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एवं मंगलचन्दजी महाराज ने पूज्य श्री की आज्ञानुसार ब्यावर की ओर विहार कर दिया । कुछ दिनों में ब्यावर में पूज्य हुक्मीचन्दजी महाराज की सम्प्रदाय के करीब ४५ सन्त एकत्र हो गये । पूज्य आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज का भी आगमन हो गया । ब्यावर में आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज ने अपने सम्प्रदाय के प्रमुख मुनियों के साथ साधु सम्मेलन के सम्बन्ध में विचार विमर्ष किया और संप्रदाय के संघठन को मजबूत बनाने के लिए संप्रदाय की समाचारी को परिष्कृत किया । साथ २ साधु सम्मेलन में जाने के लिए अपने सम्प्रदाय के पांच प्रमुख मुनिराजों का एक प्रतिनिधि मण्डल बनाया । उन प्रतिनिधि मुनियों की नामावली इस प्रकार है ।
(१) पं. मुनि श्री मोडीलालजी महाराज ( २ ) पं. मुनि श्री चान्दमलजी महाराज ( ३ ) पं. मुनि श्री हर्षचन्दजी महाराज ( ४ ) पं. मुनि श्री घासीलालजी महाराज ( ५ ) पं मुनि श्री पन्नालालजी महाराज प्रतिनिधि चुनने के बाद प्रमुख मुनिराजों ने आचार्य श्री के विना सम्मेलन में सम्मिलित होना उचित नहीं समझा । उन्होने आचार्य श्री से प्रार्थना की " आप हमारे नायक हैं । आप अनुभवी एवं समर्थ व्यक्ति हैं । आप अपनी दिव्य प्रतिभा से सम्मेलन को उचित मार्ग पर ले जा सकते हैं । आपका वहां पधारना अनिवार्य है । और संप्रदाय के समस्त साधु साध्वियों का आप पर पूर्ण विश्वास है । मुनिराजों के इस आग्रह पर आचार्य श्री ने कहा कि "यदि आप सब लोगों का यही आग्रह है तो मैं स्वयं संघ का प्रतिनिधि बन कर सम्मेलन में जाउंगा और वहां जो कुछ भी निर्णय में करूंगा उसे आपलोगों को स्वीकार करना होगा ।" इस पर उपस्थित सभी मुनिराजों ने आचार्य श्री के निर्णय को मान्य करने वाले पत्र पर हस्ताक्षर कर वह पत्र पूज्य श्री को दे दिया ।
उस पत्र की प्रतिलिपि इस प्रकार थी
श्रीमान् निज पर शास्त्र सिद्धान्त तत्त्वरत्नाकर, विद्वन्मुकुट चिन्तामणि भव्यजनमानसराजहंस, भक्तगण कमलविकासन प्रभाकर, वाणीसुधासुधाकर, गाम्भीर्य - धैर्य माधुर्य, औदार्य शान्ति दया दाक्षिण्यादि सद्गुणगण परिपूर्ण, रमणीयविशाल भवन ऐक्येच्छुक शिरोमणि, ज्ञानादिरत्नमय संरक्षक, सिरताज जैनाचार्य पूज्यपाद श्री १००८ श्री श्री जवाहरलालजी महाराज के चरणकमलों में सर्वसंभोगी मुनिमण्डल की यह सविनय प्रार्थना है कि आप जिन शासन के उत्थान के लिए जैनसाधुसम्मेलन अजमेर में पधार कर जो कार्य करेंगे वह हमें सर्वथा मान्य होगा । संवत १९८९ माघ शुक्ला ९ शनिवार [सभी उपस्थित मुनियों के हस्ताक्षर ]
ब्यावर से आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज ने अजमेर साधुसम्मेलन की ओर विहार कर दिया । अजमेर साधुसम्मेलन ता० ५ एप्रिल १९३३ मिति चैत्र शुक्ला दसमी के दिन आचार्य श्री सम्मेलन की कार्यवाही में सम्मिलित हो गये । सम्मेलन में साधु एवं श्रावकसंघ को एकत्रित करने के अनेक प्रस्ताव पास हुए।
अजमेर साधु सम्मेलन के अवसर पर ही आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज ने पंडित प्रवरश्री घासीलालजी महाराज से बिना बिचारे ही गणेशीलालजी महाराज को [ जो अत्रने मूलव्रत के खण्डन के कारण अपनी संप्रदाय में एक चर्चास्पद व्यक्ति बने हुए थे । ] युवाचार्य बनाने का निर्णय कर लिया । जब पंडित प्रवर श्री घासीलालजी महाराज को इस बात का पता चला तो उन्होंने कड़ा विरोध किया । श्रीघासीलालजी महाराज के विरोध की उपेक्षा कर जावदगांव में फाल्गुण शुक्ला ३ सं. १९९० को श्री गणेशीलालजी महाराज को युवाचार्य पदवी से विभूषित कर दिया । इस बात को लेकर दोनों गुरु शिष्य का संघर्ष बढने का मुख्य कारण यही था । एक दिन सेमलगांव के ओसवाल समाज को जनरल मिटिंग हुई जिसमें समाज में इकट्ठे हुए रुपयों को एक दूसरे को रखने का आग्रह कर रहे थे परन्तु कोई भी पंचायती
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