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________________ २६९ मंगलचन्दजी को दीक्षा प्रदान की। इस अवसर पर झालावाड और वाकल संघ ने दीक्षा उत्सव को सफल बनाने में बडा सहयोग दिया । मोदीजी मगनलालजी; लोढाजी पन्नालालजी, फूलचन्दजी आदि प्रमुख श्रावकोंने महाराज श्री की बडी भक्ति की । वहां से आप गोराणा पधारे। यहां आपका जाहिर व्याख्यान हुआ । आपके व्याख्यान की प्रसिद्धि तो पहिले ही हो चुकी थी इसलिए साधारण सूचना से ही सारा गांव आपके प्रवचन में उपस्थित हुआ। आपके प्रभावपूर्ण प्रवचन से गांव के अधिकारी गण बडे प्रभावित हुए और जीव हिंसा का त्याग किया । वहां से आप झाड़ोल होते हुए वाघपुरा पधारे । वाघपुरा में सेठ श्री कोठारीजी ने एवं श्रीसंघ ने अच्छा लाभ लिया । वहां से आप वाकल होते हुए ओगणा में पधारे । यहां के श्रीसंघ ने बाजार के बीच आपके प्रवचन का प्रबन्ध किया । प्रतिदिन करीब दो हजार तीन हजार व्यक्ति व्यख्यान में उपस्थित होते थे। यहां के रावजी साहब श्रीमान् उदयसिंहजी एवं उनके भ्राता जसवन्तसिंहजी एवं कर्मचारि गण प्रतिदिन आपके व्याख्यान में उपस्थित होते थे और आपके प्रभावशाली प्रवचन का लाभ लेते थे । इस शुभ अवसर पर पानरवे के ठाकुरसाहब श्रीमान मोहब्बतसिंहजी सा. का भी पधारना हुआ । आपने भी प्रवचन सुना । इन ठाकुर साहेबों का धर्म प्रेम बडा सराहनीय रहा । महाराजश्री ने ठाकुरसाहबों से कहा-“मानव जन्म की सफलता के लिए आपको परोपकार के कार्य करने चाहिए" इस पर ठाकुरों ने कहा-सन्तों का जीवन तो परोपकार के लिए ही होता हैं । संत की वाणी भी दूसरे की भलाई के लिए ही होती है। हमारा सौभाग्य है कि आप जैसे महान विद्वान सन्तों को एवं तपस्वो श्री सुन्दरलालजी म. जैसे तपोरत्न का यहां आगमन हुआ है । अतः आपकी आज्ञा का पालन करना हमारा कर्तव्य है । अतः आप हमारे योग्य जो भी आदेश देंगे उसकी राज में अवश्य तामिल होगी।' व्याख्यान समाप्ति के बाद राणाजो श्री मोहब्बतसिंहजी तथा सोनानिवेस ओगने रावजी श्रीउदयसिंहजी साहब ने कोठारीजी श्री छगनलालजी सा. को बुलाकर राज्य के भीतर जोवहिंसा न करने के पट्टे लिखावा कर महाराज श्री के चरणों में भेट किये । इसके बाद ही रोणाजी ने भोजन किया । पट्टों का सारांश इस प्रकार है "अष्टमी, चतुर्दशी, एकादशी और अमावस्या इन तिथियों में राजस्थान के अन्दर किसी तरह की शिकार व जीव हिंसा नहीं की जावेगी । तथा समस्त वैशाख मास में हमारे राज्य की सीमा में किसी भी प्रकार का जीव वध नहीं होगा । अर्थात् प्रत्येक मास को चार तिथियों के हिसाब से ग्यारह मास की ८८ अठासो तिथियों में और कुवर साहब श्री तखतसिंहजी ने शेर चित्ता आदि पांच हिंसक जीवों के शिवाय सब तरह के शिकार का त्याग किया । कुंवर छगनसिंहजी ने भी छोटी शिकार का त्याग किया । उस अवसर पर स्थानीय श्रावक श्राविकाओं ने भी यथाशक्ति अच्छे त्याग प्रत्याख्यान किये । ठाकुर मुहपतसिंहजी ने जो पट्टा लिख कर महाराज श्री को भेट किया उसकी नकल इस प्रकार है श्री रामजी दः राणाजी मोहबतसिंहजी श्री महाराज श्री १००८ श्री तपस्वो महाराज व १००८ श्रीघासीलालजी महाराज व श्री मनोहर लालजी महाराज व श्री समेरमलजी म० व श्री कन्हैयालालजी म. व श्री केशुलालजी महाराज श्री मंगलचन्दजो म० व सब साधु का बिराजना मु० ओगना में होने पर राणाजी साहब श्री मोहब्बतसिंगजी पानरवा मुकाम से यहां पधारना ओगने में होने पर महाराजश्री का व्याख्यान सुनवा के लिए पधारे सो धरम For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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