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________________ महाराज श्री के चातुर्मास काल में प्रभावशाली प्रवचन होने लगे । जैन अजैन जनता बिना किसी भेद आपका प्रवचन न सुनने लगी । आपके बिराजने से एवं प्रेरणा से तपश्चर्या भी अभूतपूर्व हुई । भाव से अजैन बन्धुओं ने भी एक उपवास से लगा कर नौ दिन तक को महान तपश्चर्या की- २ अक्टूबर १९६५ तक की तपश्चर्या का विवरण इस प्रकार हैउपवास, बेले, तेले, चार, पांच, अठाईयां, नौ दस ग्यारह बारह १६०० ५४१३७ २ ५ ३५ २६ १ ३ २ पन्द्रह, एकवीस, एकतीस आजीवन ब्रह्मचर्यनत, सजोडे शीलवत प्रतिज्ञा, दशमांव्रत २२ २२५ आयंबिल- ४००, । इतना ही नहीं महाराज श्री के उपदेश से स्थान स्थान की ग्राम-प चायतों ने म्युनिसिपल कार्पोरेशनों ने नदी तालाव, आदि के मार्यादित स्थानों पर सदा के लिए तथा पर्व तिथि आदि विशिष्ट दिनों में जीवहिंसा नहीं होने देने सम्बन्धी प्रस्ताव पास करके उनकी प्रतिलिपियाँ मुनिश्री की सेवा में आंग की । ये कार्य अन्य के लिए भी प्रेरणादायो हो इस दृष्टि से उनकी प्रतिलिपियां पाठकों की सेवा में उपस्थित करता हूँ। ये प्रतिलिपियां इस प्रकार हैग्रामपंचायत । वरला प्रदेश दिनांक १७- जनवरी १९६४ हम वरला निवासी प्रजाजन को पूज्य आचार्य महाराज श्री घासीलालजी महाराज के सुशिष्य पंडित रत्न पूज्य महाराज श्री कन्हैयालाल जी महाराज द्वारा धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवचन श्रवण करने का सुअवसर मिला । उस उपदेश में हमारे जीवन में आदर्शता, सत्यता, प्रामाणिकता, निर्मलता आकर राज्य म के वफादार रहे इन विषयों पर वक्तव्य व व्याख्यान सुगने का सुअवसर मिला । उसकी खुशी में महाराज श्री के फरमान से हमारी नदी "तोरी" में खारिया के रास्ते से लगाकर तार के तक इस पवित्र नदी व भूमि में कोई भी व्यक्ति मच्छी आदि की कोई भी जीव हिंसा नहीं कर सकेगा तिज्ञा हम सभी लोग समज पूर्वक स्वेच्छा से भगवान और धर्म की साक्षी से करते हैं । यह प्रतिज्ञा, वंश-वारस तक निभाई जायेगी । इसमें हमारे कुटुम्ब, हमारे गांव और हमारे परिवार का भला और रक्षण भरा हुआ है । इसी दृष्टि से प्रतिज्ञा कर यह लेख महाराज श्री को अर्पण करते हैं ।' १७-१-६४ सही सरपंच ग्रामपंचायत वरला [म. प्र.. ग्रामपंचायत कमेटी शिवरे दिवर ता. पारोळा, जि जलगांव दिनांक २६ एप्रील १९६४ हम शिवरे निवासी आम प्रजाजन को पूज्य आचार्यमहाराज श्री घासीलालजी महाराज के सुशिष्य पण्डित रत्न पूज्य महाराज श्री कन्हैयालालजो महाराज द्वारा धार्मिक और अध्यात्मिक प्रवचन श्रवण करने का सुअवसर मिला । उस उपदेश में हमारे जीवन में आदर्शता, सत्यता, प्रामाणिकता, निर्मलता आवे व राज्य के और धर्म के वफादार रहें इन विषयों पर वक्तव्य व व्याख्यान सुनने का सुअवसर मिला। उसकी खुशी में महाराज श्री के फरमान से हमारी नदी कन्हरी में बेडगांव रास्ते पाससे तो सादलखेडे रास्ते तक दो फर्लाग पर इस पवित्र नदी व भूमि में कोई भी व्यक्ति मच्छी आदि की कोई भी जीवहिंसा नही कर सकेगा । ऐसी प्रतिज्ञा हम सभी लोग समप्त पूर्वक स्वेच्छा से भगवान और धर्म की साक्षी से करते हैं । यह प्रतिज्ञा, वंश-वारस तक निभाई जायेगी। इसमें हमारे कुटुम्ब हमारे गांव हमारे परिवार का भला और रक्षण भरा हुआ है। इसी दृष्टि से प्रतिज्ञा कर के यह लेख महाराज श्री को अर्पण करते हैं । सही सरपञ्च, ग्रामपञ्चायत कमेटी शिवरे दिवर. तारीख २८-४-६४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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