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________________ २५० कर रहे हैं। उनकी यह इच्छा है कि कुचेरा में देवी देवता के नाम से होने वाली हिंसा सदा के लिए बन्द हो । और यह कार्य तुम्हारी सहायता के बिना नहीं हो सकता । तुम अगर हिंसा बन्द करदोगे तो उन मूक पशुओं के आशिर्वाद से तुम्हारा जीवन सुखी बनेगा । इस प्रकार महाराज श्री ने भोपे को बहुत प्रकार से समझाया किन्तु क्रूर भोपा तनीकमात्र भी नहीं समझा । उस समय तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजी महाराज भी महाराज श्री के पास में ही बैठे थे । तपस्वीजी ने भोपे की दृढता देख कर सोचा - लातों का चमत्कार जरूर बताना होगा । यह सोच सहसा बोल उठे - " देख रे भोपे ! अगर तू मेरी देवता बातों से कभी नहीं मानेगा" इसे कुछ शाब्दिक वे क्रुध हो आंखे लालकर सिंह गर्जना करते हुए बात टाल कर हिंसा बन्द नहीं करेगा तो याद रख इसका परिणाम तेरे लिए कभी अच्छा नहीं होगा । अगर तू मेरी बात मानकर हिंसा बन्द करेगा तो सुखी होगा । वरना हिंसा का दुष्परिणाम भुगतने के लिए तैयार रह ।" तपस्वीजी की इस सिंहगर्जना से भोपा घबरा गया । उसने सोचा - सचमुच ही तपस्वीजी क्रुध होकर हमें जलकर भस्म कर देंगे । भोपा शान्त हो गया और विचार में डूब गया । तपस्त्रीजी ने पुनः गर्जना करते हुए कहा क्या सोच रहा है ? जीवहिंसा बन्द करना चाहता है या नहीं । मैं तुझे अब ज्यादा समय नहीं देना चाहता ? तपस्वीजी के इस वाक्य का प्रभाव इतना जबरदस्त पडा की भोपा भयभित हो गया । अत्यन्त नम्र हो वह बोला- तपस्वीजी म० ! आप शान्त होइये । आपकी आज्ञानुसार भाज से भैरुजी के स्थान पर एक भी जीव की हत्या नहीं होगी । भैरुजी की पूजा सात्विक पदार्थो से ही होगी । मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि एक भी प्राणी भैरुजी के नाम नहीं चढेगा । इस प्रकार विश्वास दिला कर भोपा चला गया यात्रा का समय आ गया । यह यात्रा विजयादशमो के दिन भैरुजी के स्थान पर भरती है । सभी जाती के लोग हजारों की संख्या में अपनी अपनी मानता लेकर भैरुजी की सेवा में उपस्थित होते हैं । हमेशा की तरह सैकड़ों व्यक्ति बलि चढाने के लिए भैसे, बकरे, मुर्गे आदि अनेक प्राणि लाये। ढोल और नगारों की आवाज और पशुओं की चोत्कार से बागवरण बडा भयानक दृष्टि गोचर हो रहा था । बलि चढानेवाले पशुओं को सिन्धूर आदि से सजाया गया था । वधिकों के हाथ में तेज धारवाली नंगी तलवारे चमक रही थी । भक्त गण भेरुजी की आज्ञा की प्रतीक्षा करने लगे। इधर भोपे ने भी माथा धूनना शुरु किया । हूं हूं हूं करता हुआ जोर जोर से उछलने लगा । १५-२० मिनीट तक खूब उछल कूद कर अन्त में जोरों से बोला - देखो रे भको ! मैं यहां का भैरुजी बोल रहा हूं । मैं तपस्वीजो की तपस्या से प्रसन्न होकर उनका सेवक बन गया हूँ । उनका मुझे हुकुम मिला है आज से मेरे स्थान पर एक भी पशु की बलि नहीं होगी । जो मेरे नाम पर किसी भी पशु की बलि करेगा तो मैं उसकी बलि करूंगा" यह कह कर भोपा फिर जोरों जोरों से हूँ हूँ करता हुआ माथा धूनने लगा । ओर उछल कर जमीन पर गिर पडा । कुछ क्षण अचेत रह कर बोला- देखो रे भक्तो ! आज से सदा केलिये जीव हिंसा बन्द होगी । मैं आज से किसी भी प्राणियों की बलि नहीं लूंगा । अगर किसी ने भी मेरे नाम पर जीव वध किया तो मैं उसे नष्ट कर दूंगा । इस प्रकार बोल भोपा फिर से माथा धूनने लगा । अब की बार तो भोपा इतना जोरों से उछला की वह नोचे गिर पडा । जोरों की चोट आई और माथे से खून निकलने लगा । अब लोगों को विश्वास हो गया कि भोपा जो कुछ भी कह रहा है वह सच कह रहा है । भोपा अपने मन से नहीं बोल रहा है किन्तु स्वयं भोपे के शरीर में भैरुजी आकर बोल रहें हैं। हम तो भैरुजी को प्रसन्न करने के लिए ही तो पशु मोर कर बलि चढा रहे हैं । जब भैरुजी स्वयं हिंसा नहीं चाहते हैं तो प्राणियों को भैरुजी की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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