ठकुरानीजी सा. ने दारु, मांस, जीवहिंसा का सदा के लिए त्याग किया । एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि तिथियों में हरी लिलोत्री एवं कुशील सेवन का त्याग किया। साथ ही प्रतिवर्ष एक बकरा अमर करने का प्रण लिया । मास्टर मोहम्मदहुसेनखाँ ने महाराजश्री के उपदेश से सदा के लिए परस्त्री का त्याग किया और प्रति वर्ष एक बकरे को मृत्यु के मुख से बचाने का प्रण किया । पेठवान आइदानजी, कस्टम अधिकारी चन्दीराम जी ने, महतर नेनजी आदि ने दारु मांस एवं जीव हिंसा का त्याग किया । इस प्रकार सैकडों व्यक्तियों ने महाराज के प्रवचन से प्रभावित हो यथाशक्ति त्याग ग्रहण किये । यहाँ आप ने एक दिन बिराजकर आगे के गांव के लिए विहार कर दिया । २३ मई को प्रातः तामलोर से विहार कर आप सात ७ माईल पर स्थित लीलमा गांव में पधारे । तामलोर के स्टेशन मास्टर ने महाराजश्री के पधारने की सूचना लीलमा के स्टेशन मास्टर को दे दी थी। तदनुसार बडे स्वागत के साथ स्टेशन मास्टर ने अपने रेल्वे के निजी काटर्स में आपको उतारे । आहार पानी के पश्चात् आपका प्रवचन रखा गया प्रवचन में बढी संख्या में जनता आई । आपने अहिंसा धर्म का महत्त्व समझाया । जनता आपके प्रवचन से बडी प्रभावित हुई अनेक हिन्दू एवं मुसलमान भाईयों ने दारु, मांस जीववध परस्त्रीगमन आदि दुर्व्यसनों का त्याग किया । यहां के महेश्वरी भाई मूलचन्दजी कर्मचन्दजी आदि ने अच्छी सेवा की और यथा शक्ति त्याग ग्रहण किया । स्टेशन मास्टर रिलीफ बाबू तथा स्टेशन के अन्य ब्राह्मण कर्मचारियों ने रात्रि भोजन एवं अमुक तिथियों में लोलोत्री खाने का एवं कुशील सेवन का त्याग किया । सायंकाल के समय आप अपनी मुनिमण्डली के साथ दो मील का विहार कर ढाणी में पधारे । रात्रि निवास आपने वहीं किया । रात्रि में भी ढाणी निवासियों को उपदेश दिया । आपके उपदेश से प्रभावित हो सरदार दौलतसिंहजी ने प्रतिवर्ष दो जीवों को अभयदान देने का प्रण लिया । सरदारसगतसिंहजी ने भी प्रतिवर्ष एक एक जीव को अमर करने का प्रण लिया । तथा पांच तिथियों में दारु, मांस एव जीववध न करने का व्रत ग्रहण किया, रात्रि बडे आनन्द के साथ व्यतीत कर प्रातः होते ही आपने अपनी मुनिमण्डली के साथ विहार कर दिया । ___२४ मई को आप ७ सात मील का विहा कर जैसिंधर पधारे । यहां स्टेशन पर ही आप बिराजे । आहार पानी ग्रहण करने के बाद आपका प्रवचन हुआ । आपके प्रवचन से प्रभावित होकर बाबू Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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