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________________ होती है वह किसो सर्जन हार के विना नहीं हो सकती । इसलिए इस विश्व का कोई सृष्टा अवश्य होना चाहिए।" ___महराजश्री राजन् ! मै आपसे पूछता हूँ क्या कोई भी पदार्थ विना बनाये अपना अस्तित्व नही रख सकता ? यदि नहीं रख सकता तो फिर ईश्वर का अस्तित्व किस प्रकार है ? उसे किसने बनाया ? यहि ईश्वर को किसी ने नहीं बनाया, फिर भी वह अपने आप हो अनादि अनन्त काल से अपना अस्तित्व रख सकता है, तो इसी प्रकार जगत भो अपने अस्तित्व में किसी उत्पादक की अपेक्षा नहीं रख सकता । ईश्वर कर्तृत्ववादी ईश्वर को अशरीरी दयालु, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, नित्य और सम्पूर्ण मानते हैं । यदि ईश्वर को जगत्कर्ता माना जाता है तो उसके उक्त विशेषणों में बाधा उपस्थित होती है, ईश्वर य सृष्टि निर्माण करता है तो उसे शरीर युक्त होना चाहिए । अशरीरी ईश्वर इस मूर्त संसार का निर्माण किस तरह से कर सकता है ? यदि कहा जाय कि ईश्वर समर्थ है इसलिए शरीर को कोई आव. श्यकता नहीं, वह अपने ज्ञान चिकीर्षा (करने की इच्छा) और प्रयत्न के द्वारा निर्माण कर सकता है, इसका उतर यही हो सकता है शरीर के बिना चिकीर्षा और प्रयत्न कैसे सम्भव हो सकते हैं । मुक्तात्मा की तरह यदि ईश्वर अशरोरी है तो उसमें प्रयत्न और चिकीर्षा कैसे रह सकते हैं ? जहां इच्छा और प्रयत्न है वहां पूर्णता भो कैसे मानी जा सकती है ? इसलिए ईश्वर को कर्ता मान लेने पर उसे शरीरधारी भो मानना पडेगा । यदि शरीर को धारण करके सृष्टि की रचना करता है तो क्या दृश्य हो कर दुनिया बनाता है या भूत प्रेतों की तरह अदृश्य रह कर दुनिया की रचना करता है । दृश्य शरीर से ईश्वर संसार को बनाता है यह न हमने देखा और न हमारे पूर्वजोने ही । यदि अदृश्य होकर बनाता है तो उसे अदृश्य रहने की क्या आवश्यकता है । अदृश्य रहने में तो उसके सामर्थ्य में ही बाधा आती है । दूसरी बात यह है कि सशरीरी होने पर वह संपारो जीव जैसा सामान्य हो जायगा । वह ईश्वर ही न रहेगा । यदि ईश्वर दयालु है और सर्वशक्तिमान भी है तो उसने इस दुःखमय सृष्टि की रचना क्यों की ? क्यों न उसने एकान्त सुखी और समृद्ध विश्व की रचना की ? सिंह सर्प आदि दुष्ट हिंसक पशुओं से भरे हुए, रोग, शोक, द्रोह, दुर्व्यसन से घिरे हुए, चोरी जारी हत्या आदि अपराधों से व्याप्त दु.ख पूर्ण संसार को बनाने में उसकी करुणा कहा रहती है । यदि आप कहेंगे-यह परमात्मा की लीला है भला यह लीला कैसी है ? बिचारे संसारी जीव रोग, शोक आदि से भयंकर त्रास पाएं अकाल और बाढ कादि के समय नरक जैसा हाहाकार मच जाए, और वह ईश्वर, यह सब अपनी लीला करे ? फिर भी महाकरुणावान कहलाए यह कैसे हो सकता है । यदि परमान्मा दयालु होकर संसार का निर्माण करता है तो वह दिन दुःखी ओर दुराचारी जीवों को क्यों पैदा अरता है? आज जिसे दुःखी देखकर हमारा हृदय भी भर आता है, तो उसे बनाते समय और इस दुःखद परिस्थिति में रखते समय यदि ईश्वर को दया नहीं आई तो उसे हम दयालु कैसे कह सकते हैं ? कोल्हापुर महाराजा जीव जैसा कर्म करता है वैसा ही फल पाता है । जो जैसा बोता है वह वैसा ही फल पाता है । प्राणी अपने दुःख-सुख के लिए स्वयं उत्तरदायी है, कर्मफल अथवा अदृष्ट के कारण जन्म जन्मान्तर जीव भोगायतन-शरीर आदि प्राप्त कर सुख दु.खादि का अनुभव करता है, ईश्वर दयालु है तदपि जीव को अपने अदृष्ट के कारण दुःख भोगने पडते हैं । दूसरी बात यह भी है कि महाभूत आदि से देह का निर्माण होता है परन्तु किस प्रकार के भोग के योग्य देह करना यह अदृष्ट दोनों अचेतन हैं । इसलिए इन्हें सहायता करने के लिए और जीव को इसके कर्मो का फल देने के लिए एक सचेतन सर्वशक्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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