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णजी के । (१३) श्री माताजी फुलारजी के । (१४) श्री माताजी देवलजी के ढानी में । अर माफिक १४ ठिकानों में जोवहिंसो होती है सो आज दिन से तपस्वीराज के व श्री एकलिंगजी श्री सुरज नारायण श्रीकरणीजी के साख से धरम का उपदेस सुन के सोगन कर जीवहिंसा बिलकुल बन्द किया सो माताजी के नाम से कोई ठिकाणे जीवहिंसा नहींकरांगा या करवावांगा नहीं बोलमा वाला लावेगा तो अमरिया कर छोडदिया जावेगा । सब देवताके मीठीपरसादी चढाई जावेगी । ये पट्टा लिखकर महाराज श्री की सेवा में भेट कर रहे हैं । समस्तगांववाला वंसपरम्परागत ये नियम पाले जावेंगे ।
संवत १९८९ ओ चैत्र वद बुधवार दः मुणीलाल राजावत मेघदानजी व समस्त गांववाला के वास्ते लिख दिया । दः समस्त बदावा चारणों का ।
सेमल गांव के बीचोबीच एक माताजी का मन्दिर हैं । यहां प्रविवर्ष नवरात्रि के दिनों में बकरे एवं पाडो की हिंसा होती है। इस वर्ष भी प्रतिवर्ष की तरह बलि चढाने के लिए बकरे और पाडे लाये गये थे । मुनि श्री को भी इस बात का पता लग गया था कि यहां नवरात्रि में बलि होती है। राजपूत भी यह जानते थे कि महाराजश्रो अवश्य ही बलिदान रुकवाएंगे। अतः इन लोगों ने बलि चढाने का कार्यक्रम रात्रि में रखा । रात्रि के समय बडी संख्या में लोग बलि देने के लिए पशुओं को देवी के सामने उपस्थित किया । महाराज श्री को जब यह मालूम हुआ तो वहां के सेठ श्री केशुलालजी राजावत तथा श्री तोलारामजी राका को बुलाकर कहा तुम अभी माताजी के स्थान में जावो और पशुओं को बलि से बचाने का प्रयत्न करो । इस पर दोनों श्रावकों ने कहा-महाराज साहब यह काम बडा असाध्य है। क्योकि बलि चढाते समय राजपूत इतने आवेश में आते हैं कि यदि हम उनके काम में किसी प्रकार का विघ्न उपस्थित करेंगे तो वे पशु के स्थान में हमारी भी बलि चढा देंगे।" महाराज श्री ने कहा मर्द होकर इतने क्यों घबराते हो। तुम लोग डरो मत । भगवान श्री शान्तिनाथ का नाम लेकर जाओ बे लोग तुम्हारा बाल भी बांका नहीं करेंगे।" तुम वहां जाकर जब पूजारी को भाव आवे तब इतना कहना कि देवी ! तपस्वीजी का आदेश है कि तमाम जीवों को अमरिया कर दिया जाय । किसी प्रकार का भय मत रखना ।
सहाराजश्री द्वारा इस प्रकार का साहस बढ़ाने पर उन्हे धीरज आया । महाराज श्री से मांगलिक सुनकर वे वहां पहुँचे । उन्होंने वहां देखा कि हाथ में लट्ठ लिए हुए कुछ लोग हिंसा का विरोध करने वालों का सामना करने के लिए खडे हुए थे । वे भयभीत तो थे परन्तु हत उत्साह नहीं हुए । वे वहीं टिके हए रहे । अर्धरात्रि के समय भोपे को भाव हुआ तो वे दोनों आगे बढे । वहां उपस्थित लोगों ने कहा---पहले हमको पूछ लेने दो । वे दोनों ठिठुर गए । परन्तु सहसा देवीवेष्ठिप्तभोपा भाव में बोल उठा । तुम आये सो मैं जान गया । तपस्वीजी महाराज ने तुमको बलिदान छुडाने को भेजा है। जाओ इन जानवरों को ले जाओ और अमर कर देवो । भाव द्वारा भोपे के इस प्रकार कहे जाने पर मलोग देखते ही रह गये और वे दोनों वहां बन्धे हुए पाडे बकरे को लेकर प्रसन्नता के साथ मुनि श्री के पास आए । गांव में जैनों की अल्प संख्या होने से सभी लोग "अब क्या होगा” इसी विचार में जाग रहे थे। जब वे दोनों जानवरों को लेकर निरापद आ गए तो सभी का हृदय प्रफुल्लित हो उठा। सभी लोग मुनि श्री के दिव्य प्रभाव से प्रभावित हए ।
सेमल चातुर्मास में खमनोर के ठाकुर साहब यदा कदा महाराजश्री का व्याख्यान सुनने आया करते थे । उदयपर से श्री जीवनसिंहजी महता, मिनिस्टर श्री तेजसिंहजी महता, माल हाकिम डाँ० श्री मोहनसिंहजी
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