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________________ १४ धनुष्य से कम रह जाती है । आयु जघन्य संख्यात वर्ष और उत्कृष्ट असंख्यात वर्ष की होती है। मृत्यु होने पर जीव स्वकृत कर्मानुसार चारों गतियों में जाते हैं । - वर्तमान अवसर्पिणी के तीसरे आरे के तीसरे भाग की समाप्ति में जब पल्योपम का आठवां भाग शेष रह गया उस समय कल्पवृक्षों की शक्ति काल दोष से न्यून हो जाती हैं । युगलियों में द्वेष और कषाय की मात्रा बढ़ने लगे । अपने विवादों का निपटारा करने के लिए उन्होंने विमलवाहन को स्वामी के रूप में स्वीकार किया । ये प्रथम कुलकर थे । इसके बाद क्रमशः सात कुलकर हुए । जैन शास्त्रों में ७, १४, अथवा १५ कुल करों के भी नाम मिलते हैं । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में उनके नाम इस प्रकार है ___ १ सुमति २ प्रतिश्रुति ३ सीमंकर ४ सीमंधर ५ क्षेमंकर ६ क्षेमधर ७ विमलवाहन ८ चक्षुषमान् ९ यशस्वी १० अभिचन्द्र ११ चन्द्राभ १२ प्रसन्नजित् १३ मरुदेव १४ नाभी १५ ऋषभ समवायांग और आवश्यक नियुक्ति में सात कुल करों के नाम आते हैं १ विमलवाहन २ चक्षुषमान ३ यशस्वी ४ अभिचन्द्र , प्रश्रेणी ६ मरुदेव और ७ वें नाभि । ये सात कुलकर मनु भी कहलाते हैं । विमलवाहन की पत्नी का नाम चन्द्रयशा था। विमलवाहन के द्वारा बनाई गई मर्यादा का सब युगलिये पालन करने लगे । इसने 'हा कार' नीति का प्रचलन किया । 'हा' तुम ने यह क्या किया ! इतना कहना ही उस समय के अपराधी के लिए प्राणदण्ड के बराबर था । इस शब्द के कहने मात्र से ही अपराधी भविष्य के लिए अपराध करना छोड देता था । विमलवाहन की जब आयु छ महिने शेष थी तब उसकी पत्नी चन्द्रयशा ने एक युगल सन्तान को जन्म दिया । इस पुरुष का नाम चक्षुष्मान और स्त्री का नाम चन्द्रकांता रखा । विमलवाहन की मृत्यु के बाद द्वितीय कुलकर चक्षुष्मान् बने । इन्होंने अपने पिता की 'हा' कार नीति से ही युगलियों पर अनुशासन किया । चक्षुष्मान की पत्नी चन्द्रकांता ने भी यशस्वी और सुरूपा नाम के युगल-पुत्र-पुत्री को जन्म दिया । अपनी माता पिता की मृत्यु के बाद यशस्वी कुलकर बने । सुरूपा पत्नी बनी । इसने 'हा' कार और 'मा कार' नामक दण्ड नीति का प्रचलन किया । यशस्वी कुलकर की पत्नी ने अभिचन्द्र नात्तक बालक और प्रतिरूपा नामक बालिका को जन्म दिया । पिता की मृत्यु के बाद अभिचन्द्र चौथा कुलकर बना । इसने भी हाकर और माकार नीति का प्रचलन किया । अभिचन्द्र की पत्नी प्रतिरूपा ने भी एक युगल को जन्म दिया । प्रसेनजित् व चक्षुकांता इनका नाम रक्खा । पिता की मृत्यु के बाद प्रसेनजित् पांचवां कुलकर बना । इसने हाकार माकार व धिक्कार नीति से युगलियों पर अनुशासन किया । आयु के कुछ मास पहले प्रसेनजित की पन्नी चक्षुकान्ता ने युगल सन्ता न को जन्म दिया । इनका नाम मरुदेव और श्रीकान्ता रकवा । पिता की मृत्यु के बाद मरुदेव कुलकर बना । इसने अपने पिता की तरह तीनों नीतियों का प्रचलन किया । मृत्यु के कुछ मास पहले उन्होंने एक युगल सन्तान को जन्म दिया उनका नाम नाभि और मरुदेवी रखा । माता-पिता की मृत्यु के बाद नाभि कुलकर बने । मरुदेवी नाभि कुलकर की पत्नी बनी । पिता की तरह इन्होंने हांकार माकार और धिक्कार नीतियों से युगलियों पर अनुशासन किया । (४) दुषम सुषमा—यह आरा बयालीस हजार वर्ष कम एक कोडा कोंडी सागरोपम का होता है । इसमें मनुष्यों के छहों संहनन और छहों संस्थान होते हैं । अवगाहना बहुत से धनुषों की होती है और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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