________________
गुरुदेव की सेवा में रहकर नियमित अभ्यास प्रारंभ कर दिया । बुद्धि प्रतिभा परिश्रम और गुरुदेव की कृपा के कारण आपने शीघ्र ही अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली । महाराज श्री जैसे समर्थ विद्वान गुरु हो और ऐसे ही प्रतिभा सम्पन्न शिष्य हो तो उस अध्ययन की बात ही क्या । आपने गुरुदेव के साथ रहकर शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन कर लिया । संस्कृत प्राकृत हिन्दी उर्दू मराठी गुजराती आदि विविध भाषाओं का एवं उन भाषाओं में लिखे ग्रन्थों का खूब मनन पूर्वक अध्ययन किया । ज्ञान अराधना के साथ साथ आपने तप एवं चारित्र की खूब आराधना की । आप एक विनीत शिष्य की तरह ज्ञानाभ्यास के लिए एवं गुरुकी सेवा के लिए अहर्निश उत्सुक रहते थे । प्रतिदिन आप बडे मनोयोग से गुरुदेव की सेवा शुश्रुषा करते थे ! आप का दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् प्रथम चातुर्मास १९ ८८ का उदयपुर १९८९ का गोगुन्दा में गुरुदेव के साथ हुआ । इसके बाद क्रमशः सेमल (१९९०) कुचेरा (१९९१) कराची (१९९२-९३) बालोतरा (१९९४) नाई १९९५ यहां गुरुदेव की की आज्ञा से आपने स्वतंत्र चातुर्मास किया । चतुर्मासकाल में आपकी विद्वत्ता तर्क शक्ति एवं उच्च चारित्र से जनता परिचित हुई । प्रतिदिन सैकडों व्यक्ति आपके तात्विक एवं सुन्दर प्रवचनो का लाभ लेने लगी। उस वर्ष नाई में खूब धर्म ध्यान हुआ । आप की दीक्षा काल का यह प्रथम स्वतंत्र चातुर्मास बडा भव्य रहा । तपश्चर्या खूब हुई ।
___सफलता पूर्वक नाई का चातुर्मास पूर्णकर आप गुरुदेव की सेवा में जा पहुँचे । महाराज श्री ने आपके भव्य चातुर्मास की भूरि-भूरि प्रशंशा की । इसके बाद ११९६ का चातुर्मास आपने अपने पूज्य गुरुदेव के साथ ही व्यतीत किया । फिर क्रमशः १९९६ का देवगढ, १९९७ का रतलाम, १९९८ का लींबड़ी चातुर्मास आपने गुरुदेव के साथ ही व्यतीत किया । १९९९ का चातुर्मास आपने गुरुदेव को आज्ञा से गोगुंदा में स्वतंत्र रूप से किया । यहां भी चातुर्माम काल में बड़ा धर्मोद्योत हुआ । विविध प्रकार की तपश्चर्या हुई । आपने अपने प्रभावशाली प्रवचनों से गोगुंदा की जनता को खूब प्रभावित किया । इसके बाद आप ने निम्नलिखित चातुर्मास गुरुदेव की हो सेवा में व्यतीत कर जैनधर्म की प्रभावना बढाने में पूर्ण सहयोग दिया । (२००० का चातुर्मास जसवंत गढ,
२००१ का चातुर्मास दामनगर २००२ का ,, जोरावर नगर
२००३ का मोरबी २००४ ,, ,, राजकोट
२००५ का राणपुर चूडा स्वतंत्र २७०६ :, , वीरमगाव स्वतंत्र
२००७ का ,, जेतपुर २००८ ,, ,, धोराजी
२००९ का , उपलेटा २०१०, , मांगरोल
२०११ , जामजोधपुर २०१२ ,, ,, राणपुर चूडा
२०१३ , पीरमगांव २०१४ ,, ,, बम्बई मलाड (स्वतंत्र)
२०१५-१६-१७-१८ तक अहमदाबाद अपने गुरुदेव की इस दीर्घ सेवा के बाद कुछ ऐसे महत्त्व के कारण व गुरुदेव की आज्ञा प्राप्त हुई जिससे आपको कुछ समय के लिए महाराष्ट्र और विहार करना पडा ।
अहमदाबाद से आपने नंदूरबार संघ के अत्यंत आग्रह से इधर महाराष्ट्र की ओर विहार किया। महाराष्ट्र में मारवाड से आकर अनेक जैन भाई अपना व्यवसाय करते हैं । उनकी अपने धर्म के प्रति अच्छी श्रद्धा है। कितनेक प्रदेश में सन्त सतियों का विहार बहुतहि अल्प मात्रा में होने के कारण उनकी धार्मिक । श्रद्वा लुम होती जा रही यो । बहुत व्याक्त जैन होते हुए भी वैष्णव धर्म की क्रिया करने में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org