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________________ २६५ मनुष्य का मानव होना उसकी जीत है । इस प्रकार महाराज साहेबने ओजस्वी वाणी में मानव जीवन की महत्ता पर करीब देढ घण्टा प्रवचन दिया । प्रवचन का उपस्थित जनता पर अच्छा असर पड़ा । फल स्वरुप व्याख्यान समाप्ति के वाद निम्न प्रतिज्ञाएँ की— श्रीमान् भेरजी किसनाजी गाम डंडाली ( बाडमेर) वाले बराती श्रीमान् नेमीचन्दजी प्रतापमलजी लूंकड सा हीराचन्दजी बाफना, हस्तीमलजी चोपडा इन सब सज्जनो ने प्रति वर्ष एक एक बकरा अमर करनेकी प्रतिज्ञा ली । श्रीमान् कपूरचन्दजी मूथा हस्तीमलजी श्रीश्रीमाल जसोल (बालोतरा ) निवासी इन दोनों ने एक एक बकरा प्रतिवर्ष अमरिया करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की। श्रीमान्जी शिवलालजी देवाणी डंडाली ( बाडमेर) वालों ने पांच बकरे श्रीमान् गणेशजी ढिलरिया ने एक बकरा श्रीमान् सुखलालजी ने सोनाजीरा सेरगढ वालों ने दो बकरे अमर करने का प्रण ग्रहण किया । ठिकाना थोव माजी सा. श्रीमती फूलकुंवर बाई ने प्रतिवर्ष एक एक बकरा तथा बडे ठकुरानी जी सा. श्रीमती हुक्मकुंवरबाई एकादशी अमावस्या को एक एक बकरा अमर करने के साथ साथ इन दिनों में दारु मांस लीलोत्रों के सेवन का त्याग ग्रहण किया । ठिकाना थोत्र छोटा रावला के माजी साहब ने एकादशी चतुर्दशी पूर्णिमा, अमावस्या जन्माष्टमी ऋषिपंचमी इन दिनों में रात्रि भोजन नहीं करने की एवं आजीवन दारु मांस सेवन का त्याग कर दिया । और प्रतिवर्ष एक बकरा अमर करने का प्रण ग्रहण किया । कोठडी टिकाना बाईजीराज श्रीमती अखंड सौभाग्यवती हरिकुंवरी बाईजी ने अष्टमी चतुर्दशी एकादशी पूर्णिमा अमावस्या ऋषिपंचमी को दारु, मांस का त्याग किया और एक बकरा अमर करने की प्रतिज्ञा ली । इसके अतिरिक्त रामाकुम्हार ने आजीवन दारु मांस के सेवन का एवं बिच्छू सर्प आदि प्राणियों को न मारने की प्रतिज्ञा ली । रजपूत सरदारों की पत्नियों पुत्रियों व अन्य स्त्रियों ने जूं लिख सर्प बिच्छू आद छोटे बडे जीवों को न मारने की प्रतिज्ञा ली । अन्य भी अनेक प्रतिक्रमण के बाद आठ संतोने तेले के प्रत्याख्यान किये । उपकार के कार्य हुए । सायंकाल में २९ अप्रैल को महाराज श्री ने प्रातः होते ही अपनी सन्त मण्डली के साथ नवाई गांव की ओर विहार कर दिया । नवाई गांव थोत्र से ३ मील पर है। यहां श्रावकों के घर नहीं हैं फिर भी महाराज श्री के प्रखर व्यक्तित्व के असर से यह गांव भी वंचित नही रह सका । महाराज श्री ने जीव दया का उपदेश दिया । फलस्वरूप ठिकाना नवाइ के माजी साहब श्रीमती अमानकुंवरबाई ने एक-एक बकरा प्रतिवर्ष अमर करने का प्रण लिया । तथा एकादशी को हरी लीलोत्री नहीं खाने की एवं आजीवन मूले का त्याग किया । चारण सरदार श्रीमान् जोधदानजी कुशलगढ ( डिडवाना) निवासी यहां के ठिकाने में कामदार थे । उन्होंने एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, जन्माष्टमी, वैशाखमास, श्राद्धपक्ष में दारु, मांस तथा शिकार का त्याग किया और बन सके वहां तक किसी भी प्राणी पर गोली नहीं चलाने का अभिवचन दिया । यहां गांव बाहर तालाव उपर वृक्ष के नीचे महाराज श्री ने रात्रि निवास किया । प्रातः ३० अप्रैल को छ मील का विहार कर आप पंचपद्रा पधारे। यहां जैन स्थानकवासियों के करीबन ४० घर हैं एवं १०० घर तेरह पन्थियों के एवं बी घर वीरपन्थियों के हैं। यहां रहने के लिए श्रावकों ने अत्यन्त आग्रह किया किन्तु आगे कराची शीघ्र पहुँचने की इच्छा से शाम को पांच बजे विहार कर दिया । तोन मील पर एक रामदेवजी के चबुतरे के पास वृक्ष के नीचे रात्रि निवास किया । रास्ते में चलते गांव दिवानदी का एक हरिजन भाई मिला । महाराज श्री ने उसे उपदेश दिया । उपदेश से प्रभावित हो कर उसने दारु, मांस का आजीवन के लिए त्याग कर दिया । रात में दो राहगीर आये उनमें एक तो कडलू के ठाकुर श्रीमान् बालसिंहजी साहेब थे उन्होंने महाराजश्री के उपदेश से ३४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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