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जैन धर्म का मानव मात्र के लिए यही परम पवित्र उपदेश है कि आजिवन दुराचार रूप पापों का तिरस्कार करो, पापी का नहीं, तुम्हें पाप के प्रति तिस्कार करने का अधिकार है, किन्तु मनुष्य के प्रति नहीं । कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य जाति एक है उसमें किसी भी प्रकार की जन्म मूलक उच्च नीचता का कोई भेद-भाव नहीं हैं । जो मनुष्य जातिमद करतो है वह नीच जाति में पुनः जन्म लेता है ।
यह वार्तालाप चल ही रह था कि इतने में महाराजा का निजी फोटु ग्राफर केमरा लेकर महाराज के पास खडा हो गया । कोल्हापुर नरेश महाराज श्री से निवेदन किया । स्वमोजी, हम आप का फोटू खींचना चाहते हैं ?
महाराजश्री ने कहा-राजन् ! हम मुनि फोटू नहीं खिंचवाते । इस पर आपने एक सेर कहा एकसे जब दो हुए लुथ पे इकताई नहीं, इसलिए जाना न हमने तस्वीर खिंचवाई नहीं ।
महाराजा-आपतो यहाँ से चले जाएंगे किन्तु फोटू से आपकी स्मृति बनी रहेगी।
महाराज श्री ने इस पर एक दृष्टान्त दिया दो मित्र थे। दोनों का एक दूसरे के प्रति अटूट स्नेह था। दोनों सैनिक थे । एक दिन एक मित्र को अपने अधिकारी द्वारा लडाई के मोर्चे पर जाने का हुक्म मिला । विदा होते समय लडाई पर जाने वाले मित्र ने अपनी यादगार में उसे अपना फोटू देना चाहा । मित्र ने फोटू लेने से इन्कार कर दिया इस पर दूसरे मित्र ने कहा दोस्त ! मैं तो लडाई के मैदान पर जा रहा हूँ। पता नहीं बच के आऊँगा या नहीं । इस फोटू से कम से कम मेरी याद. गिरि तो रहेगी कि मेरा भी कोई दोस्त थो । इस पर दोस्त ने जवाब दिया भाई ! मैं तुम्हारी तस्वीर इसलिए लेना पसन्द नहीं करता कि मेरा जो तुम्हारे प्रति स्नेह है वह जड तस्वीर पर उतर आएगो । मैं तुम्हारी जिन्दा तस्वीर अपने पाक दिल में रखना चाहता हूँ। ताकि मेरे दिल में रही हुई तुम्हारी प्यारी तस्वीर को कोई चुरा नहीं सकता कहने का तात्पर्य यह है कि गुरु के प्रति जो तुम्हारी श्रद्धा है वह जड तस्वीर पर उतर आयेगी । हम गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा भक्ति एवं उनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग को भूल जाते हैं और उनके जड फोटू पर ही श्रद्धा भक्ति व्यक्त करते हैं । यह मैं उचित नहीं मानता । फोटों को तो एक अज्ञान आत्मा ही महत्व देता है । इस प्रकार कोल्हापुर महाराजा का महाराज श्री के साथ करीब डेढ घन्टे तक वार्तालाप के बाद महाराज श्री के स्वास्थ्य के विषय में पूछताछ की उपस्थित डाक्टर को सम्बोधन कर राजा साहब ने कहा-महाराज श्री का ऑपरेशन बडे ध्यान से किया जाय ! उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट न हो इस बात का पूरा ध्यान रक्खें । साथ हो अस्पताल से जितनी भी सुविधा मिल सके उतनी अधिक दी जाय । इस वार्तालाप के बीच महाराज श्री ने कहा हम जैन मुनि हैं । हमारे कुछ नियम भी हैं । डाक्टर साहब ने मेरे आपरेशन का समय शाम को साडे पाँच बजे का खखा है । यह समय हमारे ध्यान धारणा एवं भक्ति का समय है सूर्यास्त बाद न हम जल का स्पर्श करते हैं न उसका सेवन ही करते हैं । रात्रि में भोजन पानी औषध आदि कुछ भी नहीं लेते । रात्रि में हमारे स्थान में कोई स्त्रियाँ भी नहीं आसकती । हम लोग रात्रि में बीजली आदि के प्रकाश का उपयोग भी नहीं करतें । अन्य भी छोटे बडे अनेक नियम हैं जो ५॥ बजे के ऑपरेशन के समय हम उन्हें पाल नहीं सकतें । अतः ऑपरेशन का समय सायंकाल के बदले प्रातःकाल रखा जाय तो अधिक अच्छो रहेगा । ___इस पर महाराजा साहब ने डाक्टरों से कहा-महाराज श्री की इच्छा एवं उनके नियम के अनुकूलसर्व बातें होनी चाहिए । ये मेरे गुरु हैं इनको कष्ट वह मेरा कष्ट होगा। अतः गुरु महाराज को बिना कष्ट दिये उनकी इच्छानुसार करो ।
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