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________________ ' चातुर्मास के बीच घोर तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजी महाराज ने ६१ दिन को धोवन पानी के आधार पर तपस्या की । तपस्या की समाप्ति के दिन आस पास के गावों के लोग हजारों की संख्या में उपस्थित हुए । उस दिन स्थानी । श्रावकों ने कतलखाना बन्द रखने का जोरदार प्रयत्न किया । जिनमें पारसी समाज के प्रमुख सेठ दारापजी का नाम विशेष उल्लेखनीय है । सेठ दारापजो अहमदनगर के प्रतिष्ठित व्यापारी थे। इनका नगर निवासियों पर एवं राजकर्मचारियों पर अच्छा प्रभाव पडता था । इनका व्यापार प्रायः सैनिक छावनियों में था। इनका गोरे सैनिको पर एवं सेनाधिकारियों पर अच्छा प्रभाव पड़ा था। तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजी महाराज की दीर्घ तपस्या से एवं महाराज श्री के विद्वत्ता पूर्ण प्रवचनों से ये बडे प्रभावित थे । श्रीतपस्वीजी के पूर के दिन सेठ दारापजी सैनिक छावनियों में गए और बडे बडे अधिकारियों से मिले । सेठ ने उनसे कहा-"हमारे शहर में एक बडे महान तपस्वी आये हैं, उन्होंने ६१ दिन के उपवास किये हैं। उनका आज समाप्ति का दिन है। उन तपस्वी की खास यह ईच्छा है कि आज के दिन समस्त नगर में हिंसा बन्द हो । नगर का कोई भी नागरिक आज के दिन मांसाहार न करें। यह सुनकर सैनिकअधिकारियों को बडा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा इस पुण्य भूमि पर आज भो ऐसे आदर्श आदमी है जो इतने दिन तक बिना खाये भी रह सकते हैं, जब वे इतने दिन तक बिना भोजन के रह सकते हैं तो क्या एक दिन बिना मांस के हम जी नहीं सकते ? हम तपस्वीजी की इच्छा के अनुसार समस्त छावनी में मांस न खाने की प्रतिज्ञा का पालन करेंगे । सेनाधिकारी ने उस दिन सैनिकों को भोजन में मांस न देने का आदेश दे दिया । । यहां की छावनी में उस समय करीब दो हजार सैनिक थे । इनके अतिरिक्त भारतीय सैनिक भी बड़ी संख्या में थे। सभीने स्वेच्छा से उस दिन मांस नहीं खाने का निश्चय किया । सैनिकों एवं सेनाधिकारियों ने तपस्वीजी के दर्शन कर एवं महाराजश्री का प्रवचन सुन बडी प्रसन्नता का अनुभव किया । उस दिन समस्त नगर निवासियों ने अगता पाला । तमाम व्यवसाय बन्द रखा । नगर के समस्त कतलखाने बन्द रहे । स्थानीय श्रावक श्राविकाओं ने बड़ी संख्या में अठाईयां पौषध, सामहिक दया और सामायिकें की। शान्ति की प्रार्थना हुई, हजारों अजैन भाईयों ने यावज्जीवतक के लिए हिंसा, दारू, मांस आदि कन्यसनों का त्याग किया। धर्मध्यान अच्छा हआ। अनेक दृष्टियों से यह चातुर्मास सफल रहा। चातुर्मास समाप्ति के बाद आप दक्षिण प्रान्त के अन्य ग्राम व नगरों में विहार कर धर्म प्रचार करने लगे। वि. सं. १९८० का बाईसवाँ चातुर्मास तासगांव में . दक्षिण प्रान्त के विविध क्षेत्रों को पावन करते हुए आपका तासगाँव में पधारना हुवा तासगांवमें आपके पधारने से लोगों में धार्मिक उत्साह बढा । चातुर्मास का आग्रह होने लगा। स्थानीय श्रावकों की विशेष भक्ति को देखकर महाराज श्री ने यहीं चातुर्मास कर दिया । चातुर्मास में वैताम्बर दिगम्बर तथा अजैन जनता ने खूब उत्साह से धार्मिक कार्यों में भागलिया । प्रतिदिन व्याख्यान में सैकड़ों की संख्या उपस्थित रहती थी । महाराज श्री के प्रवचन बडे प्रभावशाली होते थे। तपस्वीजी श्री छगनलालजी महाराज ने ४६ दिन की उम्र तपश्चर्या की। उस समय तासगाव में आया हुआ था । तपस्वीजी की तपस्या एवं महाराज श्री के प्रभावशाली प्रवचन की चर्चा सरकस के मालिक सेठ परशरामजी ने सुनी। वे अपने स्टाप के साथ महाराज श्री के प्रवचन सुनने के लिए आये। प्रथम दिन के प्रवचन से वे अत्यन्त प्रभावित हुए। अब वे प्रतिदिन प्रवचन सुनने आया करते थे। कभी कभी मध्याह्न के समय भी पण्डित महाराज श्री की सेवा में उपस्थित होते और उन से विविध प्रश्न पूछकर उनका समाधान प्राप्त करते । • तपस्या की पूर्णाहुति के दिन समस्त गांव में अगता पलवाने का सुझाव महाराज श्री ने स्थानीय २५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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