SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के भण्डारी परमभक्त श्री. नाथुलालजी सा. एवं वैष्णव समाज के अग्रनी हिन्दू एवं मुसलमान भाई प्रतिदिन सकडों की संख्या में आने लगे। प्रवचन का स्थानीय जनता पर अच्छा प्रभाव पडा । फलस्वरूप व्याख्यान में जनता की उपस्थिति उत्तरोत्तर बढ़ने लगी। उस समय पूज्यश्री अमरसिंहजी महाराज सा. की सम्प्रदाय के वयोवृद्ध विदुषी साध्वी श्री धुलकुँवरजी, तथा शस्त्रज्ञा महासतीजी श्री शीलकुंवरजी आदि महासतीजी महाराज भी बिराज रही थी । भगवान महावीर के शासन के स्तंभ चार तीर्थ का यह सम्मेलन जनता की धार्मिक भावना में खूब वृद्धि कर रहा था । सामायिक पौषध उपवास दया एवं तपश्चर्या तो इस प्रकार हो रही थी मानो चातुर्मास ही चल रहा हो । ___महासतीजी की सेवामें वैराग्यवती बहन सुन्दरबाई थी । यह त्याग वैराग्य की साक्षात् मूर्ति थी । यह गोगुन्दा निवासी हरकावत परिवार की महिला थी। और इन्हें दीक्षा की आज्ञा मिल गई थी। इधर मांगीलालजी ने भी अपने परिवार वालों से दीक्षा की आज्ञा प्राप्त करने के लिए प्रयत्न प्रारंभ कर दिये थे । हमारे चरितनायकजी के भव्यप्रभाव के कारण एवं युवक मांगीलालजी के उत्कट वैराग्य के सामने नत मस्तक होकर उनके अभिभावकों ने श्री मांगीलालजी को भी दीक्षा की आज्ञा प्रदान कर दी । माघ शुक्ला दसमी का दिन दीक्षा प्रदान का मुहूर्त निकाला गया । स्थानीय संघ ने आमंत्रण पत्रिका द्वारा सर्वत्र इसकी सूचना भेज दी । धीरे धीरे दीक्षा काल भी समीप आ पहुँचा । जिसकी कुछ समय से प्रतीक्षा की जारही थी । विक्रम संवत १९९० माघशुक्ला दसमी बुधवा र का दिन शुभ उदय हुआ । उस दिन नाथदारा शहर में दूर दूर प्रदेशों से अनेक साधर्मिक बन्धु इस अपूर्व अवप्तर को देखने के लिए एकत्रित हुए । नाथद्वारे के चतुर्विध संघ के समक्ष बडे समारोह के साथ उत्कट वैरागी मांगीलालजी की एवं श्रीमती वैराग्यवती सुन्दरबाई की महाराजश्री के पवित्र मुख से दीक्षा सूत्र के उच्चारण पूर्वक दीक्षा सम्पन्न हुई । दीक्षा के समय जो मानव समूह एकत्र हुआ था वह अत्यन्त दर्शनीय था, भव्य था और नाथद्वारे के सेवाभावी श्रावकों के भक्ति का परिचायक था । इस प्रकार नगर में एक ही दिन दो महान् आत्माओं ने दीक्षा लो । दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात मुनि मांगीलालजी ने ज्ञान भ्यास का सामान्य परिश्रम किया । थोडे समय में ही आपने ज्ञान और सुदीर्घ तपश्चर्या से आप अपने गुरुदेव के प्रेमपात्र शिष्य बन गये । शेषकाल नाथद्वारे में बिराज कर हमारे च रेतनायकजी ने अपने मुनिवृन्द के साथ खमनोर की ओर विहार किया । वीरभूमि हल्दी घाटी के नाम से शायद ही कोई वीरपूजक भारतवासी अपरिचित होगा । महा. राणा प्रताप के साथ हल्दीघाटी का जो सम्बन्ध रहा है उसे लिखने की आवश्यकता नहीं है । इसी घाटी की सूरम्य तलहटी में यह नगर बसा हुआ है । शताब्दियों से यह खमनोर गुलाब के पुष्प उत्पादन का केन्द्र रहा है । मुगलकाल से ही यहां का गुलाब बाग विख्यात रहा हैं । आज भी गुलाबजल, गुलाबइत्र और गुलकन्द के लिए अती विख्यात स्थान है । जैन इतिहास की दृष्टि से भी इसका स्थान कोई कम महत्वपूर्ण नहीं है । आचार्य सावंतरामजी म. ने यहां कई वर्षावास व्यतीत कर जैन संस्कृति को पल्लवित पुष्पित किया था । खमणौर में प्रतिलिपित जैन साहित्य प्रचुर परिमाण में अन्यत्र उपलब्ध है । इस इतिहास प्रसिद्ध नगर में महाराजश्री के पदार्पण से जनता की धार्मिक भावना प्रबल हो उठी । सामायिक प्रतिक्रमण दया पौषध उपवास बेले तेले आदि की तपश्चर्या खूब होने लगी। आस पास के ग्राम निवासी भी बडी संख्या में महाजश्र के दर्शनार्थ आने लगे । महाराज श्री के भव्य व्याख्यान से प्रभावित हो सैकडों व्यक्ति प्रतिदिन प्रवचन सुनने के लिए आते थे । यहां कुछ दिन बिराज कर आपने सेमल की और बिहार कर दिया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy