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________________ २६४ वृक्ष के नीचे विश्राम किया । यहीं रात्रि व्यतीत की । प्रातः हुआ और आगे की ओर प्रयाण कर दिया आगोलाई से बारह मील का रास्ता पार करके २७ अप्रैल को आप मण्डली पधारे । यहां श्रावकों के ४-५ घर थे । श्रीमान् आसारामजी ओसवाल यहाँ के मुख्य श्रावक है । इन्हों ने महाराज श्री के उपदेश से प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमर करने की प्रतिज्ञा ली । दुपहर में व्याख्यान हुआ । यहां पल्लिवाल ब्राह्मणों के कई घर । इन सब ने महाराज श्री का प्रवचन सुना । कई लोगों ने एकादशी के दिन हल न चलाने की प्रतिज्ञा ली । श्रीमान् हरजी पल्लीवाल ने प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमर करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की । श्रीमती चुन्नीबाई पल्लीवाल ने एकादशी अमावस्या को हरी लीलोती नहीं खाने का प्रण किया । इस प्रकार वीतराग वाणी के माध्यम से मानव जीवन के महत्व, कतव्यों एवं विशेषता का अपने प्रभावशाली प्रवचनों से मानवों को पावन करते हुए आगे बिहार कर दिया । २८ अप्रैल ओ आपने थोब की ओर बिहार कर दिया । आठ मील का विहार कर आप थोब पधारे । यहां श्रावकों के २० घर हैं जिनमें ७-८ घर तेरह पन्थियों के भी थे । यहां दोनों संप्रदाय के लोगों में अच्छा स्नेह भाव था ! साधु सन्तों के अनुरागी एवं आहार पानी आदि से सन्तों को प्रतिला भित करने में विशेष श्रद्धा शील थे । मध्याह्न में महाराज श्री का प्रवचन हुआ प्रवचन में सभी सम्प्रदाय के लोग एवं अजैन जनता बडी संख्या में उपस्थित हुई । महाराज श्री ने मानव जीवन की दुर्लभता बताते हुए अपने प्रवचन में फरमाया नरेषु चक्री त्रिदशेषु वज्री मृगेषु सिंहः प्रशमो व्रतेषु । मतो महीभृत्सु सुवर्णशैलो भवेषु मानुष्यभवः प्रधानम् ॥१॥ जिस प्रकार मानव लोक में चक्रवर्ती, स्वर्गलोक में इन्द्र, पशुओं में सिंह व्रतों में प्रशम भाव और पर्वतों में स्वर्ण गिरि प्रधान है— श्रेष्ट है उसी प्रकार संसार के सब जन्मों में मनुष्य जन्म सर्व श्रेष्ट है । महामारत में व्यासजी भी इसी बात को पुष्ट करते हुए कहते हैं " गुह्यं ब्रह्म तदिदं ब्रवीमि नहि मानु बातू श्रेष्ठतरं हि किञ्चित्" आओ ! मै तुम्हें एक रहस्य की बात बताउं ? यह अच्छो तरह मन में दृढ करलो कि संसार में मनुष्य से बढकर और कोई श्रेष्ठ नहीं है । उर्दू के एक महान शायर भी इसी बात को दुहराते हैं- 1 " फरिस्ते से बढकर है इन्सान बनना । मगर इसमें पडती है मेहनत जियादा || " 1 सन्तान ये सब तो मानव सारे संसार का श्रेष्ठतम प्राणी है । किन्तु जरा सोचिए यह श्रेष्ठता किस बात की है ! मनुष्य के पास ऐसा क्या तत्त्व है क्या विशेषतो कि जिसके बल पर वह देवता से भी श्रेष्ट बन गया है देवता भी जिनके चरणों का स्पर्श कर अपने को धन्य मानते हैं । रूप, आकृति, बल मनुष्य से भी अधिक अन्य प्राणियों में पाया जाता है । किन्तु मनुष्य के पास एक सबसे बडी शक्ति है। आत्मा से परमात्मा बनना । परमात्मा बनने के लिए आत्मिक गुणों का विकाश करना अनिवार्य है । एक विचारक ने ठीक ही कहा An honest man is the noblest work of God अर्थात् इमानदार मनुष्य ईश्वर को सर्वोत्तम कृति है । मनुष्य होकर भी जो दूसरों का उपकार करना नहीं जानते उसके जीवन को धिक्कार है । उससे धन्य तो पशु ही है जिनका चमडा तक दूसरों के काम में आता है । मानव का दानब बनाना उसकी हार है मानव का महा मानव होना उसका चमत्कार है और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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