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________________ २५५ सेवामें उपस्थित हुआ । और नागोर पधारने की प्रार्थना करने लगा । श्रावकों के भक्ति भाव पूर्ण ओग्रह को टालना मुनिश्री के लिए कठिन हो गया । ___ महाराजश्री ने द्रव्य क्षेत्र काल भाव के अनुसार चातुर्मास समाप्ति के बाद नागोर फरसने का भाव प्रदर्शित किया । कुचेरा का चिरस्मरणीय चातुर्मास पूर्ण हुआ । और महाराजश्री ने मार्ग शीर्ष कृष्णा प्रतिपदा को अपने आठ मुनिराजों के साथ नागोर की ओर विहार कर दिया। कुचेरा के विशाल जन समूह ने अभिने नयनों से आप को दूर तक पहुचाकर विदा किये । मांगलिक श्रवण कर सैकडों व्यक्तियों ने यथा शक्ति त्याग प्रत्याख्यान ग्रहण किये। विहार करते हुए आप नागोर पधारे । नागोर के विशाल पंचायतो नोहरे में आप अपनी सन्त मण्डली के साथ बिराजे । आपके प्रतिदिन व्याख्यान होने लगे । व्याख्यान प्रभावशाली होने से परिषदा दिन प्रति दिन बढ़ने लगो । धर्मध्याय खुब होने लगा। जैन जैनेनतर एवं राज कर्मचारीगण बड़ी संख्या में आप के व्याख्यान श्रवण करने लगे। यहां का संघ उत्तम सन्तों का अनुरागी और उदार विचारवाला होने से महाराज श्री की अच्छी सेवा की। जिस समय महाराज श्री आठ ठाने से बीकानेर बिराज रहे थे उस समय मोगामण्डी (पंजाब) के डॉक्टर मथुराप्रसादजीको बीकानेर के सेठ हजारीमलजी साहब ने अपने आंखों की चिकित्सा कराने के लिए बुलाया था । उस समय श्रावकों के आग्रह से डॉक्टर साहब भी महाराज श्री के दर्शन के लिए पधारे। डॉक्टर ने सभी मुनिराजों के आंखों को देखा। महाराज श्री ने डॉक्टर साहब को कहा-आप बडे पुण्यवान है । दुनियां में और भी कई डॉक्टर है किन्तु आपको सहज ही में सन्तों की सेवा का अवसर मिला है । सन्तों की निस्वार्थ बुद्धि से सेवा करने का फल कछ ओर ही होता है। निस्वार्थ सेवासे आपके हाथों में यश ही प्राप्त होगा ? महाराजश्री की वाणी का डॉक्टर साहब पर अच्छा असर पडा । उस समय डॉक्टर साहब तो चले गये किन्तु महाराज श्री की उपदेशप्रद वाणी को नहीं भूले । कुछ वर्ष के बाद मारवाड में प्रसंग वश डॉक्टर साहब को कार्यवश जोधपुर शहर आना पडा । जोधपुर के श्रावकों को इस बात का पता लगा तो उन्होंने महाराज श्री घासीलालजी म. का परिचय दिया । पूज्य महाराजश्री का स्मरण होते ही डॉक्टर साहब ने श्रद्धासे नमस्कार किया और श्रावकों से कहा-कहिए मैं महाराजश्री की क्या सेवा कर सकता हूं । श्रावकों ने कहा-महाराजश्री के साथ तपस्वीजी श्री सुत्दरलालजी म० नामके सन्त है उनके ओखो का इलाज करना है । यदि आप नागोर महाराजश्री की सेवा में पधारे तो अत्युत्तम होगा। डॉक्टर साहब ने कहा-मैं ता० २६ को नागोर आ रहा हूं । उस समय महाराजश्री के दर्शन करूंगा । इधर नागोर में कुछ दिन बिराजकर महाराजश्रीने नोखामण्डी की तरफ विहार कर दिया था। डाक्टर साहब के नागोर आने की सूचना श्रावकों के द्वारा मिलने पर वापीस महाराजश्री सन्तों के साथ नागोर पधार गये। डॉक्टर साहब महाराजश्री के पास आये और तपस्वीजीश्री सुन्दरलालजी महाराज की आंखों को देखा । आंख देखकर डाक्टर ने तत्काल ऑपरेशन की आवश्यकता बताई। महाराजश्रो ने भो उचित अवसर देखकर ऑपरेशन को आज्ञो प्रदान कर दो। नागेर के श्रावकों ने डॉक्टर को फीस के रूप में देने के लिए एक हजार रुपया एकत्र कर लिया था । ऑपरेशन के समय महाराज श्री ने सहज ही में डॉक्टर साहब में कहा --डॉक्टर साहब ! आर जितनी फीस कम लगे उतना हि दोष हमें कम लगेगा । डाक्टर साहेव ने कहा-आदर्णीय गुरुदेव मैं आपका डॉक्टर हूं । और शिष्य भी हूं। आपकी सेवा करना तो मेरा परम कर्तव्य है । मैं आप से फीस कैसे ले सकता हूं। मुझे जो यह सेवा का अवसर मिला है यह मेरे लिए सौभाग्य का विषय है । केवल आप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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