SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४ सेमल के श्रावकों ने आपका भव्य स्वागत किया । प्रतिदिन आपके प्रवचन होने लगे । महाराज श्री कि भव्य व्याख्यान शैली से प्रभावित हो श्रावकों ने होली चातुर्मास तक सेमल में ही बिराजने की विनंती की । महाराज श्री ने श्रावकों की उत्कृष्ट भावना देख कर फाल्गुनी पूर्णिमा तक सेमल में रहने की विनंती मोनली । आपके प्रभाव पूर्ण उपदेश से कईयों ने मद्य, मांस ऐवं जीवहिंसा परस्त्री गमन आदि दूरव्यसनों का त्याग किया। ____दया पौषध सामायिके उपवास आदि धर्म ध्यान अच्छी मात्रा में हुवे । आसपासके लोग भी बडी संख्या में महाराजश्री के दर्शनार्थ आये, बडा उपकार हुआ । होलोका भव्य चातुर्मास समाप्त कर आप का अपनी मुनि मण्डली के साथ विहार हुवा । रास्ते में जिसप्रकार सूर्य की सब पर समान दृष्टि रहती है उसी प्रकार छोटे बड़े सब क्षेत्रों को पावन करते हुए आप जैन शासन की प्रभावना करने लगे । आपने अपने विहार काल में सैकड़ों व्यक्तियों को सन्मार्ग की ओर प्रवृत्त किया । संघ संगठन व्यक्ति से बढकर आज संघ का महत्व है । संघ के महत्वके सामने व्यक्ति का महत्त्व अकिंचन सा प्रतीत होता है । संघ में समस्त व्यक्तियों की शक्तियां गर्भित है। संघ की उन्नति के लिए यदि किसी व्यक्ति की उपेक्षा की जाय तब भी वह संघश्रेय के लिए श्रेयस्कर ही है। जो संघ को उपेक्षित कर व्यक्ति को महत्य देता है वह संघ का नेता संघ को अन्धकार में ही डालता है। संघ की अवनति ही करता है । आज प्रत्येक व्यक्ति में यह भावना जागृत होनी चाहिए कि वह समाज का एक आवश्यक अंग है । एक बडे कारखाने का संचालन उसके आश्रित रहे हुए बहुत से छोटे छोटे पुर्जे से ही होता है । यदि एक भी पुर्जे में कोई खराबी आजाती है तो वह मशीन कभी चल नहीं सकती । ठीक इसी रुप में संघ भी एक महान यंत्र है। जिस में चतुर्विध संघ रूप अलग-अलग आवश्यक पुर्जे सब न्धत हैं । यदि एक भी साधु साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप पुर्जा विचलित अवस्था में हो जाएगा दो संघ रूप कारखाना अबाध गति से चल नहीं सकता। इसी दृष्टि कोन को समक्ष रख कर उन दिनों अजमेर साधु सम्मेलन की जोरदार तैयारियां चल रही थी । समाज के नेताओं के प्रबल प्रयत्न से ता० ५ एप्रील १९३३ में चैत्र कृष्णा दशमी के दिन अजमेर में साधु सम्मेलन करने का निश्चय हुआ । अजमेर साधु सम्मेलन के पूर्व सभी सम्प्रदाय के मुनिगण अपने अपने संप्रदाय का संघठन कर लेना चाहते थे । तदनुसार पूज्य आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज भी अपने संप्रदाय को संगठित करने के लिए प्रयत्न शील हो गये । उन्होंने अपने सभी मुख्य-मुख्य मुनिगणों से इस विषयक परामर्श किया । संप्रदाय के सम्मेलन के लिए ब्यावर स्थान योग्य समझा गया । सभी मुनिराजों को ब्यावर पहुँचने के लिए संदेश भेज दिये गये । उस समय पूज्य आचार्य श्रीजवाहरवालजी महाराज जयतारण बिराज रहे थे । हमारे चरित नायक पंडित प्रवर उस समय मेवाड प्रान्तान्तर्गत सेमल क्षेत्र के आस पास विचर रहे थे । पूज्य श्री ने अपनी मुनिमण्डली के साथ ब्यावर की ओर प्रस्थान कर दिया । पूज्य श्री का सन्देश पाते ही पं. प्रवर श्री घासीलालजी महाराज भी ब्यावर की ओर प्रस्थान करने की तैयारियां करने लगे, जब आपने सेमल से विहार किया तो आपको श्रावकों से समाचार मिले कि पं. श्री गब्बूलालजी महाराज एवं श्री मोहनलालजी म. पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज का सन्देश लेकर आपकी सेवा में आरहे हैं। सन्देश मिलने पर महाराजश्री सेमल के आस पास ही रहे । पं. गब्बूलालजी महाराज शीघ्र ही महाराजश्री की सेवा में पधार गये । उन्होंने पूज्य श्रीजवाहरलाडजी महाराज का निमन्त्रण पत्र पं. मुनि श्रीघासीलालजी महाराज को दिया । निमन्त्रण पत्र की प्रतिलिपि इस प्रकार थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy