SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२ "लिखना सरल काम नहीं हैं । इसमें बहुत बड़ी शक्ति बुद्धि और संस्कृतभाषा का असाधारण ज्ञान की आवश्यकता रहती है। इस पर प. श्री घासीलालजी म. ने कहा-आपका कथन सत्य है । प्रथम मैं दशबैकोलिक सूत्र के प्रथम अध्ययन पर टीका लिखकर आपकी सेवा में प्रस्तुत करूंगा । उसे आप देखे । देखने पर आपको अगर मेरी शक्ति पर विश्वास हो तो मुझे आगे कार्य करने की आज्ञा “प्रदान करें। ,, इस पर पूज्य श्री ने फरमाया-"अच्छा, करो । " - पूज्य श्री का आदेश मिलने पर पं. श्री घासोलालजी महाराज ने दशवैकालिक सूत्र के प्रथम अध्ययन की टीका बनाई और उसे पूज्य श्री की सेवा में पेश की । पूज्य श्री उसे देखकर प्रसन्नता से खिल उठे । उन्होंने कहा-घासीलाल ! तुम मेरी संप्रदाक में एक होनहार सन्त हो । तुम जैसे प्रतिभा संपन्न मुनियों से ही मेरी संप्रदाय का नाम सदा रोशन हो रहा है । तुम्हारी विद्वतापूर्ण टीका को देखकर मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि तुम इस गुरुत्तर कार्य को सुन्दर रूप से पूर्ण कर सकते हो। जाओ ! तुम अपना कार्य प्रारम्भ कर दो । तुम्हारे इस शुभ कार्य में मेरा केवल शुभाशिर्वाद ही नहीं रहेगा बल्कि सक्रिय सहयोग भी रहेगा । . गुरुदेव का शुभाशिर्वाद प्राप्त कर चरितनायक श्री घासीलालजी महाराज ने दशवैकालिक सूत्र के प्रथम अध्ययन पर टीका लिखना प्रारम्भ कर दिया । - पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज सा. ने दूसरे दिन व्याख्यान के बीच आगमों पर स्थानकवासी मान्यता के अनुरूप टीका ग्रन्थों की आवश्यकता पर अधिक भार दिथा और समस्थ स्थानकवासी समाज को इस शुभकार्य में आर्थिक सहयोग की अपील की। पूज्य श्री के आह्वान को समाज ने बडे उत्साह के साथ स्वीकार किया और एक ही दिन में आगमोद्धार के लिए तीन लाख रुपये एकत्र कर लिये गये । “समाज हितकारिणी,, नाम की एक विशाल संस्था कायम की । पं. मुनि श्री घासीलालजी महाराज ने भी बडे उत्साह के साथ कार्य आरंभ कर दिया । महाराज श्री के कार्य में पूरा सहयोग देने के लिए पाँच विद्वानों को नियुक्त किये । इस चातुर्मास काल में आप ने “दशवैकालिक सूत्र पर एवं आवश्य सूत्र पर विद्वता पूर्ण टीका लिख डाली। इसके अतिरिक्त शिवकोष नानार्थोदयसागरकोष, श्रीलालनाममालाकोष, वृत्तबोध, जैनागमतत्त्वदीपिका, तत्त्वप्रदीप, उपदेशशतक, सुभाषित ओदि ग्रन्थों की रचना की । .. पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज अपने होनहार प्रतिभा सम्पन्न विद्वद्रत्न पं. श्री घासीलालजी म. सा० की इतनी शिघ्रता से ग्रन्थ रचना करने की शक्ति से बडे चमत्कृत हए । स्वयं भी पंडित मनि. वर द्वारा रचित ग्रन्थों का अवलोकन करते थे और उपयुक्त सुझाव भी समय-समय पर देकर महाराजश्री का उत्साह बढाते थे । पूज्य श्री जवाहरलालजी म. का पं. घासीलालजी म. पर बड़ा भारी स्नेह था। वे इनकी हर समये प्रशंसा करते थकते नहीं थे। किन्तु इस प्रशंसा एवं प्रगति को इनके कुछ साथी इर्षा की दृष्टि से देखने लगे। वे चाहते थे कि यह प्रगति यहीं रुक जाय तो अपना भावी उज्ज्वल रहेगा। वे हर प्रकार से घासीलावजी म. सा. के कार्य में विघ्नडालने में ही आनन्द का अनुभव करने लगे । पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज सा. के उटपटांग बातों से वे उनके कान भरने लगे। पं. मुनि श्री घासीलालजी महाराज इन सब बातों की परवाह किये बिना अपना कार्य किये ही जाते थे। इनमें विरोध सहन करने की अपूर्व शक्ति थी । वे इन विघ्न बाधाओं की जरा भी परवाह नहीं करते । साहस के साथ आगम सम्पादन का कार्य करते ही जाते थे । अन्त में ईर्षा की विजय हो गई । विघ्न संतोषियों को सफलता मिल गई। आगम कार्य कुछ समय के लिए स्थगित हो गया । पूज्य जवाहरलालजी महाराज For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy