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को अपने यहां करने में विघ्न का अनुभव किया । चातुर्मास समाप्ति के बाद आपने सादडी (मारवाड़) की ओर बिहार कर दिया । गोगूदा तरपाल आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए आप जसवन्त गढ पधारे । अनेक गांवों का संघ महाराज श्री के दर्शन के लिए जसवन्तगढ आया और बालक कन्हैयालालजी को दीक्षा के लिए आग्रह करने लगे। उस समय सादडी का श्री संघ भी उपस्थित हुआ । सादडी संघ ने महाराज श्री से निवेदन किया की वैरागी कन्हैयालालजी की दीक्षा हमारे यहां हो ऐसी प्रार्थना हैं । महाराज श्री ने श्रावक के अनुरोध को स्वीकार कर पं मनोहरलालजी महाराज एवं तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज को श्री कन्हैयालालजी को दीक्षा देने के लिए सादडी की ओर बिहार करने की आज्ञा दे दी । महाराज श्री की स्वीकृति मिलते सब लोग बडे उत्साह से दीक्षा महोत्सव की तैयारी में जुट गये। महाराज श्री की आज्ञा प्राप्त कर वैरागी कन्हैयालालजी को साथ में लेकर मुनिद्वय ने सादडी की ओर विहोर कर दिया ।
पं० मुनि श्री मनोहरलालजी एवं तपस्वी रत्न श्री सुन्दरलालजी महाराज सादडी पधारे तो श्री संघ ने उनका भव्य स्वागत किया । दीक्षा की जोरदार तैयारियां प्रारंभ कर दी । सर्वत्र पत्र पत्रिकाओं द्वारा सूचना दे दी गई । इस दीक्षा के महामहोत्सव का समस्त खर्च की जिम्मेवारी श्रीमान् सरदारमलजी मूथा अनोपचन्दजी पुनमिया, ताराचन्दजी, सागरमलजी, जवारमलजी, जवानमलजी आदि श्रावकों ने ले ली। वैशाख शुक्ला तृतीया सं० १९८८, के शुभ दिन का उदय हुआ । सादडी में बड़े उत्साह पूर्वक दीक्षा महोत्सब मनोया गया । इस मंगलकार्य में सम्मलिन होकर अपने को कृतार्थ करने के लिए उदयपुर गोनु न्दा आदि आस पास के ग्रामों के करीब पांच छ हजार का विशॉल जन समुदाय एकत्रित हुआ । वैरागी कन्हैयालालजी के पिताजी भाई आदि समस्त परिवार उपस्थित हुआ । किन्तु पं० मुनि श्री घासीलालजी महाराज की अनुपस्थिति उन्हें खटकी । उन्होंने तपस्वी महाराज से पूछा-पं० श्री घासीलालजी महाराज दीक्षा पर क्यों नहीं पधारे ?
__ तपस्वीजी ने कहा-महाराज श्री किसी को भी अपने हाथ से दीक्षा नहीं देते किन्तु उनकी संपूर्ण आज्ञा से ही यह दीक्षा हो रही है । इस पर कन्हैयालालजी के पिता ने कहा जब तक महाराज श्री जी दीक्षा में न पधारे तब तक मैं दोक्षा की आज्ञा नहीं दूंगा। स्थानीय संघ ने एवं तपस्वीजी म. ने उन्हें
। समझाया । अन्त में यह निर्णय हआ को यदि पं० मुनि श्री घासीलालजी महाराज कन्हैयालाल को अपना शिष्य स्वीकार करने को तैयार हो तो मैं आज्ञा दे सकता हूँ। अन्त में यह की गई । पिताजी एवं भाइयों की आज्ञा मिलने पर वैरागी कन्हैयालालजी बडे विशाल जन समुदाय के ही साथ दीक्षा स्थान पर पहुंचे । पं. श्री मनोहरलालजी महाराज ने दोक्षा का पाठ सुनाया । और शिखाका. लोच किया । श्री कन्हैयालालजी दीक्षित होगये । कन्हैयालालजी को महाराजश्रो की नेत्राय का दि किया गया । दीक्षा लेने के समय मुनिश्रीकन्हैयालालजी की अवस्था केवल ग्यारह वर्ष की थी। सादडी दीक्षा समारोह पूर्ण कर पं० मुनि श्री मनोहरलालजी महाराज ने तपस्वीजीम. मुनी श्री कन्हैयालालजी महाराज को साथ लेकर जसवंतगढ की ओर बिहार करदिया । जसवंतगढ महाराज श्री की सेवा में पधारगये । नवदीक्षित कन्हैयालालजी महाराज को देखकर महाराज श्री खूब प्रसन्न हुए
• श्री घासीलालजी महाराज का दीक्षा स्थल था। यहीं पर सात दिन के बाद पं० मुनि श्री घासीलालजी महाराज ने अपने बाल शिष्य कन्हैयालालजी म. को बडी दीक्षा दी । इसशुभ अवसर काफी जन समूह एकतृत हुआ ।
दीक्षा धारण करने के पूर्व ही आपने सामायिक प्रतिक्रमण २५ बोल का थोकडा नवतत्त्व भक्ताभर पुच्छिसुणं, नमिरायजी, दशवकालिक सूत्र के चार अध्ययन, एवं साधु प्रतिक्रमण याद कर लिया था। अब आपने
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