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________________ २३१ रहेगी। वैशाख, श्रावण और भाद्रपद मास में मेरे समस्त राज्य में जीवहिंसा कतई बन्द रहेगी । और शिकार भी नहीं की जावेगी । ये नियम मेरे वंश पराम्परा गत चलेंगे इस के बाद ठाकुर साहब के जीजाजी ने इस प्रकार की प्रतिज्ञा ग्रहण की। आजीवन मांस और मदिरा का त्याग श्रावणमास में हरिलिलोत्री का सर्वथा त्याग रहेगा । तपस्वीजी के नाम प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमर किया जायगा। वैशाख मास की दोनों ग्यारस के दिन उपवास रखूगा । ये नियम मेरे वंश परम्परागत चलेंगे । उपर लिखे मुजब हुकुम समस्त राज्य में जारी करदियेजायगा और आज से ही इसकी तामील होगी । दः माँ साहब गुलाबकुवर दः सौभाग्यवती केशरकुंवर का परावली से महाराज श्री ने सेनवाडे की तरफ विहार किया । सेनवाडे में पहुँचने के बाद महाराज श्री के रावले में ही प्रवचन हुए । सेनवाडे के ठाकुर साहब श्रीमान् मदनसिंहजी ने एवं उनके समस्त परिवार ने महाराज श्री का प्रवचन सुना। गांव के अन्य सरदारों ने भी महाराज श्री का प्रवचन सुना। प्रवचन सुनकर ठाकुर साहब ने तथा गावों के सरदारों ने निम्नलिखित प्रतिज्ञो की आसोज महिने में नवरात्रि के समय जो देवी के नाम बकरे चढ़ाये जाते हैं उनमें से एक एक बकरे को अमर कर दिया जावेगा। वैशाख मास में समस्त गांव में हिंसा बन्द रहेगी और ठिकाने में भी हिंसा नहीं होगी । वैशाख मास में मांस एवं शराब पीने का त्याग । ठाकुर साहब खुद अपने हाथ से किसो जीव को नहीं मारेंगे। कुंवर साहब रामसिंहजी ने पांचों तिथियों में जीवहत्या मांस व दारु सेवन का त्याग किया । इस प्रकार नियम लेकर स्थानीय ठाकुर साहब ने महाराजश्री को जीव दया के पट्टे भेट किये । इसके अतिरिक्त अन्य राजपूत सरदारों ने भी झटके से (अपने हाथ से) किसी को मारना एवं जीवहिंसा मांस सेवन व दारुपीने का सर्वथा त्याग किया । ठकुरानियों ने भी पांच तिथियों में मांस, शराब एवं लिलोत्री का त्याग किया । यहाँ श्रावकों के दो चार ही घर है । शेष घर प्रायः राजपूतों के ही है। महाराजश्री के उपदेश से अन्य भी बहुत से उपकार के कार्य हुए । सेनवाडे से विहार कर महाराजश्री देवड़ाके खेडे पधारे । यहां भी महाराजश्री का प्रवचन हुआ प्रवचन बडा प्रभावशाली रहा । प्रवचन से प्रभावित हो ठाकुर साहब व अन्य राजसरदारों ने निम्नलिखित प्रतिज्ञा कर महाराज श्री को जीव दया के पट्टे भेट किये । पट्टे के सारांश ये थे भैरूजी के नाम जो प्रतिवर्ष बकरा चढाया जाता है उसे अब से तपस्वीजी के नाम अमरिया कर दिया जावेगा । आज से समस्त गांव में जीवहिंसा कतई बन्द रहेगो । मौत होने पर ओगाले में जाति ठराव से सर्वथा जीव हिंसा बन्द की जाती है । अर्थात् नुकते में बहन बेटो जमा होती है तब जाति के लिए ओगाला मिटाने को बकरे मारे जाते हैं इस अवसर पर अनेक बकरों का संहार होता है। जिसकी जैसो हैसियत होता है वह उतना ही बकरा मारता है । इस जाति ठराव के अनुसार आज से यह प्रथा बन्द कर दी जाती है। दस्तखत समस्त गाँव के सरदार इस नियम से हजारों बकरों को प्रतिवर्ष अभयदान मिला । इस विहार काल में रुपाहेली के ठाकुर सा. श्रीमान चतुरसिंहजी ने निंबाहेडा के ठाकुर साहब माधो सिंहजो लोहारिया के ठाकुर साहब श्री बालूसिंहजो ने, सिंगावल के ठाकुर साहब श्री रेवतसिंहजी ने तथा विहार बीच आने वाले अनेक ग्रामो के जागिरदारों ने माफीदारों ने जमीनदारों ने सरदार राजपूतों ने म. श्री का प्रवचन सुना और प्रवचन से प्रभावित हो उन्होंने अपने हस्ताक्षरों से जीव दया के पदे लिख कर महाराजश्री को भेट किये । आपके विहार काल में सैकडों जीवों को अभयदान मिला । झालावाड प्रान्त के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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