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भी अहिंसक बन जाते हैं । प्रतिवर्ष भैरुजी जो अनेक बकरों के खून से अपनी प्यास बुझाता था । वह भैरुजी अब से अहिंसक बन जाता है और अपने भक्तों को भी अहिंसक बनने की प्रेरणा देता है ।
इस घटना का गोगून्दावासियों पर बडा प्रभाव पडा । अनेकों ने सदा के लिए जीववध का त्याग कर दिया । रावले में मां साहब ने भी हिंस करने और कराने का त्याग कर दिया ।
मोटेगांव का यह चातुर्माम बडा सफल रहा । मोटेगांव में तीन मोटे (बडे) कार्य हुए । १मोटागांव २ मोटी तपस्या पर मोटा उपकार-करीब दो हजार गांवों में अगते पलवाये गये (३) मोटो चमत्कार खुद भैरुजी तपस्वीराज के आधोन होकर अपने लिए बलिदान में आये हुए बकरे को अभयदान देना । भाद्र शुक्ला दशमी के दिन उदयपुर निवासी अंबालालजी बाफणा के सुपुत्र केशवलालजी की दीक्षा हुइ, बडे वैराग्य भाव से दीक्षा लेने चाहते थे परन्तु उनको पिताजी की आज्ञा नहीं मिली, बाफनाजी उदयपुर की महाराणी साहेबा के कामदार के छोटे भाई थे, वे दीक्षा देना नहीं चाहते थे । इन्हें परम वैराग्य से दीक्षा लेना था आज्ञावगर महाराज श्री दीक्षा नहीं दे सकतें । और उनको दीक्षा लेना है, इसलिए उन्होंने स्वमेव दीक्षा ग्रहण की । और महान तपस्वी बन गये अभी भी उदयपुर के आस पास ही बिचरते हैं ।
महाराज श्री के इस चातुर्मास में परोपकार' के अच्छे अच्छे कार्य हुए । अनेकों ने जीवहिंसा, मद्य, मांस, वैश्यागमन, जूआ आदि दुर व्यसनों का त्याग किया । तपश्चर्या भी खूब हुई। यहां के संघ ने आगत बन्धुओं की एवं गुरुदेव को जो सेवा की वह सदैव प्रशंसा ने शब्दों में अंकितु रहेगी।
ज्यों ज्यों चातुर्मास समाप्ति का समय निकट आता था त्यों त्यों आस पास के क्षेत्रों के संघ अपने अपने क्षेत्रों में पधारने की विनतियां लेकर महाराज श्री के समीप आने लगे । चामुर्मास समाप्त हुआ। महाराज श्री ने अपनी मुनि मण्डली के साथ गोगुन्दा से विहार कर दिया । हजारों स्त्री पुरुषों ने अत्यन्त दु:ख के साथ आप को विदा दो । विदाई के समय सब की आंखो में आंसू ये । श्रावक गण तो यही चाहते थे कि महाराज श्री यहीं बिराजे और अपनी अमृतमय वाणी का लाभ हमें सदा मिलता रहे । किन्तु संयम मार्ग की उज्जबलता तो ग्राम नगरों में बिछरने में ही रही हुई है। संयम की रक्षा के लिय विचरना अनिवार्य है।
महाराज श्री के विहार समय झालावाड का संघ भी उपस्थित था । झालवाड श्री संघ चाहता था कि महाराज श्री हमारे प्रान्तको पावन करौ तदनुसार महाराजश्री ने सन्त मण्डली के साथ झालावाड की ओर विहार कर दिया । भिन्न भिन्न स्थानों में उपकार करते हुए आप छाली ग्राम पधारे ।
वहां के ठाकुर साहब एवं उनके काका साहेब नाथूसिंह महाराज श्री के दर्शन के लिए आये । रावले में ही महाराज श्री का व्याख्यान रखा गया। व्याख्यान में ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, और शुद्र आदि सभी जाति के व्यक्ति उपस्थित हुए । महाराज श्री के व्याख्यान का उपस्थित जन पर अच्छा प्रभाव पड़ा। ठाकुर साहब ने महाराज श्री के उपदेश से जीव हिंसा और शराब पीने का त्याग किया ।
वहां से क्रमशः बिहार करते हुए आप देवास पधारे । देवास के ठाकुर साहब श्रीमान् महर सिंहजी परिवार सहित आपके व्याख्यान में पधारे । व्याख्यान से प्रभावित होकर ठाकुर साहब ने छीटी शिकार का त्याग किया । यहां झालावाड के निवासी भाई मंगलचन्दजी महता ने महाराज श्री के समीप दीक्षा ग्रहण की। देवास संघ ने दीक्षा का सारा खर्च कर अच्छो सेवा का परिचय दिया। दीक्षा के अवसर पर झालावाड, वाकल आदि आसपास के गांवों के लोग बडी संख्या में उपस्थित हुए। उस समय का दृश्य बड़ा मन मोहक एवं वैराग्योत्पादक था। मुनि श्री ने बडे समारोह के साथ भाई
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