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लिए बातचीत प्रारम्भ हो गई । इस अवसर पर बातवीत को अधिक सफल बनाने के उद्देश्य से पूज्यश्री जवाहरलालजी महाराज ने मुनि श्री मोडीलालजी महाराज मुनि श्री चान्दमलजी महाराज, मुनिश्री हरणजन्दजी महाराज चरितनायक श्री घासीलालजी महाराज और मुनि श्री हीरालालजी महाराज को पंच नियुक्त किये। इन पंचों के नेतृत्व में संप्रदाय का शुद्धि करण किया गया । दोनों पूज्यों की बातचील सपाल रही । दोनों आचार्यों ने मिलकर निम्नलिखित एकता की शर्ते निश्चित की।
(१) जो लिफाफे दोनों तरफ से एक दूसरे को देवे दोनों अपनी अपनी धर्म प्रतिज्ञा से यह किस देखें कि लिफाफों के लेखानुसार दोनों तरफ कोई दोष नहीं है । ... (२) आज मिति पीछे दोनों पक्ष वाले गतकाल सम्बन्धी किसी भी साधु का दोष प्रकाशित करेंगे तो वे दोष के भागी होंगे और चतुर्विध संघ के अपराधी ठहरेंगे।
दोनों पूज्य श्री हुकमीचन्दजी महाराज के छठे पाट पर समझे जाऐंगे । (४) भविष्य में दोनों तरफ के सन्त परस्पर प्रेम-वत्सलता बढावे ।
५. दोनों तरफ के सन्त परस्पर निन्दा न करें। यदि किसी साधु का किसी को कसूर नजर ३ हो उस भनीको व उस गच्छ के अग्रेसर को सूचित कर देवें । (दस्तखत दोनों पूज्यों के)
प्रेम पूर्ण वातावरण में दोनों पूज्यों का सम्मेलन समाप्त हुआ। दोनों पूज्यों ने एक साथ बैठ कर अबकन जिसस । प्रथम चेत्र कृष्णा ४ को पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज के साथ चरितनायकजी का जावरा में आगमन हुभा । जावरा के नवाब खान बहादुर साहबजादा शेरअलीखां साहब पूज्य श्रीका व्याख्यान गुनने भाये । जावरा में अनेक उपकार के कार्य हुए। .: जावरा से आप पूज्य श्री के साथ नगरी पधारे। यहां पूज्य श्री के उपदेश से वर्षों का वैमनस्य मिट गया। वहां गोशाला की भी स्थापना हुई । वहाँ से आप निबोंद करजू नन्दावता आदि अनेक ग्राम नगरों को पावन करते हुए मन्दसौर पधारे । मन्दसौर से आपका पूज्य श्री के साथ नीमच आगमन हुक्षा । यहां व्यावर का संघ आगामो चातुर्मास की विनती लेकर आया । पूज्य श्री ने चातुर्मास पूर्व अत्यावर पधारने की विनती स्वीकार को । नीमच से आप उदयपुर पधारे । उदयपुर से विविध क्षेत्रों की पावन करते हुए आप पूज्य श्री के साथ ब्यावर पधार गये ।
पूज्य श्री ने अपने ज्येष्ठ शिष्य पं० मुनि श्री घासोलालजी महाराज की श्रमसाध्य शिक्षा का लाभ अपनी संप्रदाय के मुनिवरों को मिले इस दृष्टि से । १ श्री चान्दमलजो महाराज (जावरा)। २. श्री मनोहरलालजी म० । ३ सूरजमलजी म. (मन्द और वाले) । ४ श्री गबूलालजी म. (छोटे)। ५ श्री चौथमलजी म. (जयपुर वाले) _इन पांच मुनियों को पढने पढाने की आज्ञा दी। ये पांचों मुनिराज पण्डित श्री घासीलालजी महारान की सेवा में रहकर अध्ययन करने लगे ! इनके साथ वयोवृद्ध तपस्वी श्री उत्तमचन्दजी महाराज मी थे । ये लगातार १४ वर्ष से केवल छाछ ही पीते थे । सुदीर्घ तपश्चर्या के कारण इनका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया था । विहार में बडी कडिनाई का अनुभव करते थे। उदयपुर की ओर विहार करते समय ये पांचों विद्यार्थी मुनिवर तपस्वी श्री उत्तमचन्दजी महाराज को झोली में बैठाकर कन्धे पर उठाकर मलते थे । एक समय मेवाड के खेरोदा गांव से दरोली जाते मार्ग में एक भोल दारु के नशे में धूत होकर आया । उसके हाथ में बड़ा पत्थर था । तपस्वी जी महाराज की झोली उठाने वाले सन्तों को तेज अखिसे आगे बढ़ जाने का आदेश देकर मुनिश्री उस भोल को आगे नहीं बढने देने के लिए अवरोध कम में खडे हो गये । सरीर से हृष्ट पुष्ठ तेजस्वो युक्क साधु को निर्भयता से अपने सामने खडा देख मील
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