SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिणाम होगा? जिसमें स्वयं देखने को शक्ति नहीं है उसको दर्पण अपने में प्रतिबिम्बित-उसके प्रतिबिम्ब को कैसे दिखला सकता है ? आध्यात्मिक शक्ति विहीन व्यक्ति बाह्य शक्ति के बल से अधिक से अधिक व्यक्ति विवेक शून्य होता जाराहा है । इस संसार में दो बल मुख्य हैं एक शस्त्र-बल और दूसरा शास्त्र बल । शस्त्र बल सपन्न राष्ट्रों के पास है और शास्त्र बल अपने आप को धर्म का श्रेष्ठ नेता कहलाने वाले धार्मिक आचार्यों के पास है । मैं मानता हूँ कि शस्त्र बल-भयंकर है उसमें महान विनाश की शक्ति रही हुई है, किन्तु शास्त्र बल उससे भी अधिक भयंकर है । जिस व्यक्ति के हृदय में दया नहीं, करुणा नहीं, वह अपने शस्त्र बल से अन्याय अत्याचार कर सकता है । अमुक समय तक किसी राष्ट्र को गुलाम रख सकता है । और जिस व्यक्ति के हृदय में बुद्धि, और विवेक नहीं वह धर्म नेता सुन्दर से सुन्दर शास्र का भी दुरुपयोग कर सकता है । जो व्यक्ति दुराचार और पापाचार में संलग्न है, उसका शास्त्र बल भी शस्त्र बल से कहीं अधिक भयंकर है । यदि हम इतिहास के पृष्ठों को उलट कर देखें तो मालूम होगा कि शास्त्रों की लडाई शस्त्रों की लडाई से कम भयंकर नहीं रही हैं । शस्त्र की लडाई तो एक बार समाप्त हो भी जाती है लेकिन शास्त्रों की लडाई तो हजारों-लाखों वर्षों तक चलती है। अंग्रेजों ने भारत को सदियों तक गुलाम रखने के लिए शस्त्र लडाई नहों किन्तु शास्त्र लडाई सिखाई है । परिणाम स्वरूप हिन्दू मुसलमान सिक्ख ईसाई एवं हिन्दू धर्म के विविध संप्रदाय आज तक शास्त्र लडाई में अपने आप को संलग्न कर भाई भाई के दुष्मन हो गये हैं। आज का विवेकशून्य धर्म नेता शस्त्र के समान शास्त्र का दुरुपयोग कर रहा है। आज हमें लोगो में विवेक जागृत करना है, धार्मिक परतन्त्रता की बेडी से मुक्त करना है। आज का राष्ट्रीय धर्म है देश को परतन्त्रता से मुक्त करना, वह तो आप कर ही रहे हैं किन्तु आपकी तरह हम मुनि मर्यादा में रहने वाले न जेल में जा सकते हैं और न कानून का भंग ही कर सकते हैं । मुनि जीवन में रहकर धर्म एवं राष्ट्र की अधिक से अधिक सेवा करने का प्रयत्न कर ही रहे हैं ।" यह वार्तालाप चल ही रहा था कि एक भाई महाराज श्री के पास आया और बोला-शौकतअलीजी आपके पास आना चाहते हैं ? महात्मा गाँधीजी ने भी कहा -शौकत अली मुसलमान हैं क्या वे आपके धर्म स्थानक में आ सकते हैं ? महाराज श्री ने कहा-गाँधीजी, शौकत अली तो मुसलमान है किन्तु ढेड, चमार भंगी जैसे अछत व्यक्ति भी बिना रोक टोक के हमारे धर्म स्थानक में आ सकते हैं और धर्म का आचरण कर सकते हैं। जैन धर्म मानता है कि मनुष्य जाति ऐक है, उसमें किसी प्रकार का जन्ममूलक उच्च नीचता का भेदभाव नहीं । जैनधर्म का तो यहां तक विधान है कि जो नीच जातिवालों से घृणा करता है कल में पनः पुनः जन्म लेता है । जैनधर्म पाप से वृणा करना सिखाता है पापी से नहीं। जो पापी से घणा करता है, वह द्वेष करता है वह स्वयं पापी है । चाण्डालकुलोत्पन्न हरि केशी मुनि ने जैन दीक्षा ग्रहण कर सर्वोच्च पद प्राप्त किया था । भगवान श्रीमहावीर जातिवाद और वर्ण व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे । भगवान ने क्रोध, मान, माया और लोभ को चाण्डाल कहा है और उससे अछूत रहने का उपदेश दिया है । ___ इस वार्तालाप के बीच शौकत अली भी महाराज श्री सेवामें पहुँच गये । शौकतअली ने भी महाराजश्री के साथ १५ मिनिट तक बातचीत की । वार्तालाप से गान्धीजी और शौकतअली बडे प्रभावित हए । स्थानक के बाहर हजारों व्यक्ति एकत्रित हो गये गान्धीजी को देखने के लिए स्थानक में धूस आये । अपार भीड देखकर गान्धीजी ने कहा-मेरी इच्छा आप से अधिक वार्तालाप करने की थी, व्याख्यान सुनने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy