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________________ १७१ ही भावों को अमरता प्रदान करती है । व्यक्ति और विश्व के सम्बन्धों की सब से महत्त्वपूर्ण कडी भाषा है । इस दृष्टि से दोर्घप्रश तीर्थकर भगवान श्री महावीर स्वामी ने भाषा वाणी विवेक पर सब से अधिक महत्व दिया है । उनके नीति बोध का सब से महत्त्वपूर्ण एक अंग है - वाणी का संयम । प्रकृति से मनुष्य को दो हाथ, दो पत्र, दो आंख, दो कान मिले है पर जीभ एक ही क्यों मिली ? इसका कारण यही है कि मनुष्य अपनी दो आंख और दो कान से हरएक चीज को दो बार देखे, सुने पर जीभ से केवल एक ही बार कहे । मनुष्य को हाथ और पाव लम्बे लम्बे मिले हैं पर जीभ छोटो क्यों मिली ? इसका कारण भी यही है कि मनुष्य अपने हाथ पैरों का उपयोग अधिक से अधिक करें पर जीभ का उपयोग बहुत कम करें यांनी आवश्यकता होने पर ही बोले । शास्त्रों में वाणी का भी तप माना गया है । कम से कम बोले यह वाणी का तप है। उर्दू का महाकवि जौक कहता हैकहे एक जब सुनले इन्सान दो ॥ कि हक ने जबा एक ही दी कान दो ॥१॥ जीभ के माधुर्य से संसार वश में होता है। फितरत को ना पसन्द है सख्ती जवान में । पैदा हुई न इसलिए हड्डी जवान में || [ हबीब ] राजन् ! कहने का तात्पर्य यह है कि २४ घंटे मुखवस्त्रिका बान्धने से हमें वाणी संयम की सदैव प्रेरणा मिलती है । तीसरा कारण यह है कि बाहर को सजीव धूलि, सजीव जलकण हमारे मुख में न पडे । साथ ही स्वास्थ्य रक्षा का भी इसमें दृष्टिकोण रहा है । आज का विज्ञान यह मानता है कि धूल के रजकणों में मानव देह में बिमारी उत्पन्न करनेवाले अनेक जन्तु फैले हुए हैं, वे श्वासोच्छ्वास के जरिये पेट में पहुँच कर अनेक व्याधियाँ उत्पन्न करते हैं । उपस्थित डॉक्टर साहब को लक्ष्य कर महाराज श्री ने कहा । क्यों डाक्टर साहब ! आप तो इस विषय के बड़े विशेषज्ञ हैं । जब आप लोग ऑपरेशन करते हैं तब भी मुख पर कपडा बाँधकर रखते हैं इसका कारण क्या हो सकता है । डांक्टर साहब ने कहा मुनिजी जो कह रहे हैं वह ठीक ही कह रहे हैं। हम लोग रोग उत्पन्न करने वाले जन्तुओं से बचने के लिए ही ऑपरेशन के समय मुख पर कपडा बांधते हैं । महाराज श्री ने अपना वक्तव्य जारी रखते हुए आगे कहा- जैन धर्म एक महान वैज्ञानिक धर्म है। आज से ढाई हजार वर्ष के पूर्व जब कि आज की तरह विज्ञान इतना विकसित नहीं था । विज्ञान के ज्ञान को पाने के लिए आज की तरह साधन भी प्राप्त नहीं थे, उस समय इस धर्म के महान प्रवर्तक भगवान श्री महावीर प्रभु ने पृथ्वी, पानी, अग्नि, हवा और वनस्पति में जीव बताकर आज के साधन सम्पन्न वैज्ञानिकों को आश्रर्य में डाल दिया है। जैन धर्म का परमाणुवाद आज के परमाणुवाद से बहुत कुछ अंश में मिलता है। अतः वायु के आश्रित रहने वाली अनेक खराबियों से बचने के लिए हम लोग मुख पर वस्त्र धारण करते हैं । सभ्यता की तो सभ्य और मुख वस्त्रका बांधने के चौथे कारण पीछे तो एक महान श्री महावीर ने कहा है- यदि आप समाज में रहना चाहते हो ऐसी कोई प्रवृत्ति न हो जिससे सामने वाले को कष्ठ हो । हमारे मुख का थूक गन्दा है, नापाक है वह अगर किसी पर गिरता है तो सामनेवाले को बड़ा कष्ट होता है । आज की सभ्यता कहती है कि छींक खाँसी, उबासी के समय अपने मुख पर रुमाल रखो ताकि सामने वाले पर थूक या श्लेष्म के उड़ने से वह हमसे घृणा न करने लगे। उसकी घृणा अपमान एवं अपशब्द में बचने के लिए भी मुख पर वस्त्रबांधना आवश्यक है । पांचवां कारण यह भी है कि हम जब धर्म शास्त्र को पवित्र मानते हैं जब हम Jain Education International For Personal & Private Use Only दृष्टि रही हुई है । भगवान शिष्ट बनकर रहो। आपकी www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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