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कि हम लोग अब किसी भी जीव को देव के नाम पर नहीं मारेंगे । मानजी स्वामी वहीं ठहरं गये और लोगों को उपदेश देकर धार्मिक प्रभावना की । बहुन वर्षों तक बलिदान बन्द रहा और बादमें लोग फिर बलिदान करने लगे । इधर महाराजश्री भो तपस्यो सुन्दालालयी महाराज के साथ खमनोर पधारे और महाराजश्री ने भैरुजी के नाम बलि न करने का गांव वालों को समझाया । महाराजश्री के उपदेश का प्रभाव गांववालों पर अच्छा पडा । तथा स्थानीय कास्तकारों ने भी उपदेश सुना । परिणाम स्वरूप भैरुजी के नाम होनेवाली हिंसा सदा के लिए बन्द हो गई । मुनिश्री ने अन्यत्र विहार कर दिया । ____ मेवाड के आस पास के क्षेत्र में विचरते समय सेमल संघ चातुर्मास के लिए कईबार विनंती करने के लिए आया । श्रावकों के अत्याग्रह को देख करके मुनिश्री ने विनतो स्वीकार की और सं. १९९० का चातुर्मास आपने सेमल में व्यतीत किया ।
तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजो महाराज ने देलवाडा रहते हुए ही तपश्वर्या प्रारंभ कर दी थी, सोलवे उपवास में आपने देलवाडा से तीन कोस के लिए विहार किया । अठारखें उपवास के समय आपने मुनिश्री के साथ सेमल चातुर्मासार्थ गाममें प्रवेश किया। सेमल गांव में केवल उस समय साधारण-घरों की वस्ती थी। वि० स. १९९० का ३२ वाँ चातुर्मास सेमल में
मेवाड़ के अनेक क्षेत्रों को पावन करते हुए हमारे चरितनायकजी श्री घासीलालजी महाराज चातुर्मासार्थ सेमल पधारे । पं मुनि श्री मनोहरलालजी म. घोरतपस्वी श्री सुन्दरलालजो महाराज, विद्याप्रेमी श्री सुमेरमलजी महाराज व्याख्यान प्रेमी श्री कन्हैयालालजी महाराज छोटे तपस्वो श्री केशुलालजी महाराज लघु मुनिश्री मंगलचन्द्रजी महाराज, एवं नव दीक्षित श्री मांगीलालजी महाराज आदि ठाना सात आपकी सेवा में थे।
इस चातुर्मास में दीर्घतपस्वीजी सुन्दरलालजी महाराज ने चौरासी दिन की लम्बी तपश्चर्या की। छौटे तपस्वीजी श्री केशुलालजी महाराज जो कि उदयपुर वाले दरबार के जेब खजानची जी अम्बालालजी के बडे पुत्र और जिन्होंने गत वर्ष में ही गोगुन्दे में बडे वैराग्यभाव से दीक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने ३१ दिन को तपश्चर्या की लघु तपस्वीजी श्री मांगीलालजी महाराज ने तेला, पचोला; अठाई तेला, सत्रह की तपस्या को तीनों तपस्याओं का पूर भादवासुदी १४ चतुर्दशी रविवार के दिन हुआ
तपस्या की पूर्णाहुति के दिन करीब छ सात हजार की जनता तपस्वीयों के दर्शन के लिए ऊपस्थित हुई । इस अवसर पर सैंकडों भील, राजपुत, जाट आदि आस पास के लोग एकत्रित हुए और तपस्वीयों के दर्शन किये । दर्शनार्थ आनेवाले सजनों ने हज़ारों तरह के त्याग ग्रहण किये, सैंकडों ने जीवहिंसा एवं शराब पीने का त्याग किया । सैकड़ों बकरों को अमरिया कर दिया गया । अनेकों ने प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमरिया करने का प्रणलिया । आनेवालो ने प्रायः सभी जनोंने कुछ न कुछ तो त्याग ग्रहण किया हो। इसके अतिरिक्त महाराज श्री के उपदेश से कन्या विक्रय, वर विक्रय, मद्य-मांससेवन तथा परस्त्रीगमन आदि अनेक पापो का श्रोताओं ने त्याग किया । कई सज्जनों ने ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया । इस अवसर पर अनेक संस्थाओं को सहायता मिली
महाराज श्री पतित-पावन हैं, आप की वाणी में उग्र संयम का तेज अन्तर्निहित रहता था कि श्रोता प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे । सेलम के श्रोतावर्ग में जहा राज्य के उच्च से ऊच्च अधिकारी
और प्रतिष्ठित से प्रतिष्ठित नागरिजन थे। वहां जूगारी शराबी एवं दुराचारी व्यक्ति भी व्याख्यान में ऊप स्थित होकर महराज श्री के प्रवचन का लाभ लेते थे । और प्रवचन से प्रभावित होकर त्याग मार्ग को
और प्रवृत्त होते थे। सेमल एक तपो भूमि है, इस क्षेत्र में अनेक तपस्वीयों ने तपस्या कर इसे पावन
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