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________________ की इच्छा थी किन्तु जनता की यह भीड मुझे यहां से उठने के लिए मजबूर कर रही है। आपका मैंने बहुमुल्य समय लिया है इसके लिए मै क्षमा चाहता हुँ यह कहकर गांधीजी खडे हुए और महाराज श्री को नमस्कार कर चले गये। सातारा का चातुर्मास बडा महत्त्वपूर्ण रहा । आपश्री का अगाध सिद्धान्त ज्ञा।, द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव को जानने का अद्भुत कोशल, चमत्कार पूर्ण वक्तृत्व शैली आदि गुणों के कारण सातारा क्षेत्र पर इतना प्रभाव पडा कि सारा शहर आपके प्रभाव से प्रभावित हुआ । चातुर्मास काल में नगर के अनेक गण्य मान्य सुशिक्षित व्यक्तियों ने आपके प्रवचनपीयूष का पान किया ।। चातुर्मास समाप्ति के बाद महाराजश्री ने विहार का निश्चय किया। विहार के दिन प्रात: काल ही सैकडों स्त्री परुष स्थानक में एकत्र हो गये । स्थानक संपूर्ण खचाखच भर गया ८ बजे महाराज श्री ने अपनी सन्तमण्डली के साथ विहार किया । भक्ति पूर्ण हृदय से जनता ने दर तक साथ चल कर विदाई दी प्रत्येक व्यक्ति को महाराज श्री की विदाई खटक रही थी। मांगलिक श्रवण के समय बडा करुण जनक दृश्य था । सब की आंखों से आंसू छल छला आए । संघ की ओर से श्रीमान् फतहलालजी ने की क्षमा याचना की । महाराज श्री ने विदाई सन्देश दिया और निर्मोही सन्त अनगार आगे की ओर चल दिए, जनता विषाद हृदय से घर जा रही थी और सन्त मण्डली प्रसन्न मुद्रा से आगे बढ़ रही थी। कोल्हापुर नरेश को प्रतिबोध : हमारे चरितनायक पं. रत्न श्री घासीलालजी महाराज सा. करीब तेरह वर्ष से नासूर की बिमारी से पीडित थे । अनेक देशी अनुभवी वैद्योंसे उपचार के बाद भी पीडा शान्त न हुई । व्याधि के उग्र आक्रमण को आप अपनी पूरी शक्ति एवं शान्ति से अव तक सहन करते रहे । सातारा चातुर्मास के बीच औषधोपचार भी किये किन्तु औषधि का कोई स्थायी परिणाम नहीं निकला बल्कि इस रोग का आक्रमण पहले से अधिक उग्रता पूर्वक होने लगा । चातुर्मास समाप्त हुआ तो मुनियों ने एवं श्रावकों ने आप से प्रार्थना की कि इस उग्र व्याधि का स्थायी उपाय कर लेना ही उचित है । स्थानीय डाक्टरों का भी यही अभिप्राय रहा की महाराज श्री मिरज अस्पताल पधारे और इस विषय के पूर्ण निभात डाक्टरों का इलाज करावें । यह शरीर केवल आपका ही नहीं सामाज का भी है । स्वस्थ शरीर से ही स्व पर का हित संभव है। श्रमणवर्ग एवं श्रावक समुदाय तथा विशिष्ट चिकित्सकों के अभिप्राय को लक्ष्य में रखकर एवं संयमी जीवन को रक्षार्थ आपने साथी मुनियों के साथ मिरज गांव की ओर विहार कर दिया और आप मिरज पधार गये । वहां के बडे डाक्टरों को बताया गया । डाक्टरों ने रोग का नीदान कर कहा महाराज श्री के शरीर में जो रोग है उसकी जड गहरी है और शल्य चिकित्सा द्वारा ही निकाली जा सकती है अतः हमारी राय है कि शल्य की चिकित्सा शीघ्र करवा लेनी चाहिए। नहीं तो यह रोग भविष्य में अधिक खतरनाक सिद्ध होगा। महराज श्री ने फरमाया कि "बिना शस्त्र क्रिया के प्राकृतिक उपचारों द्वारा या औषधोपचार से यह रोग शान्त हो सकता है तो मैं पहले यह उपाय कर लेना अधिक पसन्द करता हूँ । डाक्टरो ने कहाआप तेरहवर्ष से विविध प्रकार के उपचार करते आये हैं किन्तु इस का कोई स्थाई परिणाम नहीं निकाला। इसका स्थायी उपाय एक मात्र शस्त्र क्रिया ही है । अत: आपको इस विषय में अधिक विलम्ब नहीं करना चाहिए । ” मुनिश्री ने डाक्टरों का अभिप्राय सुना और उसका गहराई के साथ चिन्तन किया । अंत में श्रावकों, व मुनियों की प्रार्थना एवं डाक्टरो के अभिप्राय को लक्ष में रख कर आपरेशन कराने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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