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________________ २२७ तपश्चर्या की समाप्ति पर पानरवा राणा श्रीमोहब्बतसिंहजी ने अपने बारह सौ गांवों में, महरपुररावजी श्री तेजसिंहजी ने अपने ९०० गावों में गोगुन्दा के रावजी, ने ९९० ओगना के रावजी ने अपने ९०० सौ गांवों में उस दिन जीव हिंसा बन्द रखकर अगते पलवाये। उस अवसर पर उदयपुर से श्रीजीवनसिंहजी महता, चीफमिनिस्टर श्री तेजसिंहजी मेहता, रेल्वे मेनेजर श्री चन्द्रसिंहजी मेहता तथा अन्य राजकर्मचारी गोगुन्दा आये थे । देव भी अहिंसक बना भाद्रपद शुक्ला छठ के दिन की घटना है । प्रातःकाल कुछ कुछ अन्धेरा था उस समय एक आदमी एक बकरे की गर्दन पकड़कर उसे मारने को ले जा रहा था । बकरे की चिल्लाहट तपस्वीजी के कान पर पड़ो । उस समय वन्दना करते हुए सेठ साहब श्री देवीलालजी मास्टर से मुनि श्री ने फरमाया कि इस गरीब मुक प्राणी को बचाना चाहिए । तपस्वीजी की आज्ञा मिलते ही देवीलालजी उस आदमी के पास पहुँचे । और उससे पूछा कि यह बकरा कहां लेजा रहे हो । तो उसने जवाब दियायह बकरा रावले के मां साहन का है । यह कह कर वह बकरे को लेकर रावले में चला गया । मास्टर साहब रावले में पहुँचे। और मां साहब से निवेदन किया कि तपस्वीजी इस बकरे को अभयदान दिलवाना चाहते हैं आप उनकी इच्छानुसार इसे अमरिया करदें । मां साहब ने कहा यह बकरा देवता के बलिदान का है । पहले से ही राज कि तरफ से चढता आया है । इस लिए मैं लाचार हूँ । आखिर बकरे को भैरुजी मण्डोराजी के मन्दिर में मारने के लिए ले गये ! मारने की तैयारी थी कि इतने में भैरुजी से भाव में मास्टर साहब ने सिर्फ इतनी ही अर्ज की कि तपस्वीजी महाराज की यह इच्छा है कि बकरा अमर होना चाहिए | तपस्वीजी को तपश्चर्या से भैरुजी प्रभावित तो थे ही । तुरत भैरुजी ने अपने भक्तों से कहा - " इसके कान में कड़ी डालकर इसे अमर कर दो। हम तपस्वीजी की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकते । उनकी आज्ञा के उल्लंघन का परिणाम अच्छा नहीं निकल सकता । तपस्वी लोग तो बड़े होते है । उनके त्याग के सामने हमारी शक्ति कुछ भी काम नहीं करती । हो गया । भैरुजी की आज्ञा से बकरे के कान में नहीं हुआ । उन्होंने दुबारा भाव के समय भैरुजी बकरा लाया जाय ! इतनी बात भैरुजी के कहने पर बकरा अमर कड़ी डाल दी गई । किन्तु इससे लोगों को सन्तोष से प्रार्थना की कि आपके बलिदान के लिए दूसरा तुरत भैरुजी ने भाव में आकर कहा तुम लोग मेरी छलना क्यों करते हो ? हमनें बकरा अपने मन से नहीं छोडा किन्तु तपस्वीजी की आज्ञा से छोडा है । हम लोग देव हैं और देव तपस्वीलोगों की सेवा करते हैं । तपस्त्रीजी की आज्ञानुसार आज से कोई भी बकरा मेरे स्थान पर नहीं मरेगा | अगर कोई भूल से भी मेरे स्थान पर किसी भी जीव का वध करेगा तो वह मेरे कोप का भागी बनेगा । और मेरे कोप का क्या परिणाम होगा यह आप लोग जानते ही हो । भैरुजी की इस आज्ञा का उपस्थित भक्तों पर अच्छा असर पड़ा । सबने उस दिन से देवी देवता के नाम बलि न देने की प्रतिज्ञा ग्रहण की । तपस्या का प्रताप और प्रभाव अकथनीय होता है । तप के प्रभाव से मानव पूर्व संचित कर्मों को क्षय करता ही है । किन्तु इहलौकिक अनेक सिद्धियां भी उससे प्राप्त हो जाती है । तपस्या की शास्त्रों में Fast महिमा बताई है । शूलपाणि जैसा हिंसक देव, चण्डकौशिक जैसा भयंकर क्रोधी एवं अर्जुनमाली जैसा हत्यारा भी दो तो भगवान महावीर स्वामी के प्रताप से अहिंसक बन जाता है । यह तो रही इतिहास की बातें । वर्तमान काल में भी तपस्वी श्री सुन्दरलालजो महाराज के महान तप के प्रभाव से भैरुजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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