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________________ २४३ पत्र देकर सेमल भेजा और घासीलालजी को कहलवाया कि सम्मेलन के निमानुसार एक स्थान पर पांच सन्तों से अधिक चातुर्मास न करें । आठ सन्तों में से तपस्वी सुन्दरलालजी समीरमलजी और किसी तीसरे सन्त को मेरे पास भेज दें । लेकिन उन्होंने मेरी आज्ञा की अवहेलना की और सन्तों को ऐसा उत्तर दिया, जिससे वे निराश होकर मेरे पास लौट आये। मैंने यह भी सूचना कराई थी कि सम्मेलन के नियमानुसार धोवन पानी की तपस्या अनशन के नाम से प्रसिद्ध न की जावे । परन्तु उन्होंने इस नियम को भी तोड दिया और धोवन पानी की तपस्या भी प्रसिद्ध कर । तपस्या महोत्सव मनाने में उपदेश द्वारा भी रुकावट नहीं डाली । इसी प्रकार पक्खी के आठ चौमासी के बारह और संवत्सरी के २० लोगस्स के ध्यान विषय में साधु सम्मेलन के ठहराव का पालन नही किया । इससे मुझे यह प्रतीत हुआ कि घासोलालजी ने मावली में पंचों का फैसला और साधु सम्मेलन के ठहरावों को नहीं पालने का जो कहा उसे कार्यरूप में भी परिणत कर दिया । इतना होने पर भी रतलाम के सेठ वर्धमानजी पीतल्या आदि की प्रार्थना से मैंने उनकों आज बाहर करने की घोषणा कुछ समय के लिए ओर स्थगित रखी । पश्चात् सेमल से सन्देश आने पर उदयपुर के श्रावक मेघराजजी खिंवसरा, पन्नालालजी धर्मावत और मोतीलालजी हींगड सेमल गये । उन्होंने घासीलालजी को समझाने का बहुत प्रयत्न किया, किन्तु घासी लालजी ने अपने विचार नही बदले । तत्पश्चात् रायसाहब सेठ मोतीलालजी मुथा सतारावाले, तथा जौहरी अमृतलाल भाई बम्बई वाले भी उदयपुर आये और उन्हें समझाने सेमल गये । परन्तु उनके समझाने पर भी वे नहीं समझे और कहा- हमने कमेटी के नाम से कान्फरन्स के प्रेसिडेन्ट के पास ऐक चिट्ठी भिजवा दी है । उन्होंने अमृतलाल भाई और मोतीलालजी को उक्त चिट्ठी की नकल भी दी, जिसमें लिखा था कि हमने आयन्दा के लिऐ पूज्य श्री की आज्ञा मंगवाना भी बन्द कर दिया है, इत्यादि । वह नकल लेकर और निराश होकर मोतीलालजी और अमृतलालजी भाई उदयपुर में मुझ से मिले और नकल मुझ को दिखाई । उस नकल को देखकर मुझे खेद हुआ और मेरा कर्तव्य हो पड़ा कि अब मैं अविलम्ब उनके लिए 'संप्रदाय तथा आज्ञा बाहर' की घोषणा कर दूं । लेकिन उसी समय प्रेसिडेन्ट हेमचन्द भाई मय डेप्युटेशन के उदयपुर आये । मैने घासीलालजी सम्बन्धी सारी हकीकत उन्हें सुनाई । कोन्फरन्स के प्रसीडेन्ट जनरल सक्रेटरी सेठ मोतीलालजी तथा अमृतलाल भाई ने घासीलालजी के पत्र की नकल भी अपने हस्ताक्षरों के साथ प्रेसीडेन्ट साहब को दी । इस पर प्रेसीडेन्ट साहब ने भी मुझे यह सम्मति दी कि आप सम्मेलन के ठहराव के अनुसार उनके साथ वर्ताव कर सकते हैं । लेकिन रात को उदयपुर के कुछ भाईयों की प्रार्थना पर प्रेसीडेन्ट साहब ने मुझ से कहा कि मैं अपनी तरफ से एक चिट्ठी सेमल देता हूँ । और घासीलालजी महाराज को समझाने की कोशीश करता हूँ । अतएव आप आश्विन शुक्ला पूर्णिमा तक उनको आज्ञा बाहर करने की घोषणा न करें । मैंने प्रेसीडेन्ट साहब की इस प्रार्थना को मान देकर उनकी बात स्वीकार करली । प्रसीडेन्ट साहेब ने एक पत्र सेमल भेजा, वह घासीलालजी को मिल गया । उनके बाद उदयपुर के श्रावक थावरचन्दजी बाफना तथा रणजीतलालजो हींगड ने सेमल जाकर घासीलालजी को समझाने की पूरी कोशीश की । परन्तु उनका प्रयत्न भी निष्फल हुआ । इन दोनों के लौट आने पर उदयपुर से मदनसिंहजी कावडियो जोरावरसिंहजी भादव्या और मोहनलालजी तलेसरा सेमल गये । किन्तु घासीलालजी को समझाने में वे तीनों भी सफल न हुए । अर्थात् घासीलालजी ने किसी की कोई बात नहीं मानी । कोन्फरन्स के प्रेसीडेन्ट साहब की दी हुई अवधि (आश्विन शु० १५ ) समाप्त हो चुकी । लेकिन घासीलालजी ने मेरी आज्ञा और संप्रदाय में रहने सम्बन्धी कोई बात स्वीकार नही की । इसलिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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