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की बात का उपदेश महाराज ने फरमाया, उसी वखत श्री १०८ तपस्वीजी महाराज के नाम का दशहरे के रोज लागत में से एक बकरा अमर किया जावेगा । और आठम इगारस, चौदस और अमावस इन तिथि के रोज कोई तरह की शीकार व राजस्थान में जीव हिंसा नहीं की जावेगी । श्राद्ध के महिने में जीव हिंसा नहीं की जावेगी, और राणाजी साहब का फरमाना हुआ कि सब ही साधु बडा गुणवान हैं कठातक वाण करवा । या बात वखान सुनवासु मालूम हुआ । सं. १९८९ का मागसर सुदी ४
दः कोठारी छगनलालजी का सत्र राणा का हुकुम से यह पट्टा लिखा । वैशाख मास पूरा कुल बारह महिने के ११८ एक सौ अठारह दिन में किसी भी प्रकार की राज्यभर में हिंसा नहीं होगी । यह नियम हमारे वंश परम्परागत चलेगा । और तपस्वी श्री श्री सुन्दरलालजी महाराज की याद प्रतिवर्ष दशहरे के दिन एक एक बकरे को अमरिया कर दिया जायगा । उदयसिंहजी साहब ने भी इसी प्रकार का पट्टा लिखकर महाराज श्री को दे दिया ।
इस अवसर पर अनेक राजपूतों ने जीव हिंसा, मांस सेवन एवं मद्यपान का त्याग किया ।
वहां से विहार कर आप मादडे पधारे। यहां नीति निपुण और धर्म भावनासेयुक्त शासक है । पुत्र एवं राज्य के उत्तराधिकारी कुँवर साहब श्री भी महाराजश्री के प्रवचन सुने । प्रवचन का आप लोगों पर अच्छा प्रभाव पडा । आपने महाराजश्री के उपदेश से जीव दया के पट्टे लिख दिये । जिसका सारांश इस प्रकार है
ठाकुर साहब श्रीमान् रत्नसिहजी साहेब बडे विचक्षण आपने महाराज श्री का सपरिवार प्रवचन सुना । आपके तखतसिंहजी एवं छोटे कुंवर साहब श्री छगनसिंहजी ने
" मेरी राज्य की सीमा में एकादशी, अष्टमी, चतुर्दशी अमावस्या इन तिथियों में किसी भी प्रकार की जीवहिंसा व शिकार नहीं होगो । तपस्वीजी सुन्दरलालजी महाराज की याद में प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमरिया किया जायेगा । और यह नियम हमारी वंश परम्परागत चलेगा | कुंवर साहब श्री तखतसिंहजी ने शेर चित्ता आदे पांच हिंसक जोवों के शिवाय सब तरह की शिकार का त्याग लिया । कुंवर छगन सिंहजी भो छोटी शिकार का त्याग किया ।
वहां से विहार कर आप छोटी पारावली पधारे । जनता ने आपका भव्यस्वागत किया । प्रवचन हुआ । प्रवचन में परावली के ठाकुर साहब श्री गोविंदसिंहजी भी उपस्थित हुए । प्रवचन सुनकर आपने निम्न प्रतिज्ञाएं ग्रहण की।
"अष्टमी, चतुर्दशी, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा के दिन एवं भाद्रपद शुक्ला पंचमी के दिन मेरे समस्त राज्य की सीमा में जीवहिंसा एवं सब तरह की शिकार बंद रहेगी । तथा इन दिनों शराब पीने की भी मनाई की गई। तथा प्रति वर्ष तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजी म० के नाम पर एक एक बकरा अमर किया जावेगा । खुद ठाकुर साहब ने किसी भी जीव पर गोली चलाने का एवं तलवार से उन पर वार न करने का प्रण लिया । और समस्त प्रकार को शिकार का त्याग किया ।
वहां से आप बड़ी परावली पधारे । यहां आपका रावले में प्रवचन हुआ । प्रवचन सुनकर माजी साहब गुलाबकुवरजी ने एवं जीजाजी साहब केशरसिंहजी कुंवरजी ने इस प्रकार की प्रतिज्ञा कर जीव दया का पट्टा लिखकर महाराज श्री को भेट किया। पट्टे का सार इस प्रकार है।
प्रतिवर्ष दशहरे पर एक एक बकरा अमरिया किया जावेगा। वैशाख महिने में एक बकरा अमर करूगा । मेरे खुद के वास्ते दारु मांस एवं जीववध का त्याग । दशहरे के लागत में से एक एक भैसा हरसाल आंककर अमर करूंगा, भादवा सुदी पांचम के दिन मेरे राज्य की सीमा में जीवहिंसा और सब तरह की शिकार बन्द रहेगी । महिने में पांच तिथि में मेरे समस्त राज्य में जोवहिंसा और शराब बन्दी
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