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नहीं बन सकता । धर्म के सार भूत तत्त्वों को सुनो, सुनकर उसे धारण करो और जो व्यवहार अपने को प्रतिकूल लगे अनुकूल न लगे वैसा व्यवहार अन्य के प्रति कभी मत करो । यही धर्म का सर्वोत्तम रहस्य है । धर्म वृक्ष की गहरी छाया में बैठने वाले मनुष्यों को कभी भी दु.ख नहीं आता । किन्तु सम्पदा आकर उस के पैर चूमतो है । इत्यादि
बुधगांव से आपने विहार किया। मार्ग में एक छोटे से गांव में रात्रि के समय सरकारी चावडी में मुनि मण्डली के साथ बिराजे । वहीं रात को पुलिस इन्स्पेक्टर ने चोरी के अपराध में एक दीन सगर्भा ग्रामीन स्त्री को पकडलाये । वह स्त्री बड़ी जोर जोर से रोरही थी उसके दर्द भरे रोने की आवाज सुन कर मुनि
दय द्रवित हो उठा । मुनि श्री ने इन्स्पेक्टर को अपने पास बुलाकर पूछा-" आपने इस सगर्भा स्त्री को क्यों पकडा १ इन्स्पेक्टर ने जवाब-दिया चोरी के अपराध में इसे पकडी गई है।
मुनि श्री बोले-जिसके पूरे दिन जा रहे हैं क्या इस अवस्था में यह चोरी कर सकती है ?
इन्स्पेक्टर ने कहा-इसने तो चोरी नहीं को किन्तु इसके पति ने की है । वह चोरी करके भाग गया है अतः इसको पकड लाए ।
मुनि श्री ने कहा-यह तो रंडी का दण्ड फकीर पर" वाली बात हुई । चोरी इसका पति कर रहा है और दण्ड उसकी निरपराध पत्नी को। यह कहां का न्याय है। आप न्याय करने जा रहे हैं या न्याय का गला घोटने जा रहे हैं । इस बिचारी के पूरे दिन जा रहे हैं इसके छोटे छोटे बच्चे बिना मां के घर पर विलख रहे होंगे । आप स्वयं समझदार हैं । अपराध का दण्ड दिया जाय किन्तु न्याय पूर्ण नीति से। आप को ऐसे अवसर पर करुणा और न्याय का सहारा लेना चाहिये । आप इसे इसी समय छोड दें ।
इन्स्पेक्टर ने कहा-मैं इसे प्रातः काल होते ही छोड दूंगा।
मुनि श्री ने कहा अच्छे कार्य में विलम्ब करना उचित नहों । आप पर इस स्त्री के विलाप का किञ्चित भी असर नहीं हो रहा है ? मुनि श्री के इस तेजस्वी वक्तव्य से पुलिस इन्स्पेक्टर बडा प्रभावित हआ। उसने इस तरुण तपस्वी की बात को उपेक्षित करना उचित नहीं समझा वह तत्काल उठा और आक्रन्द करती हुई स्त्री के पास पहुचा । और बोला बहन ! मैं तुझे महाराज श्री की आज्ञासे मुक्त कर रहा हूँ। तू जा सकती है । वह स्त्री बडी प्रसन्न हुई । और महाराज श्री के पा वन्दना कर बोली । बाबा ! तुम बडे दयालु साधु बाबा हो । तुम आज नहीं होते तो न जाने मेरी क्या हालत होती । आपका यह उपकार कभी नहीं भूलुंगी । आपतो सचमुच भगवान हो । इस प्रकार गरु महाराज का उपकार मानती हुई वह घर चलो गई । इधर रात्रि के समय महाराज श्री ने प्रवचन दिया । ग्रामीन जनता पर महाराज श्री के उपदेश का अच्छा प्रभाव पडा । कईयों ने दारु मांस जुगार, चोरी आदि का त्याग किया । प्रातः महाराज श्री ने अन्यत्र विहार कर दिया । वि. सं. १९७९ का इक्कीसवाँ चातुर्मास अहमदनगर में
वर्षों से अहमदनगर निवासी चातुर्मास की बडी तीव्र इच्छा रखते थे । विहार की अनेक कठिनाईयों के कारण इधर सन्तो का पधारना बहुत कम था यदि कहीं से सन्त पधार भी गये तो भी क्षेत्र की विपलता के कारण इन्हें चातुर्मास का लाभ बहुत कम मिलता था। श्रावकसंघ के अत्याग्रह से महाराज श्री ने यहीं चातुर्मास फरमा दिया । महाराज श्री के चातुर्मास से अहमदनगर के गण्य मान्य श्रेष्ठियों शिक्षित व्यक्तियों एवं सर्वसाधारण जनता ने अच्छा लाभा लिया । व्याख्यान में हजारों की जन संख्या रहती थी । अजैन लोंगो में भी महाराज श्री के चातुर्मास से उत्साह बढ रहा था । वे लोग भी बडी संख्या में महाराज श्री के व्याख्यान में उपस्थित होते थे।
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