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के प्रवचन से प्रभावित होकर स्थानीय लोगोंने बडी मात्रा में त्याग प्रत्याख्यान किये । शाम को करीब ४॥ बजे महाराज श्री ने अपने मुनिवरों के साथ विहार किया । गांव का जन समूह दूर तक आपको पहुंचाने गया । मांगलिगक श्रवणकर वापस लौटा । यहां से करीब ४ मील पर जंगल में जाटों की ढाणी के समीप एक वृक्ष के नीचे रात बिताई ।
१७ अप्रेल को प्रातः विहार हुआ । रास्ते में बडे बडे काले जहरीले नाग मिले । उन्होंने किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाई । मार्ग के किनारे खडे सर्पराज को इस मुद्रा में दृष्टिगोचर होते थे मानों अहिंसा के पूजारी सन्तों का अत्यन्त प्रेम भाव से स्वागत कर रहैं हों ।
कुछ सन्त आगे निकल गये । और चलते हुवे रास्तेमें आगे जाकर मार्ग भूल गये । बहुत देर तक खेतों में एवं उज्जड भूमि में चक्कर लगाते रहे साथ में नागौर वाले पं० श्री मूलचन्दजी व्यास भी थे। दिन को
धीक थी। प्यास अधिक चले जाने से गर्मी का प्रकोप बढ़ गया। सूर्य की प्रचण्ड किरणे मस्तिष्क को तप्त कर रहने के कारण मुनिवरों का गला सूख गया । बडी कठिनाई के बाद मार्ग मिला । करीब एक डेढ बजे मुनिगण धणायरी (बडी) गांव में पहुंचे। यहां श्रावकों के ८-९- घर थे। श्रीयत चन्नीलालजो सेठियां बडे भक्त और मुखिया थे। आपने बडी अच्छी धर्म दलाली की महाराज श्री को अत्यन्त आग्रह कर रोक लिया । पक्खी प्रतिक्रमण यहीं किया। रात्रि में महाराज श्री के प्रवचन की सूचना सारे ग वालों को दी गई। ग्राम की विशाल जना ने महाराज श्री का प्रवचन सुना । अनेक लोगों ने जीव हिंसा
कार, दारु, मांस ओदि दुर्व्यसनों का त्याग किया। यहां ठाकुर साहेब श्रीमान् हरिसिंहजी साहब ने भी महाराज श्री का प्रवचन सुना और जीव हिंसा न करने का पट्टा लिखकर महाराज श्री को भेट किया ।
१८ अठारह अप्रेल को प्रातः महाराज श्री विहार कर नान्दिया पधारे । नान्दियां धनायरी से ६ मील है । यहां श्रावकों के ५-७ घर है । दुपहर में व्याख्यान हुआ । यहां के ठाकुर साहब इन्द्रसिंह जो के भंवर साहब पद्मसिंहजी ने निरपराध प्राणियों पर गोली चलाने का त्याग किया । अन्य लोगों ने भी यथा शक्ति त्याग प्रत्याख्यान किये । यहां से सायंकाल को महाराज श्री ने विहार कर दिया । नान्दियां से विहार कर दो मील पर जेतियास पधारे । यहां रात को मन्दिर में ठहरे । ठाकुर साहब गुमानसिंहजी ने रावले में जो मन्दिर के पास ही था व्याख्यान कराया महाराजश्री ने अपने व्याख्यान में जीव-दया का महत्व समझाया । प्रवचन से प्रभावित हो ठाकुर साहब ने महाराज श्री को जीव दया का पट्टा लिखकर भेट किया । ग्रामीन जनता ने भी तरह तरह के त्याग किये ।
१८ अप्रेल को विहार कर महाराज श्री ७ मील पर स्थित डावरा गांव में पधारे । यहां श्रावकों के ७-८ घर थे । अमोलकचन्दजी . सा० देशलहरा यहां के मुख्य श्रावक थे। धार्मिक श्रद्धा भो आपकी बहुत अच्छी थी। आपने महाराज श्री के आगमन की सूचना समस्त गांव वालों को दी दुपहर में सार्वजनिक व्याख्यान हुआ। सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित हुए । महाराज श्री ने अहिंसा पर प्रवचन दिया । प्रवचन सुनकर स्थानीय सरदारों ने अहिंसा के पट्टे लिख दिये और जीव हिंसा न करते की प्रतीज्ञा की ।
सायंकाल को डावरा से महाराज श्री ने अपनी सन्तमण्डली के साथ विहार कर दिया । श्रीमान अमोलकचन्दजी सा. देश लहरा भी महाराजश्री के विहार में साथ में थे । दो मील पर चारणों की वासनी में पधारे । यहीं रात्रि निवास किया । प्रवचन हुआ । उपदेश सुनकर बारोट भाई बहनों ने दारु, मांस शिकार नहीं करने एवं जीव दया का पट्टा लिख दिया। यहां चारणों के सरदार श्रीमान उमरदानजी साहब बडे श्रद्धालु व्यक्ति थे । इन्होंने महाराज श्री की बडी भक्ति की।
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