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तब वे समय-समय पर तप का ही सहारा लेते हैं । तप से तो मानव प्रभावित होता ही है किन्तु देवगण भी तपस्वोजनों के सानिध्य में रहने के लिए बडे लालायित रहते हैं । तपस्वियों के प्रभाव से हिसंक देव भी अहिसंक बन जाते हैं । शास्त्रों में हरिकेशी मुनि जैसे तपस्वी की सेवा करने वाले देव की घटना प्रसिद्ध ही है । किन्तु कुचेरा में इन महान तपस्वियों के महात्म्य से हजारों मूक पशुओं की प्रतिवर्ष बलि लेने वाला भैरुजी भी अहिसंक बन जाता है । भैरुजी के अहिंसक बनने की घटना इस प्रकार है
कुचेरा में भैरूजी का एक प्रसिद्ध स्थान है । यहा प्रतिवर्ष हजारों आदिवासी एवं धर्मान्ध राजपूत प्रजा द्वारा हजारों बकरे, मूर्गे, पाडे आदि पशुओं की अपनी मानता के अनुसार भैरुजी के नाम पर बलि चढाई जाती थी। महाराज श्री को जब इस बात का पता चला तो उनका हृदय इस नृशंस बलि से कांप उठा । उन्होंने निश्चय किया कि इस महान भयंकर हिंसा को किसी प्रकार बन्द कराई जाय । इस घोर हिंसा को बन्ध कराने के लिए अनेको महंतों सन्तों ने प्रयत्न किये थे, किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली । जिसका कारण यह था कि यहाँ का भोपा बडा क्रूर एवं हिंसा प्रिय था । और साथ ही बडा जड बुद्धि भी । उसे समझाना बड़ा कठिन था । प्रायः ऐसे स्थानों के पंडे पुजारी एवं भोपे प्रबल कर प्रकृति के हि होते हैं । पाखण्ड और आडम्बर से भोली प्रजा को बहकाकर उनमे मा माना काम करवाते हैं। आने स्वार्थ के खातोर देवताओं के नाम पर अनेकों निरापराध प्राणियों की बलि देते रहते हैं। ऐसे पापी एवं कर व्यक्ति को समझाना सरल नहीं था । किन्तु महाराज श्री तो कृत निश्चयी थे । एक बार अवसर पाकर एक श्रावक के जरीए भोपे को अपने यहां बुलाया। भोपा आया और बड़े अक्कड के साथ महाराज श्री के पास बैठ गया।
महारज श्री ने भोपे से कहा-भोपाजी ! दुनियां में सुख कितने प्रकार के हैं ? भोपे ने कहासन्तान का सुख, धन का सुख, अच्छी पत्नी का सुख, आरोग्य का सुख, आदि सुख तो जगत में अनेक प्रकार के हैं । महाराज श्री ? क्या आपके कोई सन्तान है ! भोपा-नहीं ।
महाराज श्री क्या आपके मन में कभी सन्तान के लिए इच्छा उत्पन्न नहीं होती ?
भोपा, कौन दुनियां में ऐसा व्यक्ति होगा जिस के दिल में सन्तान की लालसा न हो । मैं तो भगवान से सन्तान के लिए प्रतिदिन प्रार्थना करता हूँ। किन्तु यह हमारे बस की बात नहीं भगवान की जब मजी होगी तभी संसार में ये सब सुख मिलते हैं ।
महाराज श्री, भोपाजी, कोई बबूल का पेड लगाकर आम की इच्छा करता है तो उसे आम मिल सकता है ? भोपा-यह कैसे हो सकता ? जो जैसा बोता है उसे वैसा हि मिलता है ।
महाराज श्री, ठीक इसी तरह संसार के सुख भी पुण्योपार्जन से ही मिलते हैं। सुख, दुःख सन्तान ये सब अपने-अपने शुभाशुभ कर्म से ही प्राप्त होते हैं । वेदव्यासजी भी यही कहते हैंशुभेन कर्मणा सौख्यं, दुःखं पापेन कर्मणा । कृतं फलति सर्वत्र नाकृतं भुज्यते क्वचित ॥
शुभ कर्म करने से सुख और पाप कर्म करने से दु:ख मिलता है । अपना किया हुआ कर्म सर्वत्र ही फल देता है । विनाकिये हुए कर्म का फल कहों नहीं भोगा जाता है । इस नियम के अनुसार दुःख देने वाले को दुःख मिलता है और सुख देने वाले को सुख । तुम जो प्रतिवर्ष भैरुजी के नाम हजारों मूक पशुओं की घोर हत्या करवाते हो, यह काम अच्छा नहीं करते हो । हिंसा करने वाला व्यक्ति मरकर दुर्गति में जाता है । इस जन्म में भी उसे सुख नहीं मिलता ओर परजन्म में भी नहीं । आज जिन निरअपराध मूक पशुओं को तुम मारते हो वे दुसरे जन्म में तुम्हें भी मारने वाले बनेंगे । हिंसा से वैर बढता हैं और वैर की परम्परा कभी समाप्त नहीं होती । तुम यदि सुखी बनना चाहते हो तो इन महान तपस्वीजी का आशिर्वाद लो। हमारे साथ इस समय तीन तपस्वीजी हैं । वे स्व पर कल्याण की भावना से इस समय उपवास
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