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अनेकान्तवाद, आत्मा का स्वरूप कर्म सिद्धान्त को सुनकर डॉ० वेल बडे प्रभावित हुए । और एक दिन उन्होंने कहा-मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा कि मुझे आगामी जन्म जैन कुल में दे ताकि जैन धर्म का पालन कर अपना कल्याण कर सकू
महाराजश्री ने कहा-जैन बनने के लिए जैन कुल में जन्म लेना आवश्यक नहीं है । आप चाहे तो इस जन्म में भी जैन बन सकते हैं। जैन धर्म प्रत्येक मानव मात्र को पालने का अधिकारी माता है । वह जात-पात के भेद भाव को नहीं मानता ।
श्री शाहू महाराज मुनि श्री से वार्तालाप करते तब प्रत्यक्ष में तो 'स्वामिजी' शब्द से सम्बोधित करते और परोक्ष में जिस किसी के सामने मुनिश्री सम्बन्धित बात चलतो तो 'गुरु महाराज' शब्द का प्रयोग करते थे । मुनिश्री के प्रति इतना अधिक समादर के भाव देखकर कितनेक गृहस्थों के हृदय में संशय हो जाया करता था कि स्थानकवासी समाज ने जिन मुनि को पढ़ा-लिखा कर समृद्ध किया है। कहों ऐसा न हो जाय कि कोल्हापुर महाराजा मुनि श्री को कोल्हापुर लेजाकर मठाधीश न बना दें ? यह एक संशय होना भो स्वाभाविक था क्योंकि मुनिश्री से श्रीशाहुमहाराजा जब मिले उसके पहले एक ऐसी घटना घट गई कि एक बार कोल्हापुर महाराजा मद्यपान करके जब दर्शनार्थ मन्दिर गए और जब अंदर जाने लगे तो उस समय आप जिन्हें गुरु महाराज मानते थे वे गुरु बोले कि "अभी आप अन्दर नहीं जा सकतें । श्री शाह महाराजा ने पूछा कि मैं अन्दर क्यों नहीं जा सकता ? गुरु बोले-आप ने इस समय मद्य है। मद्यपान की अवस्था में व्याक्ति राम कृष्ण के मन्दिर में नहीं जा सकता । यह शास्त्र विध
गुरु मुख से यह बात सुनने पर महाराजा बाहर से ही भगवान के दर्शन करके अपने स्थान आ सो स्थान पर पहुँचते ही अपने सोमन्तों से बोले कि-"प्रारम्भ से ही मुझे यह कहा-जाता कि मद्यपान करना सर्वथा शास्त्र निषेध है । मद्यपान करने वाला ईश्वर भक्त नहीं हो सकता । मद्यपान धार्मिक दृष्टि से वर्ण्य और इस प्रकार मालम होता तो मैं जीवनभर मद्यपान ही नहीं करता । ये गुरु तो ऐसा बोलते थे कि यह तो राजाओं का कार्य है । शिकार करना, मांस खाना, दारु पीना क्षत्रिय धर्म है ऐसा कह कर बराईयों का पोषण करते रहें। आज कहते हैं कि मद्यपान करनेवाला मन्दिर में नहीं जा सकता । यह पहले क्यों नहीं कहा ? अतः असत्य पोषक गुरु बनने के अधिकारी नहीं होतें । जाओ गुरु को यहां बुला लाओ। महाराजा का प्रकोप देखकर उपस्थित सामन्त लोग हकपका गए । यह खबर उन कथित गुरु को मिलते ही वे तत्काल बम्बई चले गये । उनके जाने के बाद वह स्थान खाली पडा था। एतदर्थ कितनेक श्रद्धाल श्रावकों को एह संशय हो गया था कि कोल्हापुर महाराजा मुनिश्री को कोल्हापुर लेजाकर गुरु जगह आसनस्थ न कर दें। शंकाशील व्यक्तियों ने युवाचार्य श्री जवाहरलालजी म० तथा पूज्यश्री श्रीलालजी महाराज तक पत्र द्वारा समाचार भी पहुंचा दिये । पत्र द्वारा समाचार पहुंचने पर युवाचार्य श्री ने लालाजी केशरीमलजी
र निवासी को सही स्थिति जानने की सलाह दी। उदयपुर से लालाजी तत्काल मिरज पहँचे और वहां कि वास्तविकता को समझकर वे मुनिश्रीजी की सेवा में ठहर गये । पत्र से युवाचार्य श्री के पास समाचार पहचाए कि वहां जो भी समाचार पहुँचे है वे नितान्त निराधार है। संशय जैसी कोई बात नहीं है। सही बात यह है कि कोल्हापुर महाराजा पं० श्री घासीलालजी म. के संयमी जीवन ज्ञान की विशालता और उपदेश की लाक्षणिकता से बहुत ही प्रभावित हुए हैं ।
पं० श्री घासीलालजी महाराज के प्रति कोल्हापुर महाराजा की श्रद्धा गुरु भक्ति देख कर लालजी अति प्रभावित हुए । ओर जब मुनि श्री कोल्हापुर पधारे तब वे भी कोल्हापुर की जनता द्वारा किया गया अभूत पूर्व स्वागत का दृश्य अपने स्वयं आखों से देखने का स्वर्ण अवसर प्राप्त कर सके ।
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