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________________ २६२ प्रातः २० अप्रैल को विहार कर महाराज श्री जुड पधारे । वोसणी से जुड ७ मील है । उमरदानजी साहब बाराट यहां तक पहुँचाने आये । यहां श्रावकों के ४-५ घर थे । सेठ हुकुमीचन्दजी सा. अत्यन्त श्रद्धालु एवं श्रावकों में अगवानी थे । महाराज श्री सन्त मंडलो सहित रावले में बिराजे । सायंकाल के समय विहार कर दो मोल पर उम्मेदनगर पधारे । यहाँ रावले के तिबारों में रात्रि विश्राम किया । प्रातः लधुतपस्वीजी श्री मांगीलालजी महाराज के यहां तेले का पारणा हुआ । पारने के पश्चात् महाराज श्री ने २१ अप्रैल को विहार कर दिया । तीन मोल का विहार कर आप मथाणियां पधारे ।। मथानियां संघ महाराज श्री का स्वागत करने के लिए एक मील सामने आया । बडे समारोह के साथ सन्तों को गाम में ले आये । दूसरे रोज २२ अप्रैल को व्याख्यान हुआ । यहां का श्री संघ वड़ा धर्मानुरागी था । गुरुदेव की अच्छो सेवा की और अपनी धर्म श्रद्धा का परिचय दिया। यहा श्रीमान जोरावरमलजी सा० अत्यन्त श्रद्धालु व्यक्ति थे । इन्होंने महाराज की अच्छी सेवा की । शाम को विहार हुआ । स्थानीय श्रावक श्राविकाएं दूर तक महाराज श्री को पहुंचाने आये । रात को जंगल के भीतर सूनी झोपडी में विश्राम किया । __२३ अप्रैल को प्रातःकाल यहां तिवरी से तपस्वी बखतावरमलजी लूकड छह उपवासों का पारणा करके ऊंट सवारी से मथाणिये महाराजश्री के दर्शन को आये । वहाँ से विहार सुनकर मथानियां वाले मोहनलालजी के साथ जंगल में पहुंचे जहां कि महाराज श्री विराजे थे । दिन सम्बन्धी आज्ञा में बेला (छठम) की प्रतिज्ञा ली । तिवरी पधारने के लिए महाराज श्री से बडे आग्रहपूर्वक विनती की । किन्तु महाराजश्रीको कराची शीघ्र पहुँचने की भावना से उनकी विनती को मुनिश्री ने अस्वीकृत कर दिया । - मुनिश्री ने २३ अप्रैल को प्रातः अपने मुनिजनों के साथ 'इन्द्रोंको' नामक गांव की ओर विहार कर दिया । ८ मील का लम्बा विहार कर आप इन्द्रोंको पधारे । यहां श्रावकों के ४-५ घर है । श्रीयुत राणीदानजी संचेती ने अपने सुपुत्र मिश्रीमल के जन्म दिन पौष सुदी दसम के रोज महाराज श्री के आगमन की खुशी में प्रतिवर्ष एक बकरा अमर करने की और उस दिन ब्रह्मचर्य व्रत पालने की प्रतिज्ञा ग्रहण की। श्रीमान् जेठमलजो साहब ने भी महाराज श्री के प्रति अपनी विशेष श्रद्धा का परिचय दिया । दो मील का विहार कर महाराजश्री बेरु पधारे । यहां रात्रि में एक मन्दिर में विश्राम किया । मन्दिर के महन्त जानकीदासजी बडे योग्य व्यक्ति थे । रात को महाराज श्री का प्रवचन हुआ। यहां के ठाकुर साहब श्रीमान् शेरसिंहजी ने सपरिवार महाराज श्री का प्रवचन सुना । उपदेश से बडे हि प्रभावित हो ठाकुर साह ब की भूआ श्रीमती इन्द्रकुंवरोबाई ने तथा ठकुरानी सा० श्रीमती मोहनकुंवरो बाई ने तथा अन्य परिवार के सदस्यों ने जीव हिंसा मांस, मदिरा एवं रात्रि भोजन हरी लीलोती का त्याग किया । एकादशी, अमा. वस्या आदि खास-खास तिथि में उपरोक्त व्रत रखने की प्रतिज्ञा ग्रहण की । ठाकुर साहब ने भी जीवदया का पट्टा लिख कर दिया । अन्य भी अनेक परोपकार के कार्य हुए। २४ अप्रैल को प्रातः ५ मील का विहार कर महाराज श्री केरु पधारे । यहाँ पर श्रावकों के ८ १० घर हैं । दुपहर को जैन मन्दिर में महाराज श्री का प्रवचन हुआ । रावले से मां साहब श्रीमती महताबबाईजी ने एक रोज रहने को अर्ज कराई । एक बकरा प्रति वर्ष अमर करने का प्रण लिया। सायंकाल में विहार हुआ । मार्ग में दो कोस के करीब चलने पर पहाड की तलहटी में एक वृक्ष के नीचे रात्रि निवास किया। प्रातः २५ अप्रेल को केरू से ६ मील लम्बा विहार कर बंमोर पधारे । यहाँ श्रावकों के तीन घर है । तीनों बडे भक्ति एवं सेवाभावी है । जैन अजैन जनता ने बडी संख्या में महाराज श्री का प्रवचन सुना । महाराज श्री के प्रवचन से प्रभावित हो यहाँ के तीनों श्रावकों ने प्रतिवर्ष एक-एक बकरा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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