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साहबं भी अपने शिष्यों को इस हरकत से हृदय में बडे दुःखी हुए किन्तु वे भी लाचार थे ।
इस चातुर्मास काल में वाडीलाल मोतीलाल शाह की अध्यक्षता में अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फरन्स एवं भारत जैन महामण्डल का अधिवेशन हुआ । इस अधिवेशन के प्रसंग. पर आनेवाले अनेक प्रतिष्ठित सज्जनों से मिलने एवं उनसे विचार विमर्ष करने का अवसर आपको मिला । सर मनुभाई मेहता एवं पं. मदनमोहन मालवीयाजी से वार्तालाप का अवसर आपको प्राप्त हुआ
पूज्यश्री जवाहरलालजी म० सा. का यह चातुर्मास अत्यन्त प्रभाव पूर्ण था । इस चातुर्मास काल में निम्नलिखित तपस्त्रियोंने कठोर तपश्चर्या कर शासन को महान प्रभावना की ।
(१) तपस्वो श्री सुन्दरलालजी म० ६० दिन । (२) केसरीमलजी म० ९५ दिन । (३) बालचन्दजी म० २५ दिन (४) महासतिजी श्री गुणसुन्दरजी म० ४० दिन । (५) श्री चम्पाजी म० ने ३६ दिन ।
इनके अतिरिक्त मास खमण १५, ११-८ आदि बहुत सो तपस्याएं हुई । तपस्वीजी श्री सुन्दरलाल जी महाराज की तपस्या का पुर भाद्रपद शुक्ला १४ को था और तपस्वी श्री केसरीमलज तपस्या का पुर आश्विन शुक्ला १३ रविवार को था । इन महान. तपस्वियों के दर्शन के लिए हजारों का जन समुदाय उमड पड़ा । अनेक त्याग प्रत्याख्यान हुए । इस प्रकार यह चातुर्मास अने सफल रहो । चातुर्मास समाप्ति के बाद पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज ने मार्गशीर्ष शुक्ला तृतीया के दिन पं. मुनि श्री घासीलालजी महाराज आदि २९ सन्तों के साथ सद्धर्म का प्रचार करने के हेतु थली प्रान्त की ओर विहार कर दिया । पूज्य श्री के साथ थली प्रान्त के विविध परिबहों को सहन करते हुए आप चातुर्मासार्थ बीकानेर पधारे । और वि. सं. १९८६ का चातुर्मास आपने यही व्यतीत किया । इस चातुर्मास काल में वृद्धमुनियों की सेवा करने के साथ साथ साहित्य निर्माण का कार्य भी किया ।
चातुर्मास समाप्ति के बाद पूज्य आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज बिकानेर पधारे । मुनिश्री घासीलालजी महाराज की इच्छा पुनः महाराष्ट्र की ओर जाने की हुई । पूज्यश्री से आज्ञा प्राप्त कर के तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज को साथ में लेकर बिहार भी कर दिया । देशनोक गांव में पहुचने पर चरितनायक मुनि श्री को जब ज्ञात हुआ कि पूज्य श्री सुजानगढ पधार रहे हैं । सुजानगढ तेरह पन्थियों का गढ़ माना जाता था । और उस समय का युग सांप्रदायिक संघर्ष का युग था । पूज्यश्री तेरहपन्थियों के साथ शास्त्रार्थ करने में बडे कुशल थे । जब इन्होंने सुना कि कुछ लोग पूज्यश्री के साथ शास्त्रार्थ करने की योजना बना रहे हैं ऐसी अवस्था में चरितनायकजी को अपनी उपस्थिति अनिवार्य लगी । गुरु भक्ति से प्रेरित होकर आपने भी सुजानगढ की ओर विहार कर दिया । सुजानगढ में पुनः गुरु शिष्य का मिलन हुआ । उस दिन सभी मुनिराजों ने तेला किया निर्विघ्नरूप से कुछ समय सुजानगढ में बिराजकर आपने पूजाश्री की आज्ञा से तपस्वी श्री छगनलालजी महाराज तपस्वी श्री सुन्दरलालजी म. मुनि श्री समोरमलजी महाराज को साथ ले आपने मारवाड की ओर विहार किया । कुचेरा, मेडता होते हुए आप बाल पधारे । वहां श्री चान्दमलजी झामड तथा श्री मगनलालजी कोटेचा ने चतुर्मास यहिं बिराजने का अत्याग्रह किया । सेठ विजयराजजो मूथा सेठ गंगारामजी की विनती से आप बालून्दा पधारे । वहां भी चातुर्मास का अत्याग्रह हुआ । बालून्दासे कालु केकीन होते हुए मेढास पधारे । मेढास ठाकुरसाहेब नित्य मुनि श्री के व्याख्यान का लाभ लेते थे । व्याख्यान श्रवण कर ठाकुरसाहब ने बहुत से नियम लिए । मेढास से विसांगन होते हुए पुष्कर के मार्ग में जंगल में वृक्ष के नीचे रात्रिवास बिराजे । प्रतिक्रमण के बाद श्री समीरमुनि को संगीत का अध्ययन मुनि श्री नित्य की तरह कराने लगे । संगीत की स्वरलहरी से जंगल का चारों ओर का भाग गूंज उठा । कुछ दूरी पर एक झोपड़ी थी । समीप में ही कुछ किसान एक
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