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किया है, तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज ने भी इस क्षेत्र को अपने महान तपोमयजीवन से पावन किया है। यहां के निवासी बड़े भाग्य शाली थे कि जिन्हें ऐसे सन्तों के चातुर्मास का सुअवसर मिला है। इस पनित प्रसंग को सफल बनाने के लिए स्थानीय श्रीसंधने तन मन धन से सेवा की और अपनी धार्मीक भावना का परिचय दिया।
९० दिनकी तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजी महाराज की महान तपस्या की पूर्णाहुति की सूचना सर्वत्र पत्र पत्रिकाओं द्वारा भेजी गई । जिसमें उसदिन सर्वत्र जीवहिंसा की चन्दी एवं सब प्रकार के सावध व्यापार न करने का जनता को अनुरोध किया गया ।
पत्रिका के मिलने पर महाराष्ट्र, मेवाड़, राजस्थान, मध्यप्रदेश के सैकड़ो गांवों में उस दिन अगता रखा गया । उपवास आयंविल एकासना शीलवत, रात्रिभोजन आदि विविध त्याग प्रत्याख्यान रखे गये । अनेक ठाकुरों जागीरदारों एवं ठिकानदारों ने उस दिन यथा शक्ति बकरों को अम्मरिया कर दिया । जीवहिंसा बन्द रखी इसकी सूचना उन्होंने पत्र द्वारा महाराज श्री को दी । जुड़ो भोमड़ मेवाड़ के राणा रोजवीरसिंहजी ने हिंसा न करने की प्रतिज्ञा पत्र महराज श्री की सेवामें भेजा । समस्त बदावा के चारणों ने भी महाराज श्री के उपदेश से देवी देवता के नाम होनेवाली हिंसा बन्द कर प्रतिज्ञा पत्र महराज श्री को भेट किया । इन दोनों प्रतिज्ञा पत्र की प्रति लिपि इस प्रकार है। श्री एकलिंगजो श्रीराजी
नं. ४१ बाईस संप्रदाय के पण्डित प्रवर श्ची घासीलालजी महाराज का विराजना इ गुजिस्ता में वाकल पट्टे जूडा में हुआ मगर उस वक्त हम जूडे में मौजूद न होकर अहमदाबाद की तरफ थे जिससे उनके दर्शन न कर सके, अब इसवक्त हमारे अहलकार सोहनलालजी के जवानी मालूम हुआं कि उन्हीं मुनिराजों का बिराजना इस वक्त सेमल जिलाखमणोर में हैं और उन महात्माओं के साथ जो तपस्वीराज थे। उन्होंने इस साल भो ९० दिन की घोर तास्या कि लिहाजा हप नीचे मुजिब प्रतिज्ञाएं कर यह पट्टा मुनिराजों की सेवा में भेट करते हैं कि
(१) दशहरेपर एक बकरा तपस्वीराज के नामका अमरिया किया जावेगा ।
(२) एकादशी चतुर्दशी आमावस्या पूर्णिमा इन तिथियों के रोज किसी प्रकार की शिकार व राजस्थान में जीवहिंसा न होगी। (३) वैशाख में किसी प्रकार की शिकार नहीं की जावेगी । फकत असोजसुदी १ सं. १९९० ता० २०-९-३३ ईसवी शिक्का–स्वस्थान जुड़ा मेवाड । दः दरवार राजवोरसोंह श्री एकलिंगजी
श्री रामजी, सिद्ध श्री महाराज साहेब श्री १००८ श्री घासीलाजी महाराज आदि ठाना ८ श्री गाम सेमल में बिराजमान होने पर ठाना, चार से पीपड -पधारना हुआ सो किरपा कर वहां से बराकुवा होते हुए पधारना हुआ सो ठिकाना में समस्त चारण जागीरदार ठिकाना का समस्त गांव के तपस्वीराज का दर्शन कर सोगन कर अदेश सुनाया सो सुनकर अभयदान का पट्टा नीचे लीवकर महाराज श्री की सेवा में भेट कर रहे हैं।
(१) अव्वल श्री माताजी खोडारजी के (२) श्री माता जो करणोजी के । (३) श्री माताजी चामु डाजी के । (४) माताजी खेडादेवीजी के । (५) श्री माताजी भमरासाजी के । (६) श्री माताजी भैरुजी (७) श्री माताजी मामाहेलीजो के (८) श्री खेतपालजी माताजी के । (९) श्री माताजी राङाजी के (१०) श्री माताजी कालकाजी के भोविघाडाके (११) श्री माताजी अम्बावजी के । (१२) श्री माताजी रागही
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