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________________ २५२ मेवाड के सैकडों ठाकुरों ने उस दिन सैकडों बकरों व पाडों को अमरिया किया । और पांच तिथियों में जीव हिंसा, मांस एवं शराब के त्याग कर एवं जीव दया के पट्टे लिख कर महाराज श्री की सेवा में भेट किये । तपस्या की पूर्णाहुति के दिन करीब ५००० मनुष्य तपस्वीजी के दर्शनार्थ आये । उपाश्रय के बाहर मैदान में व्याख्योन मण्डप सजाया गया । पूर के दिन व्याख्योता मुनिराजों के प्रवचन हुए । पंडित प्रवर श्री घासीलालजी म. ने तपस्या की महिमा पर प्रभावशाली प्रवचन दिया । उस दिन गांवके समस्त बाजार बन्द रहै । हजारों जीवो को अभयदान दिया गया । कुचेरा के संघ ने आगत सज्जनों की तन मन से अच्छी सेवा की । गांव के गरीबों को भोजन में मिष्ठान्न दिया गया। शुभकामना एवं धर्म ध्यान की प्रवृत्ति के सेकडो तार एवं पत्र आये । जिनका उस्लेव स्थानाभाव के कारण नहीं हो सका । जिन ठाकुरों ने जोर दया के पटे भेट किये उनके कुछ नमूने ये हैं - श्री श्रीमान बुताटी ठाकुर साहब श्री ५ श्री सीरदारसिंघजी साहब कुचेरा ग्राम में श्रीमान मुनि महाराजाओं के दर्शनार्थ पधारे व्याख्यान सुन मुनिश्री घोर तपस्वी श्री सुन्दरलालजी म० के दर्शन कर निम्न लिखित सोगनकर पट्टा लिव दिया । १ कोला की शाक नहीं आरोगना जावजीव तक २ हीरण की शिकार नहीं करना और ३ न उसका मांस खाना ४ कोई जानवर की घात अपने हाथ से नहीं करना याने तलवार बन्दुक से किसी को नहीं मारना ।। ५ साल में एक बकरा अमरिया कर सालोसाल याने हरसाल छोड देना, तपस्वीराज के नाम सेउपर माफिक पांचों कसम अपनी खुशी से लिख भेट की है.१९९१ का भाद्रपद सुदी १३ शुक्रवार दः सिरदारसिंघरा है (समस्त सरदारों के दस्तखत है) श्री सिद्ध श्री अलाय में जैन धर्म के सुप्रसिद्ध पं. रत्न श्री १००८ श्री घासीलालजी महाराज और तपस्वीराज श्री १००८ श्री सुन्दरलालजी म. आदि ठाना ५ से पधारना हुआ और महाराज श्री ने अपूर्व धर्मोपदेश सुनाया जिससे हम सब में धर्म की जागृति बहुत अच्छी हुई और जिस वक्त महाराज श्री का यहां से विहार हुआ उस वक्त शुद्ध प्रेमसे जो शर्ते मन्जूर करके महाराज श्री के नाम से पड़ा लिख कर भेट देने का इकरार किया था और चन्दरोज के बाद ही हमारे सौभाग्य से पं. श्री १००८ श्री मनोहरलालजी महाराज श्री मंगलचंदजी महाराज श्री मांगोलालजी महाराज आदि ठा. ४ से पधारे और मीती चैत्रकृष्णा अष्टमी गुरुवार के दिन बडे उत्साह के साथ नव दीक्षित मुनि श्री विजयचन्दजी म. की बडी दीक्षा हुई । इस सुअवसर पर यह पट्टा लिखकर महाराज श्री के कर कमलों में भेटकरता हूँ। १-अष्टमी एकादशी, पूर्णमासी और अमावस के दिन कतई शिकार नहीं किया जायगा । २-दशहरे के दिन शिकार नहीं की जायगी । ३-छमछरो अर्थात् ऋषिपंचमी के दिन अगता रखा जायगा । ४ तपस्वीराज के नाम से सालाना एक बकरा अमरिया किया जायगा । ५ भादव मास में जीवहिंसा नहीं की जायेगी । ६ जन्मअष्टमी, पार्श्वनाथजयन्ति (पौष सुद १०) महावीरजयन्ती (चेत सुद १३) और पजूषणों में ८ आठ रोज अगता रखा जायगा, और शान्तिनाथ जयन्ती (जेठ वद १३) को भी अगता रखा जायगा । ७-और जिस रोज यहां पर पं. रत्न श्री घासीलासजी महाराज पं० श्री मनोहरलालजी म. सा. का पधारना होगा तब आने जाने के दोनों रोज का अगता रखा जायगा । ये उपर लीखी शर्ते मेरा वन्श कायम रहेगा तब तक पाली जायगी। संवत १९९२ का चेत्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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