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________________ ठहर गया । उसकी हिम्मत आगे बढने को नहीं हुई । मुनि श्री ने उसे पत्थर फेंकते को सीधे रास्ते पर जाने को कहा मुनि श्री के तेज को वह सह नहीं सका । उल्टे पैर से अपने स्थान पर चला गया । मुनि श्री जी तो स्वभाव से ही निर्भीक थे । डरना तो उन्होंने जाना ही नहीं था । वे समय समय पर एसे प्रसंग पर एक बोडी गार्ड की तरह काम करते थे । पूज्यश्री के साथ ही उदयपुर जसवन्तगढ, सादडो मारवाड बगडी होते हुए ब्यावर पधारे। चि. सं. १९८३ का २५ वाँ चातुर्मास ब्यावर में वि. सं. ८३ का चातुर्मास आप पूज्य श्री जवाहरलाल जी म. के साथ ब्यावर में ही व्यतीत किया । इस चातुर्मास में तपस्वी मुनि श्री सुन्दरलाल जी महाराज ने धोवन पानी के आधार पर ७६ दिन की तपस्या की । तपस्वी मुनि श्री केशरीमलजी महाराज ने ६६ दिन की तपस्या की । दोनों तपस्वीजी की तपश्चर्या की पूर्णाहुति के समय स्थानीय श्रावक श्राविकाओं ने अठाईयां नौ, दस पांच बेले तेले उपवास आदि बडी संख्या में तपश्चर्या की । सैकड़ों की संख्या में दर्शनार्थी पूज्य श्री एवं सन्तों तपस्वियों के दर्शन के लिए आये । इस अवसर पर जीवदया आदि अनेक परोपकार के कार्य हुए । चरितनायकजी श्री घासीलालजी महाराज के भी समय- समय पर पाण्डित्य पूर्ण प्रवचन होते थे । आप के पाण्डित्व पूर्ण प्रवचन से स्थानीय जनता अत्यन्त प्रभावित हुई । . . . भाद्रपद शुक्ला षष्ठी के दिन जेतारण निवासी सुगालचन्दजी मुकाना ने अत्यन्त वैराग्य भाव से भाग. बती दीक्षा अंगीकार की । एक अगस्त के दिन मौलाना मुहम्मद अली ने सन्तों के दशन किये ।... चातुर्मास समाप्त होने पर पूज्य श्री के साथ आपने विहार कर दिया। राजस्थान के विविध क्षेत्रों को पावन करते हुए आप पूज्य श्री के साथ १९८४ का चातुर्मास व्यतीत करने के लिए आप बीकानेर पधारे । वि. स. १९८४ कर २६ वाँ चातुर्मास बीकानेर में । कुछ दिन बीकानेर बिराज कर आपने पूज्य श्री के साथ १९८४ का चातुर्मास भीनासर में किया। बीकानेर से भीनासर यद्यपि तोन मोल ही दूर है तथापि बहुत से जैन अजैन धर्म प्रेमी बन्धु प्रतिदिन उपदेश सुनने के लिए आया करते थे । पूज्य श्री जवाहरलोलजी महाराज श्री के प्रवचन के पूर्व प्रतिदिन आपके भी प्रवचन हुआ करते थे । समय समय पर आपको बीकानेरस्थ वृद्ध सन्तों की सेवा करनी पड़ती थी । इस प्रकार आप पर अनेक जिम्मेदारियाँ आई । प्रातः व्याख्यान, मध्याह्न में शिक्षार्थी साधुओं को पढाना । एवं रुग्ण मुनियों की सेवा करना । इन सब जिम्मेवारियों को निभाते हुए भी आप अपने बचे कचे समय में साहित्य निर्माण का कार्य भी दत्तचित्त से करते ही रहते थे। एक क्षण का भी प्रमाद आप के लिए असह्य हो जाता था । ये प्रमाद को अपने प्रगति का शत्रु मोनते थे। पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज का आप पर असीम प्रेम था । आपके साहित्य निर्माण के कार्य बडे प्रभावित थे। कई बार पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज आपके लिए फरमाते थे. यह मेरा दाहिना हाथ है । मेरे संप्रदाय का चमकता हुआ अनमोल रत्न है। इससे मुझे बडी-बड़ी अ आगमों पर टीका लिखने की प्रेरणा और प्रारम्भः1. पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज का एक साधु प्रतिदिन सेठियाजी की लायब्रेरी से छुपक्छुप कर टीकाबाले आगम ग्रन्थ लालो कर पढ़ता था । एक दिन उसने पूज्य गुरुदेव श्री जवाहरलालजी महाराज से कहा" हे "गुरुदेव ! हम जिन सूत्रों से अपने संप्रदाय के मूल सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते हैं उन सब आगमों पर मूर्तिपूजक आचार्यो की ही टोका है । मूर्तिपूजक आचार्यों ने सर्वत्र "चेइयं" शब्दका अर्थ "प्रतिमा' ही किया है । तथा टोकाकार आचार्यों ने भी अनेक ऐसी बाते लिखी है जो बैन तस्व. और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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