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________________ २६७ होता है और बिजा सिद्धान्त का जीवन वैसा ही होता है जैसा कि बिना पतवार का जहाज जिस तरह बिना पतवार का जहाज मारा मारा फिरेगा, उसी तरह धर्महीन मनुष्य भी संसार सागर में इधर से उधर मारा मारा फिरेगा और अपने अभीष्ट स्थान तक नहीं पहुँचेगा । 1 महाराज श्री का यह सारगर्भित प्रवचन सुनकर पं० परशुरामजी आदि विद्वद्मण्डली एवं अग्रवाल भाई आदि अनेक जैन अजैन जनता बडी प्रभावित हुई । प्रवचन के बाद खड़े हो कर महाराज श्री से स्थानीय जनता ने आग्रह किया कि " आपके दो चार सार्वजनिक प्रवचन यहां हो जाय तो बडा उपकार होगा और अनेक व्यक्ति दारु, मांस जीवहिंसा का त्याग करेंगे ।" महाराज श्री ने फरमाया - लोगों को सन्मार्ग बताना तो हमारा दैनिक कार्य ही है किन्तु चातुर्मास का समय अत्यन्त समीप आता जा रहा है। और कराची चातुर्मास के कुछ दिन पहले वहाँ पहुंचना भी अनिवार्य है। कराची का मार्ग भी सुगम नहीं है । मध्यान के समय रेल्वे असिस्टेन्ड मास्टर साहब श्री गुमानसिंहजी साहब ने एवं डॉक्टर साहब श्री विजयराजजी ने जो कि जोधपुर के निवासी पुष्करणा ब्राह्मण थे। महाराज श्री के साथ डेढ घण्डे तक विविध विषय पर तात्विक चर्चाएं की और खूब सन्तोष का अनुभव किया और यथाशक्ति त्याग लिये । यहां स्टेशन के समीप रमजान नामका घोसी ( गूजर ) मुसलमान रहता था उसने महाराज श्री का प्रवचन सुनकर जीवहिंसा और मांसाहार का त्याग किया। उसके घरवालों ने भी यही प्रतिशा की अन्य भी अनेक व्यक्तियों ने यथाशक्ति महाराज श्री से त्याग ग्रहण किये। स्थानीय श्री संघ का अत्यन्त आग्रह होने पर भी महाराज श्री ने अपने मुनियों के साथ ३ मई को सायंकाल में विहार कर दिया । बालोतरा का विशाल जनसमूह दूर तक महाराज श्री को पहुँचाने गया और मांगलिक अवणकर लौट आया। महाराज श्री करीब तीन मील का विहार कर एक वृक्ष के नीचे रात्रि निवास किया। बालोतरा निवासी चार पाँच व्यक्ति भी महाराज श्री की सेवा में रात में वृक्ष के नीचे ही रहे। प्रातः होते ही महाराज श्री ने ४ मई को विहार कर दिया और दश मील का लम्बा विहार कर तिलवाडा पहुँचे । बालोतरा के कुछ व्यक्ति भी यहां तक महाराज श्री की सेवा में रहे । यहां चैत्र मास में चैत्री मेला भरता है। हजारों बैल आदि पशु बेचने के लिए आते हैं । हजारों रुपयों के पशुओं का लेन देन का व्यवहार होता है । पन्द्रह दिन तक सरकारी झन्डा रोपा रहता है। सरकार की ओर से यात्रियों की समुचित व्यवस्था रहती है । और । उनकी सुरक्षा का प्रबन्ध भी बहुत अच्छा रहता है । इसी गांव के समीप एक बडी सुन्दर नदी भी है । मेला विशाल नदी के प्रांगन में भरता है । जब मेला लगता है तब अपने अपने गांव वाले छोटे छोटे खड्डे (कुइयां खोदते हैं। उनमें कुछ नजदीक ही पानी आजाता है। यहां चमत्कार यह सुना है कि जिस गांव के लोग जो खड्डा खोदते हैं उसमें उन उन गांव के पानी का स्वाद उसमें होगा। जिस गांव का कडवा या मीठा या फीका पानी हो वेसा ही स्वाद उनकी कुइयों में भी आता है । यह मेला चैत्रवदि ग्यारस से चैत्र शुक्ला ग्यारस तक लगता है । इस मेले के अवसर पर हमें मालानी प्रदेश की संस्कृति वेश भूषा एवं भाषा के दर्शन होते हैं। तिलवाडा मालानी प्रदेश के अंतर्गत आता है । तिलवाडा से खोखरे पार तक का प्रदेश ब्रिटीश साम्राज्य के आधीन था । बाद में यह जोधपुर के कब्जे में आ गया। जोधपुर के राजा वोरंमद और मल्लीनाथ ये दोनों सगे भाई थे। मल्लीनाथ बडा धार्मिक पुरुष था। इनका दूसरा नाम मालानी था । इन्हींके नाम से यह प्रदेश प्रसिद्ध हुआ । इस प्रांत में षष्ठी विभक्ति का प्रत्यय 'अणी' होता है। यहां बहुत व्यक्ति के नाम के पीछे भी 'अणी' का प्रयोग होता है । जैसे लालचन्द का पिता अगर खेताजी है तो यहां लालचन्द खेताणी के नाम से पुकारा जाता है। मालाणी वडा वीर पुरुष था । इसने अनेक स्थल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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