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इच्छा के विरुद्ध मारना अच्छा नहीं है । यदि मारेंगे तो भैरुजी नाराज हो जाऐंगे और वे हमारा विनाश कर देंगे ।” भक्तों ने भोपे से पूछा – हमें भैरुजी को प्रसन्न करने के लिए क्या करना होगा ? भोपे ने चट से उत्तर दिया- -आज से घी और गुड से बनी हुई मीठी वस्तुओं की प्रसादी चढाओ । तुम लोग भक्ति वश जिन पशुओं को मारने के लिये यहां लाये हो उनको कुडकी पहनाकर मेरे नाम अमर कर दो। हिंसा न करने की आज्ञा का एक शिला लेख कोतरवाकर मेरे स्थान पर गाड दो । उपस्थित भक्तों ने यह बात स्वीकार कर ली । सभी ने पशुओं को कडी पहनाकर उन्हे अमरिया करदिया । भैरुजी को मांस के स्थान पर चूरमें की मोठी प्रसादो चढाई । उसी दिन पत्थर पर हिंसा निषेध की आज्ञा कोतरवा कर बलि के स्थान पर पत्थर गाड दिया । हिंसा सदा के लिए बन्द हो गई । प्रतिवर्ष हजारों प्राणियों को अभयदान मिला | भोपा अब महाराज श्री का पूरा भक्त हो गया । वह प्रतिदिन व्याख्यान श्रवण करता । व्याख्यान का असर उस भोपे पर इतना अच्छा पड़ा कि वह सदा के लिए अहिंसक एवं शाकाहारी बन गया ।
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जोधपुर के हिंसा प्रिय कुछ अधिकारियों को महाराज श्री की हिंसा निरोध की यह कार्य वाही पसन्द नहीं आई । वे पुनः भैरुजी के स्थान पर हिंसा प्रारंभ करना चाहते थे । वे कुचेरा आऐ और भोपे को डराने धमकाने लगे । हिंसा निरोध के पत्थर को जब उखाड़ कर फेकने लगे तो भोपा बडा क्रुद्ध हुआ और बोला यह शिला लेख अब मेरे प्राण के साथ ही हटेगा। यह शिलालेख तो भैरुजी की आज्ञा का लेख है । उसे हटाने की किसी में भी ताकत नहीं है । इधर कुचेरा की जनता भी भैरुजी के स्थान पर एकत्र हो गई और अधिकारियों को चेतावनी के स्वर में बोली - यदि आप लोगों नें हिंसा को पुन, चालू किया तो इसका परिणाम आप लोगों के लिए अच्छा नहीं होगा ? जनता की इस चेतावनी का परिणाम अच्छा निकला और अधिकारी अपना छोटा मुह लेकर वापस चले गये ।
भोपे के एवं भरुजी के अहिंसक बन जाने से स्थानीय जनता की श्रद्धा महराज श्री के प्रति असीम बड़ गई । तपस्वीजी को कीर्ति में चार चान्द लग गये । कुचेरा की जैन अजैन जनता तपस्वीजी म. के आशिर्वाद प्राप्त करने के लिए बडी संख्या में आने लगी । हजारों व्यक्तियों ने हिंसा, मद्य, मांस सेवन परस्त्री मगन एवं जूआ आदि दुर्व्यसनों का त्याग किया। ज्योज्जों तपस्या का पूर समोप आता गया त्यों त्यों स्थानीय जनता में धार्मिक उत्साह भी बढने लगा । उपवास बेले तेले चोले पचोले अठाइयां दया पौषध एवं सामायिकों की बाढ़ सी आगई । तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजी महाराजने ९१ दिन की दीर्घ तपस्या की । तपस्या के पूर की सूचना की पत्रिकाओं सर्वत्र भेजी गई । पत्रिकाओं में यह सूचित किया गया था। कि तपस्वी जो के तपस्या की पूर्णाहुति के दिन सर्वत्र देवी देवताओं के स्थान पर होने वाली हिंसा बन्द की जाय । उस दिन आरंभ समारंभ की सर्व प्रवृत्ति बन्द कर सारा दिन धर्म ध्यान में व्यतीत किया जाय । विश्व शान्ति के लिए "ओम शान्ति" का जाप एवं प्रार्थना की जाय । अगता पाला जाय । उस दिन उपवास आयंबिल एकासना आदि यथा शक्ति तप किया जाय ।"
इस प्रकार के सूचना पत्र को मारवाड, मेवाड, मालवा, माहाराष्ट्र आदि प्रान्तों के गावों में भेजा गया। सैकड़ों गावों ने इस सूचना को श्रद्धा से पालन किया । आमंत्रण पत्रिका पाकर निवडी के ठाकुर साहब श्री जेतसिंहजी, नोखा के ठकार साहव श्री फत्तेसिंहजो, मुधियाड के ठाकुर साहब श्री देवीसिंहजी, गोठन के ठाकुर साहब श्री भोजराजसिंहजी, बुटाटी के ठाकुर साहब श्री सरदारसिंहजी, आदि ठाकुर अपने अपने रसाले के साथ महाराज श्री के दर्शनार्थ कुचेरा अये और जीव दया के पट्टे लिख कर पूज्य महाराज श्री को भेट किये ।
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