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________________ २५४ पूनम ये तीन दिन के लिए मैं किसी जानवर के उपर गोलीमार कर सीकार नहीं करूगा । ३ भिंडी और तोरू आजन्मतक खाने के वास्ते त्याग करता हूँ। १९९१ मी० भादवासुदी १५ दः बक्सुलालदरडा का है ठाकर साहब के हुकुम सु दः जैतसिंह ठाकुर श्रीमान महाराज श्री १००८ श्री घासीलालजी म० सा० ठा० ८ से कुचेरा में चातुर्मास विराजमान थे। श्रीमान ठाकुर साहब श्री श्री फत्तेसिंहजी साहेब ठिकाना नोखा से दरसण के वास्ते पधारे । तपस्वीजी महाराज श्री सुन्दरलालजी म० साहेब के तपस्या दिन ९१ का पूर हुआ, उसको खुशो में नीचे माफिक त्याग फरमाये उसकी यादी १-होरण की शिकार नहीं करना । मांस नहीं अरोगणा। आजन्म तक मने त्याग है। २-११, १४-१५, “ और अमावस इन पाँच तिथियों में मैं शिकार करना आजन्म के लिए त्याग करता हैं । ३-हरसाल १ एक बकरा अमरकरदेउंगा । १९९१ मिती भादवासुदी १५ ___दः बक्सुलाल रा छे ठाकुर साहब श्री फत्तेसिंहजी रा हुकुमसु श्री श्रीमान महाराज श्री १००८ श्री घासीलालजी महाराज ठा० ८ से कुचेरा में चातुर्मास विराजे थे। देवीसिंहजी ठिकाना मुडियाद से दरशन करने को आवा । तपस्वीराज श्री १००८ श्री सुन्दरलालजी म. सा० के तपस्या दिन ९१ का पूर हुआ । उसकी खुशी में नोचे माफिक त्याग किया। १ कोले का शाक नहीं खाना । २ आलू नहीं खाना । ३ जहां तक हो सकेगा वहां तक फालतू जीवहिंसा कदापी न करूंगा, नहीं करावू गा । ४ हरसाल खाजरू १ एक अमर कर दूंगा । मिति भादसुदी १५ संमत १९९१ दः देवीसोंह इस प्रकार के अनेक पट्टे लिखकर पं. रत्न श्री घासीलालजी महाराज श्री की सेवामें भेट किये । इसके अतिरिक्त स्थानीय व्यक्तियों ने भी बड़ी संख्या में बीडी, सिगारेट दारु मांस परस्त्रीगमन शिकार जीवहिंसा जैसे अनेक दुर्व्यसनों का त्याग किया । यहां पर्युषण पर्व बडे समारोह के साथ मनाया गया । मारवाड, मालवा, गुजरात, महाराष्ट्र उ बंगाल आदि प्रान्तों के अनेक श्रावक और श्राविकाने महापर्व पयुर्षण के दिनों में महाराजश्री के दर्शनकर अपने को धन्य माना । स्थानीय श्रावकोंने भी आगन्तुक सज्जनों की अपूर्व सेवा की । श्री रणवीर तेजाजी के वंशज श्रीमान् राधाकिसनजी सोहेब उस समय गांव के चौधरी थे एवं श्रीमान बलदेवराजजी जोधपुर सिटी पुलिस सुपरिडेन्ट ने चातुर्मास काल में महाराज श्री की बडी भक्ति की । आपके पूर्वजों ने जोधपुर सरकार की बडी इमानदारी से सेवा बजाई थी, जिससे सरकार ने आपको मिरघा पदवी से विभषित किया था । और जागीर में ग्राम भी प्रदान किया गया था । जैसे आपके पूर्वजों ने सरकार की सेवा बजाई वैसे आपने भी उस समय सरकार की सेवा बजाई थी । इतने बडे उच्च ओहदे पर रहते हुए भी आपमें महान धार्मिक श्रद्धा विशेष रूपमें थी । संन्तजनों के आप बडे अनुरागी थे । वैसे ही आपके लघुभ्राता मास्टर साहब श्री रामचन्द्रजी ने शिक्षा विभाग की अच्छी सेवा की । आप विद्वान होते हुए भी स्वभाव के बडे विनम्र सन्त भक्त एवं परमार्थी थे । इस प्रकार कुचेरा के संघ ने चातुर्मास काल में तन मन और धन से महाराज श्री की सेवाकर जैन शासन की बडी प्रभावना को । एक लम्बे अर्से से नागोर की धर्मप्रिय जनता महाराज श्री के दर्शन और उपदेश श्रवण के लिए अत्यंत उत्कंठित थी । चातुर्मास के समय नागोर से श्रीमान् लक्ष्मीमलजी, परसनमलजी, भभूतमलजी, हीरालालजी वकीलजी, बेताला राजवैद्य श्रीमान् मानकचन्दजी, आदी प्रमुख सज्जनों का एक शिष्टमण्डल महाराजश्री की • उडीसा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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