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मिरज अस्पताल में ऑपरेशन के बाद पूर्ण स्वास्थ्य के प्राप्त होने पर डाँ० ने आप को विहार करने की रजा प्रदान कर दो। ऑपरेशन में जो भी दोष लगा था उसे गुरु देव के समक्ष आलोचना कर प्रायश्चित ग्रहण किया और शुद्ध हुए ।
कोल्हापुर की ओर प्रस्थान महाराज श्री ने स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर वहां से कोल्हापुर की तरफ विहार किया । मार्ग में कुम्भेज और मेजगांव आये । ये दोनों गांव पास पास ही में बसे हुए हैं । यहां अधिकतर दिगम्बर जैन समाज की बस्ती है । यहां का दिगम्बर समाज दो विभागों में विभक्त है । एक चतुर्थ और दूसरा पंचम । चतुर्थ दिगम्बर समाज प्रायः खेती आदि से अपनी आजीविका चलाता है और पंचम समाज व्यापार से आजीविका चलाता है । महाराज श्री पंचमो की वस्ती में ठहरे । आहार पानी किया महाराज श्री ने वहां के कुछ व्यक्तियों को पूछा-क्या दिगम्बर मुनि भी यहां पधारते रहते हैं” । उत्तर में लोगों ने कहा-दिगम्बर मुनि अभी यहीं है। पहाड पर मन्दिर में बिराजते हैं। वे कल यहां पधारेंगे । सायंकाल के समय महाराज श्री कुंभेज से विहार कर पहाड पर पधारे । सूर्यास्त में करीब आधा घण्टा बाकी होगा । महराज श्री दिगम्बर मुनि जहां विराज रहे थे वहाँ पधारे और पूजारी की आज्ञा लेकर वहीं ठहर गये । इतने में श्वेताम्बर मन्दिर का पुजारी महाराज श्री के पास आया और बोला महाराज साहेब आप श्वेताम्बर मंदिर में ठरें । महाराज श्री ने कहा हमें श्वेताम्बरदिगम्बर का कोई आग्रह नहीं । हमें तो केवल रात्रि में ठहरने के लिए स्थान मात्र चाहिए। लेकिन् पूजारी का जब अत्याग्रह देखा तो महाराज श्री श्वेताम्बर मन्दिर में पधारे । श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों मन्दिर करीब में ही थे । रात्रि में प्रतिक्रमण किया । प्रतिक्रमण के बाद आप दिगम्बर जैन मुनि के साथ वार्तालाप करने लगे । वार्तालाप करोब दो घंटे चला । बिचारो का आदान प्रदान हुआ । महाराजश्री के प्रेमपूर्ण वार्तालाप से दिगम्बर मुनि बडे प्रभावित हुए । दिगम्बर मुनि उदगाव कर के उपनाम से प्रसिद्ध थे।
प्रातः महाराज श्री ने विहार किया । मार्ग में बडगाव आया । वहां श्वेताम्बर मूर्ति पूजकों के ही घर थे किन्तु आहार पानी आदि की श्रावकों ने बडी भक्ति की । वहां एक श्रोविका थी। बड़ी धर्मनिष्ठ एवं दानी प्रकृति की थी। महाराज श्री से उसने कहा- महाराज साहब ! मैं आपके मुख से भगवती सूत्र सुनना चाहती हूं । महाराज श्री ने कहा- बहन ! भगवती सूत्र कोई छोटा सूत्र नहीं है। उसको सुनाने में बहुत समय को जरुरत है । इस समय हमलोगों को इतना ठहरने का यह अवसर नहीं है । दूसरे दिन प्रातः होते ही महाराज श्री ने कोल्हापुर की तरफ विहार किया । जब कोल्हापुर पांच कोस दूर था उस समय दिगम्बर जैन भाई करोब ४००-५०० की संख्या में महाराज श्री के सामने आये साथ में क्षुल्लक पायसागरजी भो थे । क्षुल्लक पायसागरजी बडे तपस्वी थे । २४ वर्ष से एकान्तर उप
ते थे । साथ में दिगम्बर समाज के भुपालअन्नादि अनेक प्रतिष्ठित सज्जन थे । सभी ने महाराज श्री का भाव भीना स्वागत कया । महाराज श्री जब कोल्हापुर शहर के निकट पहंचे तो हजारों जैन
बन्धुगण स्वागतार्थ गुरु महाराज श्री के सामने आये । महाराज श्री के आगमन से कोल्हापुर जनता में हर्ष की सीमा न रही । हजारों व्यक्ति जयघोष की ध्वनि से आकाश को गुन्जायमान कर रहे थे । ऐसे हजारों स्त्री पुरुषों के साथ महाराज श्री का कोल्हापुर नगर में प्रवेश हुआ । महाराज श्री के स थ जलूस दृश्य दर्शनीय था । कोल्हापुर मुख्य मुख्य मार्गो से गुजरते हुए आप श्री विशाल जन समूह के साथ वरप्पा जैन के विशाल मकान में विराजमान हुए । पट्ट पर बिराजकर आपने आगन्तुक भाई बहनों के समक्ष मानव देह की दुर्लभता और धर्म की आवश्यकता पर मननीय प्रवचन दिया। जिसका कुछ सारांश यह है
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