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________________ २२६ (१) जीवहिंसा न करना । (२) मद्य, मांस शराब का सेवन नहीं करना । (३) सम्पूर्ण ब्रह्म चर्य रखना । (४) उभयकाल प्रभु प्रार्थना करना और दीन अनाथों की सहायता करना । (५) उस रोज गौ, भैस आदि के बच्चों को अन्तराय नहीं देना अर्थात् गौ भैस बकरी के बच्चों को उस दिन अपने मां का पूरा दूध पीने देना । उन्हें दूहना नहीं । तपस्या के पूर के दिन अधिक बात यह हुई की हजारों लोगो ने तपस्वीजी के दर्शन किये और उस दिन से सदा के लिए दारु, मांस एवं जीवहिंसा और रात्रि भोजन, परस्त्री सेवन, कन्या विक्रय, हरी लीलोत्री आदि का त्याग किया । पूर के दो दिन पहिले से ही दूर-दूर के सज्जनगण पधारने लगे । उपा. श्रय के बाहर मैदान में व्याख्यान मण्डप सजाया गया था । पूर के दिन सभामण्डप में पं. रत्न श्री घासीलालजी महाराज 'तप की महत्ता' पर १॥ घन्टे तक प्रभावशाली प्रवचन दिया । श्रोतागण बडे प्रसन्न हुए । सब ने कहा कि ऐसा आनन्द हमारे जीवन में यहां कभी नहीं हुआ । पूर के दिन उदयपुर, बड़ी सादड़ी, कानोड, जावरा, जोधपुर, ब्यावर, आदि कई शहरों के लगभग ५००० हजार व्यक्ति सम्मिलित हुए थे। उस दिन स्थानकवासी भाईयों की दुकाने तो बन्द रही थी, रन्तु मन्दिरमार्गी, तेरहपन्थी भाईयों ने भी अपना सब कारोबार बन्द रखा था । सैकड़ों जीवों को मृत्यु के मुख से मुक्त किये । गरीबों को मीठाई तथा वस्त्रादि दिये गये । ___ तपश्चर्या का प्रभाव उन दिनों उदयपुर में भयंकर हैजा चल रहा था । उदयपुर वाले तपश्चर्या के पूर पर गोगून्दा आवे तो गोगुन्दा में भी हैजा फैल जाने का भय हुआ । जागीरदार की तरफ से कामदारजीने आकर सारी बात कही और बोले कि हम उदयपुरवालों को यहां की कुशलता के लिए आने की रोक लगाना चाहते हैं । मुनि ने कहा “आप रावजी सा० तथा माजी सा० को कहदें कि उदयपुर वालों से यहां कुछ भी बिगाड नहीं होगा निश्चिन्त रहें । मुनि श्री से इस प्रकार समाधान पाकर किसी को कुछ भय के हजारों व्यक्ति आये ही थे साथ ही साथ उदयपुर से भी मोटरें भर २ कर आने लगी। देने के असरवाले व्यक्ति मार्ग में तथा मोटरस्टेण्ड पर वमन करते हए आए । गांव में प्रवेश के बाट किन्हीं को भी वमन नहीं हआ । मुनिश्री के तथा तपस्वीजी महराज के दर्शन के बाद हेजे के निमारों को बिमारी थी यह भी महसूस नहीं हुआ। तपस्या की पूर्णाहति के दिन यानी चतर्दशी के दिन ब्रह्मपुरी का विशाल चोक सभा से पूरा भर गया । व्याख्यान में मुनि श्री ने उदयपुर वालों से कहा कि धर्म का बहत बड़ा प्रभाव है। जब शान्तिनाथ भगवान गर्भ में थे तब सर्वत्र हैजा महामारी फैली थी। हजारों व्यक्ति प्रतिदिन महामारी के विकराल काल में समाजाते थे । उस समय वामादेवी माता ने गर्भस्थ बालक का स्मरण कर सर्व दिशाओं में जल छीटा तो महामारी चली गई और सर्वत्र शान्ति फैल गई । आज उस घटना को हुए करोड़ों वर्ष बीत गये हैं किन्तु श्रीशान्तिनाथ भगवान का शान्त प्रभाव आज भी अक्षुण्ण रूप से चल रहा है । आज भी श्रद्धा से शान्तिनाथ भगवान का स्मरण किया जाय तो महामारी जैसी बिमारियां अवश्य शान्त हो सकती है । तुम लोग जब उदयपुर जोओ तब तुमसे वहां अगर कोई पुछे कि गोगून्दा से क्या लाए हो तो यही कहना कि हम आनन्द लाए हैं । इस प्रकार सभी लोग एक स्वर से वहां जाकर कहोगे तो धर्म प्रभाव से वहां भी शान्ति हो जाएगी।" पारणे के बाद जब उदयपुर वाले गए और मुनि श्री के कहे शनुसार उन दर्शनार्थियों ने 'आनन्द लाए' शब्द का प्रयोग किया तो उदयपुर में से हेजे का प्रचण्ड प्रकोप हट गया । तभी से उदयपुर वालों की पं. श्री घासीलालजी महाराज तथा तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज में पूर्ण श्रद्धा बढी । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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