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एकादशी, अमावस्या, श्रावण भाद्रपद वैशाख मास में जीव हिंसा मांस मदिरा एवं शिकार का त्याग कर दिया। दूसरे थे श्रीमान् धूलसिंहजी पुरोहित भाउंडा जागोरदार | इन्होंने भी महाराजश्री से लिलोती आदि का त्याग किया। और साथ ही यह भी प्रण किया कि हम अपने गांव के किसी भी व्यक्ति का शोषण नही करेंगे और साथ ही जितना उपकार हो सकेगा उतना करेंगे। महाराज श्री जहां भो जाते और जिससे भी मिलते आपका एक मात्र लक्ष्य था लोगों को सदाचारी नैतिक व अहिंसा प्रेमी बनाना । इसके लिए आप निरन्तर प्रयत्न शील रहते थे। इस प्रकार धर्मप्रचार करते हुए आपका बालोतरा आगमन हुआ । यहां जैन समाज के करीब ४०० घर हैं। आवकों में परस्पर संघठन भी अच्छा है । जब महाराजश्री का आगमन सुना तो बालोतरा का विशाल जैन समाज स्वागत के लिए तीन मील आगे पहुंचा । स्वागत में करीब ४००-५०० व्यक्ति थे । उस समय स्थानीय संघ का उत्साह दर्शनीय था । मंगलगान और जय ध्वनि के साथ महाराजश्री ने बालोतरा में प्रवेश किया । महाराजश्री के शहर में प्रवेश होते ही सैकडों अजैन जनता ने भी महाराज श्री का स्वागत किया । शहर के मुख्य बाजारों से होते हुए महाराजश्री ने स्थानक में प्रवेश किया। उस दिन आठ सन्तों को तेले की तपश्चर्या थी। मांगलिक प्रवचन सुनकर जनता विसर्जित हो गई । दूसरे दिन २ मई को सर्व मुनिराजों ने तेले का पारणा किया । तपस्वी मुनि श्री सुन्दरलालजी महाराज ने प्रातः काल व्याख्यान फरमाया ।
तीसरे दिन ३ मई को महाराज श्री के सार्वजनिक प्रवचन का आयोजन किया गया समस्त गांव वालों को इसकी सूचना पेंपलेट द्वारा दी गई। जूनाकोट में महाराज श्री का प्रवचन सुनने के लिए हजारों की संख्या में जनता एकत्रित हुई। महाराज श्री के प्रवचन का विषय था "धर्म और समाज सुधार" महाराजश्री ने अपने प्रवचन में विशाल जनसमूह को सम्बोधित करते हुए जो फरमाया उसका सार यह था समाज नाम की कोई अलग चीज नहीं है। व्यक्ति और परिवार मिलकर ही समाज कहलाते हैं। अतएव समाज सुधार का अर्थ है व्यक्तियों का और परिवारों का सुधार करना । पहले व्यक्ति को सुधारना और फिर परिवार को सुधारना और जब अलग-अलग व्यक्ति तथा परिवार सुधर जाते हैं तो फिर समाज स्वयं सुधर जायेगा | हम लोग समाज सुधारने की बात करते हैं यह तो प्रशस्त भावना है । किन्तु समाज का सुधार कैसे किया जा सकता है ? उपर से या जड से ? उपर से भरा नहीं रहता किन्तु उस के जड़ में पानी डालने से वृक्ष हरा जड व्यक्ति है । उसे सुधारने से ही समाज सुधर सकता है। समाज सुधार की चार भूमिकाएं हैं
वृक्ष पर पानी छिड़कने से वृक्ष हरा रहता है। इसी तरह समाज की
भरा
द्वारा हो सकता है। (२) दूसरी तीसरी भूमिका है विचार परिवर्तन
(१) पहली भूमिका है परिस्थिति परिवर्तन ! यह काम सरकार भूमिका है हृदय परिवर्तन यह कार्य सन्तों द्वारा हो सकता है। (३) यह सद्विचारों व सत्साहित्य एवं साहित्यकारों द्वारा हो सकता है । (४) चोथी भूमिका सेवाकार्य । यह समाज द्वारा हो सकता है अच्छा समाज शरीर जैसा है । समाज में दुःखी हिस्सा है उसकी ओर सब को ध्यान देना उचित है सबसे अधिक सुखी समाज यह है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति परस्पर हार्दिक सम्मान की भावना रखता है । तुम समाज के साथ ही उपर उठ सकते हो और समाज के साथ ही तुम्हें नीचे गिरना होगा यह तो नितान्त असम्भव है कि सके ? क्या हाथ अपने आपको शरीर से पृथक् रख कर बलशाली
कोई व्यक्ति अपूर्ण समाज में पूर्ण बन बना सकता है ? कदापि नहीं । धार्मिक व्यक्तियों के समूह से ही धार्मिक और बिना धर्म का जीवन बिना सिद्धान्त का जीवन
धर्म के आचरण से व्यक्ति धार्मिक बनता है और स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। मेरा विश्वास है
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