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________________ से ऑपरेशन किया गया । ऑपरेशन बहुत अच्छा सफल हुआ। महाराज श्री को रूम में लाया गया और पाट बिछाकर उन्हें सुला दिया । करीब चार घन्टे के बाद महाराज श्री क्लॉरोफार्म की असर से मुक्त हुए । उस समय प्रतिक्रमण का समय भी आचुका था । सचेत होते ही महाराज श्रीने प्रतिक्रमण किया । महाराज श्री को अगाध धैर्य और असीम सहिष्णुता एवं अपने नियमों को चुस्तता पूर्वक पालन करते देख डॉक्टर भी चकित हो गया । धन्य ऐसे सहन शील सन्त जिन्होंने इस रुग्ण अवस्था में भी अपने नियमों को नही छोडा । करीब १५ दिन तक आप अस्पताल में रहें । रात्रि में उनके रूम में कोई भी । थी और न बिजली आदि का प्रकाश ही किया जाता था। महाराज की परिचर्या अधिक तर साथ के मुनि हो करते थे कम से कम गृहस्थ की अनिवार्य सेवा ली जाती थी। समाज के भाग्योदय से ऑपरेशन के बाद महाराज श्री के स्वास्थ्य में दिनो दिन सुधार होने लगा । ऑपरेशन के आठ दिन बाद कोल्हापुर नरेश पुनः स्पेशियल ट्रेन में बैठकर अपने परे रसाले के साथ महाराज श्री के दर्शनार्थ अस्पताल पधारे । साथ में दिवान बाला साहेब भी थे । दिगम्बर जैन पण्डित कल्हापाणा नेटवे जो अपने समय का अच्छा विद्वान माना जाता था उन्हें भी साथ में लाये । महाराजा के साथ अन्य जागीरदार राज्य के मुख्य मुख्य अधिकारी एवं प्रतिष्ठित सेठ साहुकार भी थे, महा राजा अस्पताल में जहां महाराज श्री बिराजते थे वहां आये और महाराज श्री को साष्टांग प्रणाम कर उनकी सेवा में बैठ गये । महाराज श्री को बैठने की डॉक्टर साहब की मना थी। अतः महाराज श्री सोते सोते ही कोल्हापर नरेश के साथ बात चित करने लगे । महाराज श्री ने राजासाहब के समीप बैठे हए एक प्रभावशाली व्यक्ति को देख कर पूछा-ये साहब कोन हैं ? राजा साहब ने जवाब दिया-ये मेरे दिवान बाला साहेब हैं । और दुसरे व्यक्ति एक महान विद्वान दिगाम्बर जैन पण्डित है । इतने में एक व्यक्ति आया और महाराजा के जूता खोलकर ले गया । उसके विषय में किसी अन्य व्यक्ति को महाराज श्री ने पूछा- यह कौन थे ? उत्तर मिला--यह तीन लाख की जागीरवाला जागीरदार है । और इसका कार्य मात्र महाराजा के जूते को सुन्दर एवं सुरक्षित रखना है । राजा साहब के साथ अन्य भी कई विद्वान साथ में थे। महाराजो प्रश्न पूछने की तैयारी कर रहे थे कि इस बीच एक प्रभाव शाली व्यक्ति ने प्रवेश किया। महाराज श्री को पंचाङ्ग नमाकर विधिवत् वन्दना की और विनय पूर्वक वंदन कर के महाराज श्री की सेवा में बैठ गया, राणा के लिबास मे एक प्रभावशील व्यक्ति को देखकर कोल्हापुर नरेश ने पूछा आप कौन हो ? और कहां से आये हो ? । ___ उत्तर मिला-मेरा नाम केशवलाल है मैं मेवाड हिन्दवाकुल सूरज महाराणा श्री फत्तेसिंहजी का भूतपूर्व प्राइवेट सेक्रेटरी हूँ । महाराज-आपका आगमन कैसे हुआ । लालाजी केशवलोलजी बोले--मैं गुरुदेव के दर्शन के लिए आया हूँ। ये गुरुदेव ही संसार समुद्र को पार करने वाले जहाज हैं। महाराज ने महाराज श्री की ओर दृष्टि डाल कर पूछा-आपका आगमन किस प्रदेश से हुआ ? महाराज श्री हम मेवाड प्रदेश से आये हैं। महाराजा-मेवाड उदयपुर से यहाँ तक पधारने में आपको कितना समय लगा ? महाराज श्री-करीब तीन साल लगे महाराजा-तासगांव से आपको पधारेने में कितना समय लगा ? महाराज श्री-तीन दिन लगे । महाराजा-आपको इतना समय कैसे लगा ? महाराज श्री-हम लोग पैदल ही चलते हैं। किसी भी सजीव या निर्जीव वाहन का उपयोग नहीं करते । यहां तक की हम लोग नंगे पैर ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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