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________________ २७१ प्रत्येक दिन की सूचना अगले स्टेशन मास्टर को करवा देते थे । यहां आपके तीन दिन के व्याख्यान से बड़ा उपकार हुआ। सैंकडों व्यक्तियोंने त्याग प्रत्यख्यान ग्रहण किये । तथा यहां के आदिवासियों ने दारु मांस शिकार जीवहिंसा का त्याग किया । यहां के श्रीसंघ ने आप को रोकने का खूब प्रयत्न किया किन्तु आपको आगे पधारने की जल्दी होने से आप ने शाम को यहां से विहार कर दिया । चार मील पर आटीमाली नामक स्टेशन पर आप पधारे । यहां के स्टेशन मास्टर मूलचन्दजी पुष्करणा ब्राह्मण हैं । आपने अपना निजी क्वार्टर सन्तों को ठहरने के लिये दिया । रात में आप मुनिमण्डल के साथ यहीं बिराजे । रात में स्टेशन मास्टरों ने एवं रेलकर्मचारियों ने आपका उपदेश श्रवण किया। दूसरे दिन प्रातः ता० १३ मई को विहार कर जसाइ पधारे । यहाँ ओसवालो के १५-२० घर हैं । आपने यहाँ उपदेश दिया । यहाँ के तीनों स्टेशन मास्टरोंने आपका उपदेश सुन और यथा शक्ति त्याग प्रत्याख्यान किये । रामामहत्तर ने आपश्री का उपदेश सुन दारु मांस तथा जीवहिंसा का सर्वथा त्याग किया । पंडित मूलचन्दजी की यहाँ तबियत अचानक बिगड गई जिससे आपको वापिस नागौर जाना पड़ा। दूसरे दिन ता० १४ मई को विहार कर आप सातमील पर खडोन नामक गाव में पधारे । यहाँ के स्टेशन मास्टर धनराजजी गौड ब्राह्मण हैं । बडे सेवा भावी सज्जन हैं । इन्होने महाराजश्री के उपदेश से पांच तिथि ब्रह्मचर्य एवं लिलोती नहीं खाने का प्रण लिया। पेठवान वांकोजी प्रधान सजोडे दारुमांस जीव हिंसा का त्याग किया । गांगला निवासी मारु नामके और रत्ना नामके सिन्धी मुसलमानों ने भी दारुमांस एवं जीव हिंसा का त्याग किया । तथा झूठी साक्षी न देने का भी प्रण लिया । दूसरे दिन महाराजश्री ता० १५ मई को विहार कर भाचमर नामक स्टेशन पर पधारे । यहां इन्स्पेक्टर ओडिट एकाउन्ट जोधपुर निवासी अग्रवाल लखपतसिंहजी ने महराजश्री के उपदेश से पांच तिथियों ब्रह्मचर्य व्रत पालने का नियम लिया । यहाँ के स्टेशनमास्टर ने भी रात्री भोजन का त्याग किया । तीन दन यहाँ बिराजकर । ता० १६-१७-१८-१९-मई प्रातः होते ही आपने अपनी मुनि मण्डली के साथ भामचर से विहार कर दिया । ८ मील का विहार कर आप रामसर पधारे । यहां स्टेशनमास्टर श्रीमान् चन्दुलालजी अग्रवाल दिगम्बर जैन थे आपने गुरुदेव का बडा भावभीना स्वागत किया और आपको स्टेशन के ही एक कार्टर्स में उतरने के लिए स्थान दिया । रात्रि के समय आपका प्रवचन हुआ । स्टेशन पर रहने वाले सभी कर्मचारी आपके प्रवचन में उपस्थित हुए । महाराजश्री ने उपस्थित स्त्री पुरूषों के समक्ष मानवधर्म पर प्रवावशाली प्रवचन दिया । आपके प्रवचनों का उपस्थित सज्जनों पर अच्छा प्रभाव पड़ा । व्याख्यान समाप्ति के बाद अनेकोंने विविध त्याय प्रत्याख्यान ग्रहण किये । मास्टर साहब की पत्नी केशरकुँवरबाई ने पांच तिथियों में हरि लिलौत्री का त्याग किया और ब्रह्मचर्य पालन का नियम लिया । दोनों पति पत्नि जैनधर्म के प्रति असीम श्रद्धालु थे । महाराज श्री की इन दोनों ने बडी भारो सेवा की । इन्होंने अपने बालकों में भी अच्छे धार्मिक संस्कार डाले । उस समय रामसर में ग्यारह ओसवालों के घर थे । इन घरों के समस्त कुटुम्बियों ने महाराजश्री से सम्यक्त्व ग्रहण किया । आतिशबाजी, वैश्यानृत्य आदि समाज की कुरुढियों का त्याग किया श्रीमान् पोखरदासजो गुलाबचन्दजी पारख ने पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, अमावस्या के दिन चोविहार हरि. लिलोती का त्याग एवं शीलवत पालने का नियम ग्रहण किया । रामसर के ठा० साहब खेमसिंहजी, कंवर साहब कर्ण सिंहजी. ठाकर साहब अमरसिंहजी, ठा० धीरसिंहजी, ठा० तरन्तसिंहजी, ने ठा० परिदानसिंहजी राजपूत डूगरसिंहजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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