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हजारों राजपूत सरदारों ने जीवहिंसा एवं शराब पीने का त्याग किया ।
इस प्रकार मेवाड क्षेत्र के विविध ग्रामों में आप प्रवचन पीयूष का पान कराते हुए देलवाडे पधारे । देलवाडे में महाराज श्री के व्याख्यान बाजार में होते थे । व्यख्यान में रावजी सा. राजकर्मचारी गण हिन्दू एवं मुसलमान जनता बडी संख्या में उपस्थित होकर प्रवचन का लाभ उठाती थी। वहां के नगर सेठ श्री नाथुलालजी सा. सेवरिया, श्रीलालजी साहेब खेतपालिया आदि श्रावक समूह ने भी महाराज श्री की अच्छी सेवा की और जैन शासन की प्रभावना बढाने में अच्छा सहयोग दिया ।
इस प्रकार देलवाडे में कुछ दिन बिराज कर आपने अपने मुनिवृन्द के साथ नाथद्वारे की ओर विहार किया । मार्ग में उंठाले के नायब हाकिम सा. श्री मनोहरसिंहजी मेहता महाराजश्री के दर्शनार्थ आये । साथ में देवरिया के नगर सेठ श्री कजोडीमलजी सा. कासमा के सुपुत्र मांगीलालजी कासमा को भी साथ में लाये । उस दिन महाराजश्री को जाहिर प्रवचन हो रहा था प्रवचन का विषय था "न वैराग्यात्परो बन्धु नेसंसारात् परोरिपुः न वैराग्य से बढकर अपना कोई बन्धु नहीं और सांसरिक विषयों से बढकर अपना कोई शतु नहीं" इस विषय पर प्रवचन में उस रोज आपने इतना अच्छा प्रकाश डाला कि सारी परिषद् अत्यंत वैराग्य के रंग में रंग गई । लोग अपना स्वत्व भूलकर आत्म विभोर हो उठे। किसी को अपना कुछ ध्यान न रहा । व्यख्यान क्या था ? स्वयं मुनिश्री का वैराग्यमय जीवन ही वाणी का रूप धारण कर सामने आया था । उनका जीवन बोल रहा था । हृदय को हिलाने वाले उनके इस अमृतमय पवित्र व्योख्यान को सुनकर सब से अधिक सच्चरित्र युवक मांगीलालजी प्रभावित हुए । वैराग्य के प्रबाह में बह गये । आपने महाराजश्री की सेवा में रहने का एवं प्रव्रज्या ग्रहण करने का निश्चय किया । सन्तों के वैराग्यपूर्ण जीवन को देखकर आपकी मोह निद्रा भी सहसा भंग हो गई। हृदय में अलौकिक प्रकाश हुआ। भोग की और आकर्षित करनेवाली युवावस्था में ही उन्हें संसार की अनित्यता का प्रत्यक्ष अनुभव होने लगा। इन्होंने मन हो मन में दीक्षा लेने का दृढ विचार कर लिया।
भोजनोपरान्त जब नायब हाकिम सा. अपने गांव की ओर लौटने लगे तब श्री मांगीलालजी को भी वापस अपने साथ आने को कहा तो मांगलालजी ने कहा हाकिम साहेब मैं अब आपके साथ घर जाना नहीं चाहता । महाराजश्री के प्रवचन से मेरी अन्तर आत्मा जागृत हो गई है । मैं महाराज श्री के समीप दीक्षा ग्रहण कर आत्मकल्याण करूगा । संसार के प्रति मेरी अब किंचित मात्र भी आशति नहीं रही । युवक मांगीलालजी के इस वैराग्यपूर्ण विचारों को सुना तो हाकिम सा. विचार में डूब गये और कुछ क्षण विचार करने के बाद हाकिम साहब ने कहा मांगीलाल इस समय तो तुं मेरे साथ चल । घर जा कर अपने सर्वपरिवार वालों से विचार विमर्श कर ले फिर इस मार्ग की ओर बढ । मांगीलालजी ने कहा इस समय तो मैं महागेज श्री की सेवा में ही रहूंगा । घर जाने का फिर सोचूंगा । हाकिम साहब के बहुत कुछ समझाने के बाद भी जब मांगीलालजी आने को तैयार नहीं हुये तो हाकिम पा. महाराज श्री की मांगलिक श्रवण कर चले गये । महारज श्री के साथ साथ पैदल बिहार करते हुए मांगीलालजी नाथद्वारा आये।
नाथद्वारे में जब महाराज श्री पधारे तो स्थानीय जनता ने आपका भव्य स्वागत किया । नाथद्वारा वैष्णवों का तीर्थस्थल है । यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में वैष्णवजन श्रीनाथजी के दर्शनार्थ आते रहते हैं । महाराजश्री के आगमन से यह जैनों के लिए भी एक भव्य धाम बन गया । आस पास के गांव वाले सैकड़ों की संख्या में महाराज श्री के दर्शनार्थ आने लगे । व्याख्यान बाजार के बीच होने लगा । व्यख्यान सुनने के लिए नाथद्वारे के होकिम साहब राज्य के कर्मचारी गण वकिल डॉक्टर मन्दिर
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